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Wildlife Attack: 22 सालों में उत्तराखंड में 1055 लोगों ने गंवाई जान व 4375 घायल, ये थका-सड़ा सिस्टम किस काम का?

Wildlife Attack in Uttarakhand उत्तराखंड में वन्यजीवों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं। बागेश्वर जिले में दो मासूम बच्चों की मौत के बाद से ही राज्य में इस मुद्दे पर चिंता बढ़ गई है। आंकड़ों के अनुसार राज्य गठन से लेकर अब तक 1055 लोगों की वन्यजीवों के हमले में मौत हो चुकी है। वहीं 2006 से 2022 के बीच 4375 लोग घायल हुए हैं।

By govind singh Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 19 Oct 2024 02:52 PM (IST)
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Wildlife Attack in Uttarakhand: राज्य गठन से 2022 तक उत्तराखंड में एक हजार से ज्यादा ने गंवाई जान. Concept Photo

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। Wildlife Attack in Uttarakhand: बागेश्वर के औलानी और नानकमता बिचवा भूड़ गांव में आंगन में खेल रहे दो मासूम को गुलदार ने मौत के घाट उतार दिया। जिगर के टुकड़ों की लाश को उठाना कितना भारी होता है। इस दर्द को इनके मां-बाप के अलावा और कोई नहीं समझ सकता।

वन विभाग के संवेदनहीन बड़े अधिकारियों और झूठे वादे करने वाले थके-सड़े सिस्टम से तो तिनके भर की उम्मीद नहीं है कि उन्हें इन परिवारों की असहनीय पीड़ा से कोई वास्ता भी होगा। और ये सिर्फ कहने की बात नहीं है बल्कि आंकड़े इसे प्रमाणित भी करते हैं।

वन विभाग आखिर करता क्या है?

राज्य गठन से लेकर 2022 तक के आंकड़ों पर नजर डाले तो उत्तराखंड में 1055 लोगों की वन्यजीवों के हमले में मौत हो चुकी है। इसके 2006 से 2022 के बीच 4375 लोग घायल हो गए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि हर घटना के बाद शोध, सर्वे और विशेषज्ञों के दम पर मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने की बात करने वाला वन विभाग आखिर करता क्या है?

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हिमालयी राज्य उत्तराखंड को वनसंपदा और वन्यजीवों के लिहाज से बेहद समृद्ध माना जाता है। बाघ, गुलदार, हाथी से लेकर अन्य वन्यजीवों का यहां सुरक्षित वासस्थल है लेकिन इंसानों पर हो रहे हमलों को लेकर हालात लगातार चिंताजनक बने हुए हैं। पर्वतीय क्षेत्र में गुलदार सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं। इसलिए कभी आंगन में खेल रहे बच्चे, खेत में काम कर महिला और घास लेकर घर को लौट रही बुजुर्ग इनका निवाला बन रही है।

राज्य के हर जिले में हुई घटनाएं

सूचना अधिकार के माध्यम से मिली जानकारी बताती है कि राज्य के हर जिले में घटनाएं हुई। गुलदारों के हमले के मामले में कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर के अलावा गढ़वाल के पर्वतीय जिले भी संवेदनशील श्रेणी में है। उसके बावजूद उत्तराखंड वन विभाग के पास मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं है। सूत्रों की माने तो कुछ डिवीजनों को छोड़ अन्य में वनकर्मियों तक के पास सुरक्षा संसाधन नहीं है।

वर्ष 2000 से 2022 तक मौतों के आंकड़े

  • वर्ष -वन्यजीवों के हमले में मौंते
  • 2000 -30
  • 2001 -23
  • 2002 -34
  • 2003 -42
  • 2004 -28
  • 2005 -25
  • 2006 -41
  • 2007 -43
  • 2008 -26
  • 2009 -45
  • 2010 -32
  • 2011 -50
  • 2012 -51
  • 2013 -52
  • 2014 -52
  • 2015 -62
  • 2016 -66
  • 2017 -39
  • 2018 -52
  • 2019 -58
  • 2020 -62
  • 2021 -59
  • 2022 -83

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2006 से 2022 तक घायलों का आंकड़ा

  • वर्ष -घायलों की संख्या
  • 2006 -152
  • 2007 -188
  • 2008 -188
  • 2009 -302
  • 2010 -217
  • 2011 -204
  • 2012 -226
  • 2013 -288
  • 2014 -347
  • 2015 -311
  • 2016 -368
  • 2017 -249
  • 2018 -239
  • 2019 -260
  • 2020 -286
  • 2021 -225
  • 2022 -325

सेवानिवृत्त पीसीसीएफ बोले, बदलते व्यवहार पर जमीनी शोध जरूरी

हिमाचल प्रदेश के सेवानिवृत्त प्रमुख वन संरक्षक और हल्द्वानी निवासी बीडी सुयाल का कहना है कि बाघ या गुलदार का प्राकृतिक भोजन जंगल में है। इंसान उसके लिए नई चीज है। उसके बावजूद गुलदारों का आबादी में आकर हमले करना उनके बदलते व्यवहार को दर्शाता है। वन विभाग को कागजी की बजाय जमीनी शोध करना होगा। ये काम जंगल के किसी एक हिस्से में नहीं बल्कि बड़े स्तर पर हो। तब जाकर मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने की दिशा में ठोस पहले हो सकती है। मैदानी क्षेत्र में बाघों की संख्या में काफी बढ़ोतरी होने की वजह से भी गुलदार दूसरे जंगल में पहुंच रहे हैं।

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