घास को आस में बदल रहीं महिलाएं, मलेशिया तक धूम
थारू जनजाति की साधारण सी महिलाओं ने अपने हुनर की मलेशिया तक धूम मचाई है। घास से बनाए गए इनके उत्पादों को अब विदेशी बाजार मिलना शुरू हो गया है।
हल्द्वानी, [गणेश पांडे]: कहने को ये थारू जनजाति की साधारण सी महिलाएं हैं, लेकिन इनके हाथों में असाधारण हुनर है। घास को खास आकार देकर इन्होंने अपने जीवन को नई आस और एक खास मकसद दे दिया।
घास से बनाए गए इनके फूलदान, श्रृंगार दान और सुंदर टोकरियों को अब विदेशी बाजार मिलना शुरू हो गया है। यह इनकी मजबूत इच्छाशक्ति और मन से की गई मेहनत का ही परिणाम है।
कुश घास से बनाती हैं उत्पाद
यह कहानी है उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले में रहने वाले थारू परिवारों की महिलाओं की। इन्होंने यहां बहुतायत में उगने वाली कुश नामक घास को अपनी तरक्की का आधार बनाया। इनके बनाए हस्त निर्मित उत्पादों को एक नई पहचान मिली है। घास से बनाए गए ये उत्पाद महिला समूह के माध्यम से मलेशिया को निर्यात किए जा रहे हैं।
काम आया प्रशासन का सहयोग
जिले के सितारगंज और खटीमा ब्लॉक में रहने वाली थारू महिलाएं परंपरागत रूप से टोकरी निर्माण का काम करती आई हैं। लेकिन प्रशासन ने इनकी इस प्रतिभा को नया आयाम देने का प्रयास किया तो नई राहें बनती गईं। साल 2002 में स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत इन महिलाओं को समूहों के रूप में संगठित किया गया।
दो साल पहले समूहों को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गोद लेकर इनके द्वारा तैयार उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने का काम शुरू हुआ। सितारगंज ब्लॉक के नकुलिया गांव में लक्ष्मी और दुर्गा स्वयं सहायता समूह की 20 महिलाएं इस समय हैंडी क्राफ्ट बना रही हैं।
सितारगंज की बीडीओ मीना मैनाली के अनुसार देशभर में लगने वाले राष्ट्रीय सरस मेले में महिलाओं के बनाए उत्पाद बिकते हैं। पिछले साल दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे स्टॉल में मलेशिया को निर्यात करने वाली एक एजेंसी ने इनके उत्पादों में रुचि दिखाई। 16 जनवरी को पहली खेप मलेशिया भेजी गई है। अब मलेशिया से आ रही डिमांड के अनुरूप ये उत्पाद तैयार करने में जुट गई हैं।
ये उत्पाद हो रहे निर्यात
कुश घास से विभिन्न डिजाइन के फूलदान, फल की टोकरी, मेकअप बॉक्स, फ्लावर पॉट, श्रृंगार बॉक्स आदि तैयार किए जा रहे हैं। भारतीय बाजारों में इनकी कीमत 50 रुपये से 300 रुपये तक है, तो मलेशिया भेजने पर 150 रुपये से 800 रुपये प्रति नग कीमत मिल रही है।
बरसात में मिलती है घास
दुर्गा स्वयं सहायता समूह की सदस्य बब्बी राणा बताती है कि कुश घास के बने उत्पाद अधिक मुलायम, रंगीन और आकर्षक होते हैं, इसलिए इनकी मांग अधिक रहती है। कुश घास नदियों के आसपास अधिक पाई जाती है। बरसात के दिनों में महिलाएं जंगल जाकर इसे काट लेती हैं। बाद में धूप में सुखाने के बाद जरूरत के अनुरूप सामग्री बुने जाते हैं।
क्या है कुश घास
कुश घास का वैज्ञानिक नाम एरग्रास्टिस साइनोसोरिड्स है। इसकी पत्तियां नुकीली, तीखी व कड़ी होती हैं। हैंडी काफ्ट के साथ इसकी चटाई भी बनती है। कुश पानी में एकाएक खराब नहीं होता। इसे धार्मिक अनुष्ठानों में भी इस्तेमाल किया जाता है।
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