...तो क्या जाएगी उत्तराखंड के तीन हजार से अधिक शिक्षकों की नौकरी? हाई कोर्ट के एक फैसले से हड़कंप
Job with Fake Degree उत्तराखंड में नकली डिग्री के साथ नौकरी पाने वाले करीब तीन हजार शिक्षकों पर कार्रवाई की गई है। हाई कोर्ट ने इनमें से 26 शिक्षकों की बर्खास्तगी को सही ठहराया है। इन शिक्षकों ने अपनी बर्खास्तगी को कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि फर्जी दस्तावेजों से नियुक्त शिक्षकों की नियुक्ति शुरू से ही अमान्य है और उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा।
किशोर जोशी, जागरण नैनीताल। Job with Fake Degree: उत्तराखंड में करीब तीन हजार से अधिक शिक्षकों के शैक्षणिक दस्तावेज फर्जी होने का संदेह है। जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त ये शिक्षक बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश शिक्षकों ने जम्मू-कश्मीर, रुहेलखंड विश्वविद्यालय, चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ सहित अन्य विवि से शैक्षणिक दस्तावेज व बीएड की डिग्री फर्जी तरीके से हासिल की हैं।
सरकार की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआइटी) अब तक जांच के बाद 84 शिक्षकों के दस्तावेजों को फर्जी साबित कर चुका है। सरकार ने ऐसे 52 शिक्षकों को बर्खास्त भी कर दिया है।
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विवि के जवाब ने खोली फर्जीबाड़े की पोल
फर्जी दस्तावेजों से नियुक्त सरकारी शिक्षकों की बर्खास्तगी को हाई कोर्ट ने सही ठहराया
हाई कोर्ट ने फर्जी दस्तावेजों के जरिये नियुक्त सरकारी शिक्षकों की 26 याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार की ओर से की गई बर्खास्तगी कार्रवाई को सही ठहराया है। कार्रवाई के बाद ये शिक्षक धोखाधड़ी के आरोपों का सामना कर रहे हैं। इन शिक्षकों ने अपनी बर्खास्तगी को कोर्ट में चुनौती देते हुए आरोप लगाया था कि उनके मामलों की जांच उचित तरीके से नहीं की गई है।
हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने रुद्रप्रयाग में नियुक्त हुए शिक्षक विक्रम सिंह नेगी व अन्य की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। 2020 में फर्जी दस्तावेज पेश करके बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को मामले की गहनता से जांच करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद सरकार की ओर से इन शिक्षकों के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) का गठन किया था।
एसआइटी जांच के दौरान यह भी पता चला कि 26 जालसाजों में से दो ने शिक्षक बनने के लिए एससी-एसटी का फर्जी जाति प्रमाण पत्र भी पेश किया था। जाली दस्तावेजों के आधार पर ये सहायक अध्यापक प्राथमिक के पद पर 2005 और उसके बाद नियुक्त हुए थे। इसमें से अधिकांश ने नियुक्ति से संबंधित दस्तावेजों में उत्तर प्रदेश के मेरठ और आगरा के विश्वविद्यालयों से बीएड की डिग्री संलग्न की थी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने बताया कि राज्य में अब तक 52 ऐसे शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया है। 17 अन्य को नोटिस जारी किए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि अनुशासनात्मक जांच राज्य कर्मचारियों पर लागू अनुशासन और अपील नियमों के अनुसार नहीं की गई थी। जांच में कुछ खामियां थीं। हाई कोर्ट ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर यह बयान देने का साहस नहीं दिखाया है कि नियुक्ति पाने के लिए प्रस्तुत सभी शैक्षिक प्रमाण पत्र वास्तविक हैं।
याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति अधिकारियों की ओर से किसी गलती के कारण नहीं बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के कारण हुई थी। उनकी सेवाओं को समाप्त करने के लिए दी गई चुनौती अस्थिर है। कोर्ट के इस आदेश से फर्जी शिक्षकों का फिर से सेवा में वापसी के रास्ता फिलहाल बंद हो गया है।