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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिए सड़कों और नदियों के किनारे से अतिक्रमण हटाने के आदेश, चार हफ्ते में मांगी रिपोर्ट

Uttarakhand High Court उत्तराखंड में हो रहे अतिक्रमण पर अब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे हटाने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर कोर्ट में आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। बता दें कि दिल्ली के मुखर्जी नगर निवासी प्रभात गांधी के पत्र पर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की गई।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Thu, 27 Jul 2023 07:44 AM (IST)
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सड़कों और नदियों के किनारे का अतिक्रमण हटाएं: हाई कोर्ट
नैनीताल, जागरण संवाददाता। हाई कोर्ट ने उत्तराखंड में नेशनल व स्टेट हाईवे सहित अन्य सड़कों तथा नदियों के किनारे सरकारी और वन भूमि पर किया गया अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों व डीएफओ को अपने क्षेत्र के हाईवे सहित सड़कों के आसपास अतिक्रमण का जायजा लेने, अतिक्रमण को चिन्हित करने, हटाने की कार्ययोजना तैयार करने और कार्रवाई की रिपोर्ट फोटोग्राफ के साथ पेश करने के आदेश दिए हैं।

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में दिल्ली के मुखर्जी नगर निवासी प्रभात गांधी के पत्र पर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई हुई। प्रभात गांधी ने 19 जुलाई को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था। पत्र के साथ नैनीताल जिले में खुटानी से पदमपुरी तक सड़कों पर अतिक्रमण व नदियों में गंदगी डालने संबंधी फोटोग्राफ भी संलग्न किए गए थे। इस पत्र का कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में संज्ञान लिया।

चार हफ्ते में पेश करें रिपोर्ट

खंडपीठ ने जनहित याचिका का दायरा बढ़ाते हुए प्रदेश के सभी जिलाधिकारी तथा प्रभागीय वन अधिकारियों को नेशनल व स्टेट हाईवे सहित अन्य सड़कों के आसपास की नजूल, सरकारी, वन या अन्य प्रकार की भूमि पर किया गया अतिक्रमण हटाने के आदेश पारित किए हैं। चार सप्ताह के भीतर कोर्ट में आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।

नदी तट पर हो रहा अतिक्रमण

दिल्ली निवासी प्रभात गांधी ने मुख्य न्यायाधीश को भेजे पत्र में कहा है कि नैनीताल जिले में भीमताल से खुटानी मोड़ होते हुए पदमपुरी तक वन भूमि और नदी तट पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया जा रहा है। विनायक से आगे यात्रियों की सुविधा के लिए बनाए गए रेन शेल्टर पर एक व्यक्ति ने कब्जा कर लिया है। वह वहां पर अपनी दुकान चला रहा है। इसी जगह के पास कोई व्यक्ति अतिक्रमण करते हुए वहां एक मंदिर बनाने की तैयारी कर रहा है।

नदी को भी कर रहे दूषित

इसी सड़क पर वन विभाग के चेक पोस्ट के पास वन क्षेत्र में एक व्यक्ति एक ढाबा चला रहा है। जो न केवल क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों के लिए हानिकारक है बल्कि इससे ट्रैफिक जाम भी होता है। ढाबा मालिक ढाबे में शराब भी परोसता है। आगे लोहे के पुल से कुछ दूरी पर रेस्टोरेंट मालिक ने नदी के किनारे अतिक्रमण कर लिया है। सारा कचरा नदी में फेंक दिया जाता है। यहां कलसा नदी के किनारे कालसी कैंप के नाम से कई टेंट लगाए हैं।

नदी के किनारे और तंबू के किनारे शौचालय भी बना दिया है और सारा कचरा व मल-मूत्र नदी में बहाया जा रहा है। यहां एक फार्म तथा उसके सामने नहला गांव में भी बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण कर व्यावसायिक भवन बनाने की तैयारी है। अल्चौना, चांफी व नहला गांव सभी पक्षी अवलोकन क्षेत्र हैं और राष्ट्रीय मानचित्र पर हैं।

नदियों के किनारे है अतिक्रमण

अतिक्रमणकारियों ने आबादी और जंगल के अलावा नदियों के किनारे भी नहीं छोड़े। वन विभाग का मानना है कि राज्य में 23 नदियों के किनारे पर अतिक्रमण है, जिसमें हल्द्वानी की गौला, चोगरलिया की नंधौर के अलावा गंगा की सहायक नदियां भी शामिल हैं। विभाग भले कार्रवाई की बात करता हो, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले एक माह से अतिक्रमण विरोधी अभियान की रफ्तार भी सुस्त हो चुकी है।

अब बुधवार को हाई कोर्ट के सख्त निर्देश पर फिर से सक्रिय होना पड़ेगा। वन विभाग ने अप्रैल में अतिक्रमण के विरोध बड़े अभियान की शुरुआत की थी। कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक 11814.46 हेक्टेयर अवैध कब्जे वाली चिन्हित की गई थी।

इन नदियों पर अतिक्रमण

गौला, नंधौर, शारदा, दाबका, कोसी, गंगा, मालन, कालसी, जमुना, टौंस, सहस्त्रधारा, गंगा की सहायक नदियां भी इसमें शामिल है। अतिक्रमण की वजह से नदियां प्रदूषित हो रही है। क्योंकि, तमाम तरह के स्थायी व अस्थायी निर्माण इनके किनारों पर हुए हैं।

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