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क्या होता है GI Tag? कैसे मिलता है? मिलने से फर्क क्‍या पड़ता है?...आसान भाषा में जानिए सबकुछ

GI Tag किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 26 Apr 2022 01:05 PM (IST)
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GI Tag : जीआई किसी भी उत्पाद को प्रमाणित करने की एक प्रक्रिया होती है।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : कुमाऊं का रंगवाली पिछौड़ा, रामगढ़ का आड़ू, रामनगर की लीची समेत उत्तराखंड के कई उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की कवायद शुरू हो गई है। जीआई टैग (GI Tag) क्या होता है? किसी भी उत्पाद को यह टैग मिलने से क्या फर्क पड़ता है? जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया क्या है? चलिए इन जिज्ञासाओं को यहां आसान भाषा में समझते हैं।

क्या होता है GI Tag

किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं। जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है।

1999 में बना अधिनियम

संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया। जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया। इसे 2003 में लागू किया गया। इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ।

इन उत्पादों को दिया जाता है GI Tag

खेती से जुड़े उत्पाद

मतलब खेती से जुड़े प्रॉडक्ट जैसे- उत्तराखंड का तेजपात, बासमती चावल, दार्जिलिंग टी, किसी खास किस्म का मसाला और ऐसे ही प्रॉडक्ट, जो एक विशेष क्षेत्र में मिलते हैं।

हैंडीक्राफ्ट्स

जैसे बनारस की साड़ी, चंदेरी साड़ी, महाराष्ट्र सोलापुर की चद्दर, कर्नाटक का मैसूर सिल्क। तमिलनाडु का कांचीपुरम सिल्क।

उत्पाद

जैसे तमिलनाडु का इस्ट इंडिया लेदर, गोवा की फेनी, उत्तर प्रदेश के कन्नौज का इत्र आदि।

खाद्य सामग्री

आंध्र प्रदेश के तिरुपति का लड्डू, राजस्थान की बीकानेरी भुजिया, तेलंगाना के हैदराबाद की हलीम, पश्चिम बंगाल का रसोगुल्ला, मध्य प्रदेश का कड़कनाथ मुर्गा।

कैसे मिलता है TG Tag

किसी प्रॉडक्ट के लिए GI Tag हासिल करने के लिए आवेदन करना पड़ता है। इसके लिए वहां उस उत्पाद को बनाने वाली जाे एसोसिएशन होती है वो अप्लाई कर सकती है। इसके अलावा कोई कलेक्टिव बॉडी अप्लाई कर सकती है। सरकारी स्तर पर भी आवेदन किया जा सकता है।

किन बातों का ध्यान रखना होता है

जीआई टैग अप्लाई करने वालों को यह बताना होगा कि उन्हें टैग क्यों दिया जाए। सिर्फ बताना नहीं पड़ेगा, प्रूफ भी देना होगा। प्रॉडक्ट की यूनिकनेस के बारे में उसके ऐतिहासिक विरासत के बारे में। क्यों सेम प्रोडक्ट पर कोई दूसरा दावा करता है तो आप कैसे मौलिक हैं यह साबित करना होगा। जिसके बाद संस्था साक्ष्यों और सबंधित तर्कों का परीक्षण करती हैं, मानकों पर खरा उतरने वाले को जीआई टैग मिलता है।

अप्लाई कहां करना होता है

Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) के ऑफिस में. चेन्नई में इस संस्था का हेडक्वाटर है. ये संस्था एप्लीकेशन चेक करेगी। देखेगी कि दावा कितना सही है। पूरी तरह से छानबीन करने और संतुष्ट होने के बाद उस प्रॉडक्ट को जीआई टैग मिल जाएगा।

दस साल के लिए मिलता है टैग

जीआई टैग का सर्टिफिकेट मिलने के बाद उसका प्रयोग एक ही समुदाय कर सकता है। जैसे ओडिशा के रसगुल्ला के लिए जो लोगो मिला, उसका इस्तेमाल ओडिशा के लोग कर सकते हैं। रसगुल्ले के डिब्बे पर। जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है। हालांकि इसे रिन्यू करा सकते हैं। जीआई टैग मिलने से प्रोडक्ट का मूल्य और उससे जुड़े लोगों का अहमियत बढ़ जाती है। फेक प्रॉडक्ट को रोकने में मदद मिलती है। संबंधित जुड़े हुए लोगों को इससे आर्थिक फायदा भी होता है।

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