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किसानों की जमीन पर अपना महल खड़ा कर रहा उत्‍तराखंड टी बोर्ड

जनपद को दार्जलिंग की तर्ज पर विकसित करने के लिए उत्तराखंड टी बोर्ड ने दर्जनों गांवों में सैकड़ों किसानों से करीब 14 वर्ष पूर्व करीब 219 हेक्टेयर भूमि लीज पर ली। पर इसका कोई उन्‍हें प्रतिफल नहीं मिला।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 20 Jan 2019 08:10 PM (IST)
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किसानों की जमीन पर अपना महल खड़ा कर रहा उत्‍तराखंड टी बोर्ड
चम्पावत, विनय कुमार शर्मा : जनपद को दार्जलिंग की तर्ज पर विकसित करने के लिए उत्तराखंड टी बोर्ड ने दर्जनों गांवों में सैकड़ों किसानों से करीब 14 वर्ष पूर्व करीब 219 हेक्टेयर भूमि लीज पर ली। जमीन लीज पर लेते हुए बोर्ड ने किसानों को सात वर्ष बाद 20 प्रतिशत मुनाफा देने का बांड भी किया। मगर इसको पूरा हुए भी सात साल बीत गए। मगर किसानों को आज तक न तो बांड देखने को मिला और न ही मुनाफा। उल्टा किसान अपनी ही लीज पर दी हुई जमीन पर मजदूरी कर अपना गुजर बसर कर रहा है। इन जमीनों से चाय बोर्ड प्रतिवर्ष हजारों किग्रा चाय बेचकर लाखों रुपये का मुनाफा उठाकर अपना महल खड़ा कर रहा है मगर किसानों के दर्द का बोर्ड को एहसास तक नहीं है। किसान कई बार बोर्ड से अपनी जमीन वापस देने की मांग कर चुके हैं मगर बोर्ड है कि सुनने को तैयार ही नहीं है। बोर्ड किसानों की जमीन से आमदनी पर आमदनी कर रहा है और किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। 

आज नहीं देखा कैसा है बांड

टी बोर्ड द्वारा लीज पर ली गई च्यूरा खर्क गांव की करें तो वहां के दर्जनों किसानों ने अपनी करीब 600 नाली जमीन टी बोर्ड को लीज पर इस लाभ से दी कि सात साल ही बाद ही सही कम से कम कुछ आय तो होगी। मगर उन्हें क्या पता था कि सात साल क्या 14 वर्ष बाद भी उन्हें मुनाफा नहीं मिलेगा। किसानों ने जमीन लीज पर देकर बांड करा दिया लेकिन आज तक बोर्ड ने किसानों को बांड नहीं दिया। किसानों का कहना है कि उन्हें आज तक बांड भी देखने को नहीं मिला। मुनाफा तो दूर की बात है।

अपनी ही जमीन पर कर रहे हैं मजदूरी

जंगली जानवरों द्वारा नष्ट की जा रही फसल से परेशान होकर किसानों ने मुनाफे की आस में अपनी जमीन चाय बोर्ड को लीज पर दी। लीज पर देने के बाद उन्हें क्या पता था कि मुनाफा नहीं मिलेगा बल्कि अपनी ही जमीन पर उन्हें मजदूरी करनी पड़ेगी। अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने वाले महिला किसानों ने बताया कि उन्हें बोर्ड द्वारा छह दिन कार्य करने पर 230 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है। इसके अलावा 14 दिन मनरेगा से 175 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलते हैं। यानि एक माह में सिर्फ 20 दिन काम मिलता है। जिन किसानों के खेत लीज पर नहीं है और वह वहां कार्य करते हैं तो उन्हें सिर्फ 12 दिन मनरेगा से रोजगार दिया जाता है।

नहीं मिलता कोई लाभ

ग्रामीणों ने कहा कि टी बोर्ड को जमीन लीज पर देने के बाद अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता। कारण कि प्रशासन द्वारा कहा जाता है कि मनरेगा द्वारा रोजगार दिया जा रहा है। ग्राम विकास, स्वजल, जलागम से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। हां वायफ ने जरूर खेती के लिए कुछ पॉलीहाउस दिए हैं। दीवारों के टूटने या फिर अन्य निर्माण कार्य के लिए पंचायत के चक्कर काटने पड़ते हैं।

