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पहाड़ की व्यथा बयां करने के साथ जमीर जगाने की कोशिश है उत्तराखंडी फिल्म माटी पछ्यांण

Uttarakhandi film Maati Pachayan रमदा यानी अजय बेरी ने निर्देशन के साथ छाप छोडऩे वाला अभिनय भी किया है। साउंड व छायांकन में अच्छे प्रयोग के साथ पहाड़ की पुरानी चीजों को पर्दे पर लाने की कुछ कोशिश दिखती है।

By ganesh pandeyEdited By: Rajesh VermaUpdated: Sat, 24 Sep 2022 04:19 PM (IST)
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माटी बिकने की पीड़ा बयां करती 'माटी पछ्यांण' आखिर में पहाड़ बचाने को सोचने पर विवश कर जाती है।
गणेश पांडे, हल्द्वानी : Uttarakhandi film Maati Pachayan : माधुरी परीक्षा में फस्र्ट आई है। बेटी की कामयाबी से राधिका की खुशी का ठिकाना नहीं है। ईजा! तेरि चेलि फस्र्ट ऐरे। माधुरी के ये कहने पर ईजा के मुंह से निकला 'सच्ची'। 'अच्छा त्यार बौज्यू भितेर छन, उननकैं लै बता दे.. जा जा..।' भागते हुए पिता के पास पहुंची माधुरी के 'बाबू मैं फस्र्ट पास है ग्यू' कहने पर अच्छा, शाबास कहते हुए मोहन ने उसकी ईजा राधिका की तरफ मुखातिब होते हुए कहा, 'अरे बजार जणैयू मैं, क्ये लौंण छ'। मिठाई छोड़कर, जो तुम्हें समझ आएगा ले आना।'

यह कहते हुए माधुरी ने पूजा के सामान की एक बार फिर याद दिला दी। 'हो होई ली औन। मिठाई लै ली औन मैं'। दो टूक बोलने वाले मोहन सिंह के मुंह से ये सुन माधुरी व उसकी ईजा के मुख पर इस बार सहज हंसी बिखरी थी। मोहन की प्रतिक्रिया बता रही है कि बेटी की कामयाबी से उसे भी खुशी है, कोई वजह है जिस कारण खुशी को वह अंदर दबा रहा है।

आगे की पढ़ाई को शहर जाने की जिद कर रही माधुरी व उसकी ईजा का मुंह मोहन ने बंद करा तो दिया, लेकिन पीछे-पीछे वह पैसे जुटाने की जुगत में लगा है। बंटवारे में अपने हिस्से आए पुस्तैनी जमीन के टुकड़े का सौंदा करने को वह लछमियां के साथ भी तो बैठा था।

मजबूरी में पड़े व्यक्ति की जमीन का सौदा करने, उसे एहसान तले दबाने में लछमियां पारंगत जो है। पिछले दिनों श्याम की जमीन हथियाते समय छलमियां ने जो शब्द कहे थे, अब भी श्याम के कानों में गूंज रहे हैं। 'छोड़ यो गौं मोह-माया। के न धर राखि यां, भल करो जमीन निकाल दे।' सौदे के अनुसार रकम नहीं मिली कहने पर श्याम को जवाब मिला, 'आज तलक यो जमीनैलि त्वी कैं क्या दे? बेचभेर क्ये न क्ये दिभेर त जनै..।'

लछमियां की कई कोशिश के बावजूद राधिका ने अपने जीते-जी जमीन का टुकड़ा बिकने नहीं दिया। राधिका के किरदार में चंद्रा बिष्ट व मोहन की भूमिका में आकाश नेगी ने सबसे उभरकर आए हैं। प्रधानजी के रोल में पदमेंदर रावत भी प्रभावित करते हैं। लछमियां के किरदार में नरेश बिष्ट सटीक बैठते हैं। मूंछों पर ताव देने 'लछमियां त्यर काम तो है ग्यो' कहना, मोहन की बड़ी आंख दिखाकर 'म्यार घर तरफ आंख उठाभेर लै देख न त्वीली, तो मां कसम जड़ काटि द्योल तेरी जड़' बताते हैं कुछ अच्छे संवाद भी रचे हैं।

नायिका माधुरी यानी अंकिता परिहार व नायक देव यानी करन गोस्वामी का अभिनय भी बेहतर कहा जाएगा। साथ स्कूल की शुरुआत करने वाले देव-माधुरी का बिछडऩे के बाद फिर मिलना कुछ सप्पेंस देता है। प्रधानजी की ऊंची नाख देव-माधुरी के बीच प्रेम में दीवार का काम करती है। कुमाउनी बोली में देव-माधुरी समेत अन्य युवा कलाकारों की पकड़ बहुत मजबूत नहीं दिखती। जहां लगता है कि संवाद के स्तर पर कुछ ओर काम हो सकता था।

रमदा यानी अजय बेरी बड़े चुलबुले हैं। उन्होंने निर्देशन के साथ छाप छोडऩे वाला अभिनय भी किया है। साउंड व छायांकन में अच्छे प्रयोग के साथ पहाड़ की पुरानी चीजों को पर्दे पर लाने की कुछ कोशिश दिखती है। उत्तराखंडी संस्कृति को भी पर्दे पर लाने का प्रयास दिखा है। माटी बिकने की पीड़ा बयां करती 'माटी पछ्यांण' आखिर में भावुक करने के साथ पहाड़ बचाने को सोचने पर विवश कर जाती है। फिल्म देखी जानी चाहिए।

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