जवान होते प्रदेश को विकास का इंतजार : राज्य स्थापना दिवस आज
राज्य जवानी की दहलीज पर आ पहुंचा है। इसे बने हुए आज 18 साल पूरे हो गए हैं। अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन हुआ। पर आंदोलकारियों के मन में अभी भी उचित विकास न हो पाने की टीस है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 08 Nov 2018 08:46 PM (IST)
नैनीताल, (जेएनएन) : राज्य जवानी की दहलीज पर आ पहुंचा है। इसे बने हुए आज 18 साल पूरे हो गए हैं। अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन हुआ। लोगों ने सड़क से लेकर सदन तक हंगामा किया। उम्मीद थी कि अपना राज्य होगा तो उत्तराखंड का समग्र विकास संभव हो सकेगा। पर आंदोलनकारियों को अभी तक नहीं लगता है कि उनका सपना पूरा हुआ। नौ नवंबर स्थापना दिवस को लेकर आंदोलनकारियों से जागरण संवाददाता ने बात की तो उन्होंने राज्य के समग्र विकास के लिए राजनीतिक इच्छशक्ति और ठोस नीति की जरूरत बताई।
नेताओं की बढ़ी व्यक्तिगत आय : राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी कहते हैं कि राज्य का जितना बजट है, 18 साल में इससे अधिक नेताओं की व्यक्तिगत आय बढ़ गई। विधायकों ने भी पहाड़ छोड़कर हल्द्वानी और देहरादून में घर बना लिया। राज्य के विकास के लिए सही नीतियों की जरूरत है। आधुनिक तरीके से पर्यटन को बढ़ाया जाना चाहिए।आंदोलनकारियों को होना होगा सक्रिय : राज्य आंदोलनकारी विजय भट्ट कहते हैं कि आंदोलनकारियों को स्वार्थ छोड़कर राज्य हित के लिए काम करना होगा। केंद्र और राज्य सरकार की ओर से किए गए तमाम कार्य संतोषजनक हैं। भविष्य में सड़कों व हवाई सेवा से रोजगार बढ़ेगा। पलायन रुकेगा। आंदोलनकारियों को भी सक्रियता बढ़ानी होगी।
अभी बहुत विकास होना है : राज्य आंदोलन के लिए संसद में पर्चे फेंकने वाले विधायक राम सिंह कैड़ा कहते हैं कि सूबे में अभी बहुत विकास होना है। पहाड़ों की दशा ठीक नहीं है। विद्यालयों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टर और रोजगार के लिए संभावनाएं तलाशनी होंगी। तभी राज्य आगे बढ़ सकता है।
पहाड़ बचाओ आंदोलन की जरूरत : सक्रिय राज्य आंदोलनकारी रहे मोहन पाठक की पीड़ा है कि जिस पहाड़ के लिए आंदोलन किया गया, आज वह पहाड़ विकास के केंद्र में कहीं दिखता ही नहीं। उनका कहना है कि राज्य के विकास के लिए सबसे पहले नेता, अधिकारी और माफिया के गठजोड़ को तोडऩा होगा। पहाड़ बचाओ आंदोलन शुरू करना होगा।भ्रष्टाचार व बेरोजगारी होनी चाहिए दूर : राज्य आंदोलनकारी नीमा अग्रवाल किसी भी सरकार के कार्यों से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि रोजगार के लिए युवा भटक रहे हैं। महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिला। अगर हमें उत्तराखंड का विकास करना है, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, असुरक्षा जैसी स्थिति को दूर करना होगा।
पर्वतीय उत्पादों को मिले महत्व : राज्य आंदोलनकारी किरन पांडे कहती हैं कि हमारा आंदोलन ही जल, जंगल व जमीन बचाने के लिए था, लेकिन इस उद्देश्य में सफल नहीं हुए। विकास का फार्मेट ही ठीक नहीं बना। सबसे पहले हमें पर्वतीय उत्पादों को महत्व देना होगा। छोटे-छोटे उद्योगों के जरिये विकास करना होगा।
शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाएं : आंदोलनकारी राजेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि हमने किसलिए राज्य मांगा था यह 18 साल तक समझ में नहीं आया। अभी तक मूलभूत सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। सबसे जरूरी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए थी, लेकिन यह सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहा। गरीबी के चलते होने वाला पलायन रुके : राज्य आंदोलनकारी हेम पाठक कहते हैं कि जिन सपनों को लेकर आंदोलन हुआ था, वह सपने अभी तक साकार नहीं हो सके हैं। पहाड़ों की स्थिति और भी खराब हो गई है। सरकारों को समग्र विकास पर ध्यान देना होगा। सबसे अधिक जरूरी है, गरीबी के कारण होने वाला पलायन रुकना चाहिए।
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