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Uttarakhand Forest Fire: घटनाएं भी बढ़ीं, जंगल भी ज्यादा जले और मौतें भी बढ़ीं...पढ़ें चौंकाने वाले आंकड़े

Uttarakhand Forest Fire उत्तराखंड के जंगलों में लगातार बढ़ती आग चिंता का विषय बन चुकी है। गैराड़ के जंगल में आग बुझाते हुए चार लोगों की जलने से मौत हो गई। उत्तराखंड वन विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2022 से 30 जून 2023 तक उत्तराखंड में 747 घटनाओं में 897.61 हेक्टेयर जंगल जला था। इस अवधि में तीन लोगों की आग में जलने से मौत हुई थी।

By ganesh joshi Edited By: Nirmala Bohra Updated: Fri, 14 Jun 2024 11:46 AM (IST)
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Uttarakhand Forest Fire: उत्तराखंड में जंगलों की बेकाबू आग पर नियंत्रण पाना इतना आसान नहीं

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: Uttarakhand Forest Fire: गैराड़ के जंगल में आग बुझाते हुए चार लोगों की जलने से मौत हो गई। वन विभाग के कर्मचारी संग पीआरडी का जवान भी इसमें शामिल हैं। उत्तराखंड के जंगलों में लगातार बढ़ती आग चिंता का विषय बन चुकी है।

दूसरी तरफ वन विभाग के फ्रंटलाइन कहे जाने वाले दैनिक श्रमिक और फारेस्ट गार्ड की जिम्मेदारी और चुनौती लगातार बढ़ रही है। बैग में पानी की बोतल, कुछ खाने का सामान और झापू थाम लाल लपटों से भिड़ना आसान नहीं। इसलिए सरकार संग वन विभाग के शीर्ष अधिकारियों को बीच फायर सीजन में नहीं बल्कि उससे पहले ही यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि हर साल आखिर कहां कमी रह जा रही है।

पिछले साल के मुकाबले ज्यादा घटनाएं

फिलहाल तो इस बार पिछले साल के मुकाबले ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। ज्यादा जंगल जल चुका है। ज्यादा लोगों ने जान भी गंवा दी। उत्तराखंड वन विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2022 से 30 जून 2023 तक उत्तराखंड में आग की 747 घटनाओं में 897.61 हेक्टेयर जंगल जला था। इस अवधि में तीन लोगों की आग में जलने से मौत हुई थी।

जबकि इस फायर सीजन यानी नवंबर 2023 से 13 जून के बीच राज्य के जंगलों में 1220 बार आग लगी। जिसकी चपेट में आकर 1657.67 हेक्टेयर जंगल राख हो गया। जबकि दस लोग अब तक आग बुझाने के चक्कर में जान गंवा बैठे हैं। इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि तमाम तैयारियों और दावों के बीच इस साल ज्यादा जंगल खोया है। साथ ही मौतों का आंकड़ा भी काफी बढ़ गया।

बिनसर में आग की चपेट में आकर राख हुए कर्मचारियों के शव बता रहे हैं कि फ्रंटलाइन स्टाफ किस भयावाह स्थिति के बीच अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। ऐसे में फिर सवाल खड़ा होता है कि तमाम दावों और तैयारियों के बावजूद ऐसी स्थिति क्यों बन रही है।

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