Kotdwar: पानी बिन सूखे 15 गांवों के कंठ, डेढ़ महीने से प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर हैं लोग; लापरवाह सिस्टम
Kotdwar पिछले डेढ़ महीने से यमकेश्वर ब्लाक के 15 गांव तरस रहे हैं। अभी तक प्रशासन की ओर से इस पर सुध नहीं ली गई है। नतीजा ग्रामीणों को पानी की तलाश में प्राकृतिक स्रोतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। वहीं बनचूरी के समीप श्याम सुंदरी देवीडांडा मंदिर में होने वाले मेले के लिए खच्चरों में लाद कर पानी एकत्रित किया जा रहा है।
संवाद सहयोगी, कोटद्वार। उत्तराखंड के कोटद्वार में पानी की कमी से कई गांव जूझ रहे हैं। ये कमी एक दिन या दो दिन से नहीं है, बल्कि पिछले डेढ़ महीने से यहां पानी की कमी है। पिछले डेढ़ महीने से यमकेश्वर ब्लाक के 15 गांव तरस रहे हैं। अभी तक प्रशासन की ओर से इस पर सुध नहीं ली गई है।
नतीजा, ग्रामीणों को पानी की तलाश में प्राकृतिक स्रोतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। वहीं, बनचूरी के समीप श्याम सुंदरी देवीडांडा मंदिर में होने वाले मेले के लिए खच्चरों में लाद कर पानी एकत्रित किया जा रहा है। स्कूलों में भी मिड-डे मील बनाना चुनौती बन गई है।
1996 में बनाई गई योजना से मिल रहा पानी
डांगी, परंदा पठोला, कोबरा, बंचूरी, रिखेण, रावत गांव, चोपड़ा सहित अन्य गांव को पेयजल योजना से जोड़ने के लिए 1996 में योजना बनाई गई थी। इसके लिए गांव के समीप बहने वाली हेंवल नदी से गांव तक पेयजल लाइन बिछाई गई। लेकिन, पिछले डेढ़ माह से हाईड्रम मशीन ठीक से कार्य नहीं कर रही। ऐसे में गांव तक पर्याप्त पानी नहीं पहुंच पा रहा है।
प्राकृतिक स्रोतों के भरोसे हैं ग्रामीण
ग्रामीण पानी के लिए पूरी तरह प्राकृतिक स्रोतों के भरोसे चल रहे हैं। जंगल में प्राकृतिक स्रोतों के चक्कर काटने के दौरान जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य विजय लखेड़ा ने बताया कि हाईड्रम मशीन मरम्मत के लिए कई बार विभागीय अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं।
शिकायत के बाद भी नहीं हुआ समाधान
ग्रामीण कई बार अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर काट चुके हैं और शिकायत कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई भी यहां झांकने तक नहीं पहुंचा। लोगों को इससे काफी परेशानी हो रही है। प्राकृतिक स्रोतों के चलते किसी तरह लोगों को पीने का पानी मिल रहा है।
बिना पानी मेला बना चुनौती
नवरात्र की अष्टमी पर श्याम सुंदरी देवीडांड में भव्य मेले का आयोजन किया जाना है। जिसमें ग्रामीणों के साथ ही बड़ी संख्या में प्रवासी भी पहुंचते हैं। लेकिन, गांव में पानी नहीं आने से मेले का आयोजन एक चुनौती बन गया है। हालांकि मंदिर समिति की ओर से आसपास के जंगलों से खच्चरो में लादकर पानी एकत्रित करवाया जा रहा है।