गंगा तट पर सुनी थी बांसुरी की मधुर आवाज, सीखने की लगन ने पहुंचा दिया थाइलैंड
साहस वाले वैभव नहीं चुना करते, असफलता पर मस्तक नहीं धुना करते, पग-पग पर आगे बढऩे का अभ्यास जिन्हें है, वह लोग मीलों के पत्थर नहीं गिना करते।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 05 Dec 2018 08:34 PM (IST)
विनोद पपनै, रामनगर : साहस वाले वैभव नहीं चुना करते, असफलता पर मस्तक नहीं धुना करते, पग-पग पर आगे बढऩे का अभ्यास जिन्हें है, वह लोग मीलों के पत्थर नहीं गिना करते। यह शब्द रामनगर निवासी विनीत रिखाड़ी पर शायद सटीक बैठती है। जिन्होंने संगीत की दुनिया में बांसुरी वादन को चुना और आज वह अपनी बांसुरी की धुन से देश में ही नहीं विदेश में भी उत्तराखंड का नाम रोशन करने के लिए निकल पड़े हैं।
उत्सव 2011 का गायकी का मिला अवार्ड जिसका जीता जागता प्रमाण है कि वह आठ से 10 दिसंबर तक थाइलैंड के व्यापारी प्रिंस राजेश की बेटी स्वीटी के विवाह समारोह में न केवल अपनी बांसुरी की मधुर धुन से लोगों का दिल जीतेंगे बल्कि अपनी आवाज के जादू से अतिथियों का स्वागत भी करेंगे। उनके साथ हल्द्वानी की उभरती हुई एंकर हल्द्वानी निवासी अक्की मेहता भी रहेंगी। विनीत ने उत्तराखंड उत्सव 2011 का गायकी अवार्ड भी जीता है और अभी गायकी और बांसुरी के कई स्टेज शो कर रहे हैं।
फरवरी में ग्वालियर में प्रस्तावित है कार्यक्रम विनीत अभी तक नैनीताल, हल्द्वानी और रामनगर में कार्यक्रम कर लोगों की वाहवाही बटोर चुके हैं। फरवरी 2019 में ग्वालियर में उनका एक कार्यक्रम प्रस्तावित है। दो माह पूर्व जयपुर में विनीत के कार्यक्रम को देखकर थाइलैंड में भारतीय मूल के निवासी प्रिंस राजेश काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इसी दिसंबर को अपनी बेटी के विवाह में होने वाले कार्यक्रम के लिए उन्हें आमंत्रित कर लिया।
ऐसे सीखने का धुन हुआ सवार बांसुरी सीखने के सवाल पर विनीत कहते हैं कि 15 साल पहले वह कांवड़ लेने हरिद्वार गए थे। तभी गंगा तट पर एक बांसुरी बजाने वाले को देखा तो उनके मन में बांसुरी सीखने की धुन सवार हो गई। कहते हैं कि शुरू में उन्होंने रामनगर में स्व. हरीश शर्मा से बांसुरी बजाने सीखा। इसके बाद यूट्यूब पर ऑनलाइन क्लास से बांसुरी बजाना सीख लिया। वर्तमान में हरीश पंत जी से हल्द्वानी में क्लासिकल संगीत का प्रशिक्षण ले रहे हैं। कहते हैं कि संगीत की दुनिया में बांसुरी वादन का अपना आनंद है। इसमें सुर, और ताल की बारीकियों को जितना सीखा जाए वह भी कम है। कहते हैं कि अब जयपुर, ग्वालियर के अलावा और भी कई स्थानों पर उनके कार्यक्रम निर्धारित हो चुके है। अपने बेटे की इस उपलब्धि पर पिता रामदत्त रिखाड़ी और माता मुन्नी रिखाड़ी भी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं।
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