उत्तराखंड टी बोर्ड चाय उत्पादन कर लाखों कमा रहा, लेकिन लीज पर जमीन देने वाले किसानों को नहीं दे रहा उनका हक
जनपद को दार्जलिंग की तर्ज पर विकसित करने के लिए उत्तराखंड टी बोर्ड ने जनपद के दर्जनों गांवों में सैकड़ों किसानों से करीब 14 वर्ष पूर्व करीब 219 हेक्टेयर भूमि लीज पर ली।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 15 Nov 2019 12:53 PM (IST)
चम्पावत, विनय कुमार शर्मा : उत्तराखंड के चंपावत जिले को दार्जलिंग की तर्ज पर विकसित करने के लिए उत्तराखंड टी बोर्ड ने जनपद के दर्जनों गांवों में सैकड़ों किसानों से करीब 14 वर्ष पूर्व करीब 219 हेक्टेयर भूमि लीज पर ली। जमीन लीज पर लेते हुए बोर्ड ने किसानों को सात वर्ष बाद 20 प्रतिशत मुनाफा देने का बांड भी किया। मगर इसको पूरा हुए भी सात साल बीत गए। मगर किसानों को आज तक न तो बांड देखने को मिला और न ही मुनाफा।
कुछ यही हाल मंच में कुमाऊं मंडल विकास निगम के माध्यम से 2016 में शुरू हुए चाय बगान में किसानों को मिल रहा है। चाय बागान के शुरू होने पर टी बोर्ड ने प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को रोजगार देने का वादा तो किया लेकिन वह वादा तो सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गया। टी बोर्ड किसानों को मात्र पांच से आठ दिन का रोजगार दे रहा है। यही नहीं उसकी मजदूरी भी मनरेगा के हिसाब से दे रहा है। किसान अपनी ही लीज पर दी हुई जमीन पर मजदूरी कर अपना गुजर बसर कर रहा है। इन जमीनों से चाय बोर्ड प्रतिवर्ष हजारों किग्रा चाय बेचकर लाखों रुपये का मुनाफा उठाकर अपनी झोली भर रहा है। पर उसे किसानों के दर्द का बोर्ड को एहसास तक नहीं है। किसान कई बार बोर्ड से अपनी जमीन वापस देने की मांग कर चुके हैं। किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है।
मनरेगा मजदूरी से नहीं पल सकते परिवार
मंच में चाय बागान के लिए अपनी जमीन देने वाले किसानों का कहना है कि सीमांत क्षेत्र में कुमाऊं मंडल विकास निगम के माध्यम से 2015-16 में चाय बागान लगाने की कवायद हुई। टी बोर्ड प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को पांच से आठ दिन का रोजगार तो दे रहा है लेकिन मजदूरी मनरेगा के तय मानक के अनुसार 182 रुपये प्रतिदिन का मिल रहा है, जबकि बोर्ड 316 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी दे रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि मनरेगा की मजदूरी से परिवार का पालन पोषण नहीं हो सकता। जिससे उन्हें काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण रंजना देवी, ललिता देवी, जानकी देवी, कमला देवी, पूजा देवी, आशा देवी, पुष्पा देवी, माया देवी आदि ने टी बोर्ड द्वारा तय मजदूरी देने की मांग की है।
अपनी ही जमीन पर कर रहे हैं मजदूरी
जंगली जानवरों द्वारा नष्ट की जा रही फसल से परेशान होकर किसानों ने मुनाफे की आस में अपनी जमीन चाय बोर्ड को लीज पर दी। लीज पर देने के बाद उन्हें क्या पता था कि मुनाफा नहीं मिलेगा बल्कि अपनी ही जमीन पर उन्हें मजदूरी करनी पड़ेगी।नहीं मिलता कोई लाभ ग्रामीणों ने कहा कि टी बोर्ड को जमीन लीज पर देने के बाद अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता। कारण कि प्रशासन द्वारा कहा जाता है कि मनरेगा द्वारा रोजगार दिया जा रहा है। ग्राम विकास, स्वजल, जलागम से किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। बायफ ने जरूर खेती के लिए कुछ पॉलीहाउस दिए हैं। दीवारों के टूटने या फिर अन्य निर्माण कार्य के लिए पंचायत के चक्कर काटने पड़ते हैं।
इन क्षेत्रों में हो रही चाय की खेती जनपद के छिड़ापनी, दुग्धपोखरा सिलिंगटॉक, लमाई, च्यूरा खर्क, भगाना, गड़कोट, नरसिंह डांडा, धुरा, कालूखान, गोस्नी, खूनाबोरा, खेतीगाड़, बलाई, चौकी, लधौन फोर्ती, मौराड़ी, मझेड़ा, मंच के करीब 22 स्थानों में 219 हेक्टेयर में चाय की खेती की जाती है। जिसमें 384 काश्तकारों की जमीन शामिल हैं।किसानों को दिया जाएगा 20 फीसद मुनाफा
उत्तराखंड टी बोर्ड के मैनेजर डेंसमेंड ने इस बारे में बताया कि प्रदेश में चाय की हरी पत्ती के मूल्य निर्धारण के बाद किसानों को 20 प्रतिशत मुनाफा दिया जाएगा। इसके लिए प्रक्रिया शासन में गतिमान है। इसको लेकर कई बार प्रस्ताव शासन में भेजा भी चुका है। शासन द्वारा निर्धारण तय होने के बाद मुनाफा दिया जाएगा। मजदूरी किसानों को शासन द्वारा तय मनरेगा के हिसाब से दी जाती है। बोर्ड की तय मजदूरी भी बजट रहने तक दी जाती है। अभी मंच में चाय बागान क्षेत्र से अभी उतना मुनाफा भी नहीं हो रहा है।
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