नहीं रहा उत्तराखंडी लोक संगीत का 'हीरा', दिल्ली में हुआ निधन, रंगिली बिंदी घाघरी काई से मिली थी पहचान
जनगीतकार और लोक कवि हीरा सिंह राणा हमारे बीच नहीं रहे। वह 78 वर्ष के थे। मूलरूप से अल्मोड़ा जिले के मानिला निवासी हीरा राणा ने शनिवार तड़के दिल्ली में अपने आवास पर आखिरी सांस ली।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 13 Jun 2020 09:50 AM (IST)
हल्द्वानी, नैनीताल, मानिला, जेएनएन : लोक की थाती, जनगीतकार और लोक कवि हीरा सिंह राणा हमारे बीच नहीं रहे। वह 78 वर्ष के थे। मूलरूप से अल्मोड़ा जिले के मानिला निवासी हीरा राणा ने शनिवार तड़के दिल्ली में अपने आवास पर आखिरी सांस ली। मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा उत्तराखंड के गिनेचुने कलाकारों में शरीक थे। उनके निधन से उत्तराखंडी लोक संगीत को गहरी क्षति पहुंची है। हीरा सिंह राणा के गीतों में लोक संस्कृति रची बसी होती थी। वह अपनी गायकी के गजब के फनकार थे। उनके गीतों में लोक की महक उठती थी। उनके निधन के साथ उत्तराखंडी लोक संस्कृति के युग का अंत हो गया। हिरदा कुमाऊंनी के नाम से भी पुकारे जाने वाले हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ। उनकी माता स्व नारंगी देवी और पिता स्व मोहन सिंह थे।
15 साल की उम्र से उतरे थे मंच पर
प्राथमिक शिक्षा मानिला से ही हासिल करने के बाद वे दिल्ली में नौकरी करने लगे। नौकरी में मन नहीं रमा तो संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊंनी संगीत की सेवा करते रहे। वह 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे। कैसेट संगीत के युग में हीरा सिंह राणा के कुमाउंनी लोक गीतों के एलबम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे जमाना जबर्दस्त हिट रहे।
अस्वस्थ होने के बावजूद संक्रिय रहेराणा को ठेठ पहाड़ी विम्बों-प्रतीकों वाले गीतों के लिए जाना जाता है। वह लम्बे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद कुमाऊंनी लोकसंगीत की बेहतरी के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे। उनके निधन से उत्तराखंड के लोकसंस्कृति, कला जगत में शोक छा गया है। लोक कलाकारों ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है।
गढ़वाली, कुमाऊंनी-जौनसारी भाषा अकादमी के थे उपाध्यक्ष
लोक भाषा को आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश की सरकारें भले कुछ नहीं कर पाई हो, लेकिन पिछले साल दिल्ली सरकार ने गढ़वाली, कुमाऊंनी-जौनसारी भाषा अकादमी गठित की थी। हीरा सिंह राणा को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था। पिछले साल हल्द्वानी आए हीरा सिंह राणा ने बताया कि अकादमी के जरिये वह उत्तराखंडी लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि जिस काम को उत्तराखंड की सरकारों को करना चाहिए थे उसे दिल्ली सरकार कर रही है।
पिछले साल पहुंचे थे गांवहीरा सिंह राणा पिछले वर्ष ही मनिला के समीप स्थित पैतृक गांव डढोली पहुंचे थे। हीरा सिंह पांच भाइयों में सबसे बड़े थे। संगीत से गहरा लगाव रखने के कारण हीरा सिंह राणा का विवाह बहुत देर में हुआ। पारिवारिक सदस्यों और शुभचिंतकों के बार बार आग्रह के बाद उन्होंने लगभग 52 वर्ष की उम्र में विवाह किया। वर्तमान में उनकी पत्नी विमला राणा व एक पुत्र है। हीरा सिंह राणा को अपनी जन्मभूमि से विशेष लगाव था। संगीत की दुनिया से थोड़ी फुर्सत मिलने पर वे अपने गांव आ जाते थे। गांव और क्षेत्र के लोगों से मिलते । पिछले वर्ष कूल्हे की चोट के बाद भी वह मानिला आये थे। मिलनसार व्यक्तित्व के धनी राणा लोगों से मिलकर बेहद खुश होते थे। शनिवार सुबह स्वर सम्राट के निधन की सूचना के बाद समूचे मानिला क्षेत्र व उनके पैतृक गांव डढोली में शोक छा गई। क्षेत्रीय विधायक सुरेंद्र जीना, पूर्व विधायक रणजीत रावत, ब्लाक प्रमुख विक्रम रावत, प्रमुख पूर्व ज्येष्ठ प्रमुख कुंदन बिष्ट समेत राजनैतिक व सामाजिक जगत से जुड़े लोगों ने राणा के निधन को अपूर्णीय क्षति बताते हुए शोक जताया है।
हीरा सिंह राणा के चर्चित गीत -रंगीली बिंदी घाघरी काई, ओ धोती लाल किनार वाली..-मेरी मानिला डानी हम तेरी बलाई ल्यूला..-आजकल हैरे ज्वाना मेरी नौली पराणा..-धनुली धन तेरो पराणा-लस्का कमर बांध हिम्मत का साथा..-के संध्या झूली रे..-के भलो मान्यो छ हो..-आ लिली बाकरी लिली..यह भी पढें
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