उत्तराखंड के इस गांव में पीरियड के दौरान अलग भवन में रहती हैं महिलाएं
आज महिलाएं पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं, प्रत्येक क्षेत्र में आज महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही हैं। लेकिन कुछ रूढ़ीवादी परंपराएं महिलाओं के लिए अभिशाप के समान हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 16 Jan 2019 08:38 PM (IST)
चम्पावत, जेएनएन : आज महिलाएं पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं, हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल रही हैं। लेकिन कुछ रूढ़ीवादी परंपराएं उनके लिए आज भी अभिशाप बनी हैं। जिनमें से एक है महावारी यानि मासिक धर्म यानी पीरियड। जिसके लिए सरकार द्वारा गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को जानकारी दी जा रही है। लेकिन रूढ़ीवादी परंपरा जागरूकता पर आज भी भारी है।
महिलाओं में मासिक धर्म की बात आम है, लेकिन आज भी यह आम बात कई क्षेत्रों में उनके लिए पाबंदिया लाती है। खासकर की पर्वतीय क्षेत्रों में। मासिक धर्म के समय में पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं को कई कार्यों व लोगों से अलग कर दिया जाता है। आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रजस्वला केंद्र बनाए जाते थे। जिसमें मासिक धर्म के समय महिलाएं रहा करती थीं। करीब सप्ताह भर तक महिलाएं गांव घरों से अलग एकांत में जीवन यापन करती थीं। आज व्यापक जागरूकता व प्रचार प्रसार के बावजूद भी कई क्षेत्रों में रजस्वला केंद्र होना लोगों की रूढ़ीवादिता को दर्शाता है। घुरचुम ग्राम में बना रजस्वला केंद्र इसका एक उदाहरण है। क्षेत्र के कई लोगों का कहना है यह परंपरा पहले कई कारणों के चलते बनाई गई थी। जो आज भी चली आ रही है।
ऐसे सामने आ रहे हैं विचार
सामाजिक कार्यकतर्त्री सरिता गिरि ने कहा कि पहले लोगों में जागरूकता का अभाव था जिस कारण महिलाओं को मासिक धर्म के समय परंपरा के चलते महिलाओं को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन आज लोग जागरूक होने के बाद सकारात्मक बदलाव के साथ बिना भेदभाव परंपरा को अपना रहे हैं, जो कि ठीक भी है। जिससे पूरे महीने कार्य करने के बाद उन्हें कुछ दिनों का आराम मिल जाता है।
यह महिलाओं को मानसिक उत्पीडऩ है
सामाजिक कार्यकतर्त्री रीता गहतोड़ी ने बताया कि 21वीं सदी में भी महिलाओं को मासिक धर्म के समय में रजस्वला केंद्र में भेजे जाने की बात स्तब्ध करने वाल है। यह महिलाओं का मानसिक उत्पीडऩ है। जागरूकता के बाद भी लोगों में इस प्रकार की भावना उनकी संकीर्ण मानसिकता को दर्शती है।
संस्कृत के विद्वान का यह है कहना संस्कृत के विद्वान कीर्ति बल्लभ शक्टा इस बारे में कहते हैं कि महिलाओं को मासिक धर्म के समय में घर से बाहर रखना, भेदभाव करना गलत है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार इस समय में महिलाओं का मंदिर व रसोई में प्रवेश वर्जित होता है। जिस कारण महिलाएं घर पर भी मंदिर व रसोई से दूर रहती हैं।
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