इन क्षेत्रों में हो रही चाय की खेती

जनपद के छिड़ापनी, दुग्धपोखरा सिलिंगटॉक, लमाई, च्यूरा खर्क, भगाना, गड़कोट, नरसिंह डांडा, धुरा, कालूखान, गोस्नी, खूनाबोरा, खेतीगाड़, बलाई, चौकी, लधौन फोर्ती, मौराड़ी, मझेड़ा, मंच के करीब 22 स्थानों में 219 हेक्टेयर में चाय की खेती की जाती है। जिसमें 384 काश्तकारों की जमीन शामिल हैं।

दस हजार किग्रा होता है प्रति वर्ष उत्पादन

उत्तराखंड टी बोर्ड के अनुसार 219 हेक्टेयर भूमि में करीब 10 हजार प्रतिवर्ष चाय का उत्पादन होता है। जो कलकत्ता में ई-ऑक्सर के जरिए 252 लोग खरीदते हैं। विदेश में भी इसकी सप्लाई की जाती है। 40 रुपये से 600 रुपये प्रति किग्रा कैटेगरी के हिसाब से बिक्री की जाती है। बोर्ड प्रतिवर्ष चाय से लाखों रुपये का मुनाफा उठा रहा है मगर वह अब भी किसानों को मुनाफा देने के नाम पर मूल्य निर्धारण किए जाने की बात का रोना रो रहा है।

क्या कहते हैं काश्तकार

टी बार्ड को इसलिए जमीन दी कि दो पैसे बचेंगे। परिवार का पालन पोषण कर सकेंगे। आज 14 साल से अधिक समय बीत गया लेकिन बोर्ड से फूटी कौड़ी मुनाफा नहीं हुआ। अपनी जमीन होकर भी उनके पास नहीं है।

- आरडी खर्कवाल, किसान

टी बार्ड ने हमारी जमीनों को लीज पर लेकर हमारे साथ ठगी है। हमारी जमीनों पर टी बोर्ड खुद मालिक बनकर बैठा है। मोटा मुनाफा कमा रहा है। सात साल बाद लीज पर जमीन देने के बाद 20 फीसद मुनाफा देने को कहा था लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला।

- प्रदीप खर्कवाल, किसान

जंगली जानवरों से परेशान होकर अपनी जमीन टी बोर्ड को दी। जिससे चार पैसे बच जाएंगे लेकिन मुनाफा तो छोडि़ए आज अपनी ही जमीन पर मजदूरी कर रहे हैं। मजदूरी करेंगे तो पैसे मिलेंगे वरना वो भी नहीं। कई बार टी बोर्ड को जमीन छोडऩे के लिए कहा लेकिन वह जमीन भी नहीं छोड़ रहे हैं।

- कलावती देवी, महिला किसान

उत्तराखंड टी बोर्ड को जमीन देकर कोई फायदा नहीं हुआ। जिनकी जमीन है उन्हें टी बोर्ड द्वारा छह दिन की तथा मनरेगा द्वारा 14 दिन की मजदूरी दी जाती है। बाकी दस दिन खाली है। हम अपनी ही जमीन पर मजदूरी कर रहे हैं। और इसका फायदा टी बोर्ड उठा रहा है। सात साल के सपने दिखाए थे जो सपने ही बनकर रह गए हैं।

- गायत्री देवी, किसान

 

प्रदेश में चाय की हरी पत्ती के मूल्य निर्धारण के बाद किसानों को 20 प्रतिशत मुनाफा दिया जाएगा। इसके लिए प्रक्रिया शासन में गतिमान है। इसको लेकर कई बार प्रस्ताव शासन में भेजा भी चुका है। शासन द्वारा निर्धारण तय होने के बाद मुनाफा दिया जाएगा।

- डेंसमेंड, मैनेजर, उत्तराखंड टी बोर्ड

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