नैनीताल की पहाड़ियों पर मिली सिक्किम की डार्क सफायर तितली
देश में सिर्फ सिक्किम व असम में पाई जाने वाली डार्क सफायर नामक प्रजाति की तितली नैनीताल की पहाड़ियों पर मिली है।
By Edited By: Updated: Wed, 19 Sep 2018 04:12 PM (IST)
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी : देश में सिर्फ सिक्किम व असम में पाई जाने वाली डार्क सफायर नामक प्रजाति की तितली पहली बार उत्तराखंड के नैनीताल की पहाड़ियों पर भी मिली है। तितलियों के बारे में रिसर्च करने वाली वॉक इन द वुड्स संस्था ने वन विभाग के विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस प्रजाति को खोजा है। इसके अलावा 80 साल बाद गिरोसिस फिसरा नामक प्रजाति की तितली भी कैमरे में कैद हुई है। संस्था की ओर से नैनीताल के आसपास की पहाड़ियों पर दो दिन तक 'बटरफ्लाई वॉक एवं फोटोग्राफी' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नैनीताल के किलबरी, पंगूट, विनायक व ज्योलीकोट के आसपास तितलियों की नई प्रजाति ढूंढने को 15 लोगों की टीम ने अभियान चलाया। तितली विशेषज्ञ डॉ. शंकर सिंह, सेवानिवृत्त प्रमुख वन संरक्षक परमजीत सिंह के अलावा व्यक्तिगत तौर पर गौलापार स्थित अंतरराष्ट्रीय चिड़ियाघर के डिप्टी डायरेक्टर गोपाल सिंह कार्की ने टीम को गाइड किया। इस दौरान ज्योलीकोट के नलेना गांव में टीम ने दो दुर्लभ प्रजतियों की तितलियों को कैमरे में कैद किया। रिकॉर्ड से मिलान करने पर पता चला कि एक डार्क सफायर और दूसरी गिरोसिस फिसरा है। गिरोसिस 80 साल पूर्व कुमाऊं में देखी गई थी। वर्तमान में यह प्रजाति उड़ीसा व नॉर्थ ईस्ट के कुछ राज्यों में ही देखी गई है। कुल 65 प्रजातियां ढूंढी सर्च ऑपरेशन के दौरान टीम ने तितलियों की कुल 65 प्रजातियों को तलाशा। एक तितली शेड्यूल वन की भी मिली है। हालांकि उसका फोटो साफ नहीं होने के कारण इस बारे में अन्य विशेषज्ञों से राय लेने के बाद स्थिति साफ होगी। उत्तराखंड में इससे पूर्व तितलियों की 550 प्रजातियां रिपोर्ट हैं। इनमें चार शेड्यल एक की हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में इस शेड्यूल में बाघ, हाथी व तेंदुआ आता है। हमेशा फुट हिल में मिली डार्क सफायर का वैज्ञानिक नाम हैलियोफोरस इंडिक्स है। इसे सामान्य भाषा में इंडियन पर्पल सफायर भी कहा जाता है। वहीं, गिरोसिस को आम भाषा में डस्की यलो फ्लेट नाम से जाना जाता है। जहां से पहाड़ियों की शुरुआत होती है, उस इलाके में मिलने के कारण इन्हें फुट हिल्स की तितली भी कहते हैं। प्रदेश हर लिहाज से समृद्ध डॉ. शंकर कुमार, तितली विशेषज्ञ, नैनीताल ने बताया कि तितलियों की आयु से एक से चार सप्ताह तक होती हे। दो दुर्लभ तितलियों का मिलना बड़ी बात है। उत्तराखंड हर लिहाज से समृद्ध है। लगातार सर्वे करने पर कई अन्य दुर्लभ प्रजाति यहां दिख सकती हैें।
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