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Uttarakhand News : पौड़ी में प्रकृति ने राह दिखाई तो स्वावलंबन संग रोजगार सृजन में जुटे दो भाई, हर्बल शैंपू से हो रही कमाई

Uttarakhand News उत्तराखंड के पौड़ी जिले में दो भाई स्वावलंबन की नई इबारत लिख रहे हैं। इन्होंने यहां हर्बल शैंपू बनाने की इकाई लगाकर सैकड़ों ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ा है। दोनों ही भाई अब पहाड़ी मसाला बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इनके उत्पाद की मांग देश के महानगरों समेत ऑनलाइन मंच पर भी उपलब्ध हैं।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sun, 08 Oct 2023 06:54 PM (IST)
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Uttarakhand News : पौड़ी में प्रकृति ने राह दिखाई तो स्वावलंबन संग रोजगार सृजन में जुटे दो भाई,

अजय खंतवाल, कोटद्वार। जहां चाह, वहां राह। पौड़ी जिले में चमाली गांव के अजय बिष्ट और संजय बिष्ट इस उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। दोनों भाई पहाड़ में 'वंडर ट्री' नाम से प्रसिद्ध भीमल से शैंपू बनाकर न सिर्फ खुद पैरों पर खड़े हुए, बल्कि 300 ग्रामीणों को रोजगार भी दे रहे हैं।

इस तरह वह स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ जनसंख्या नियोजन में भी भागीदारी निभा रहे हैं। उनके शैंपू की प्रदेश ही नहीं, दिल्ली, गुरुग्राम और मुंबई में भी खासी मांग है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, मीशो समेत अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी इसकी अच्छी बिक्री हो रही है।

अजय और संजय सेना की इंजीनियरिंग कोर बंगाल इंजीनियर्स में तैनात थे। अजय ने बीईजी से वर्ष 2012 में हवलदार पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, जबकि संजय वर्ष 2014 में बतौर नायक सेवानिवृत्त हुए।

संजय ने अंटार्कटिका में भी तीन वर्ष सेवा दी। वर्ष 2015 में अजय और संजय ने कोटद्वार में कोचिंग इंस्टीट्यूट शुरू किया। जहां दोनों भाई युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते थे।

काम अच्छा चल रहा था, लेकिन कोरोना का दौर आया तो इंस्टीट्यूट पर ताला पड़ गया और दोनो भाइयों को गांव लौटना पड़ा।

मई 2021 की एक सुबह अजय और संजय भविष्य की योजनाओं पर विचार-विमर्श कर रहे थे, तभी संजय के पास दिल्ली में रहने वाले किसी परिचित ने फोन कर भीमल भिजवाने का आग्रह किया।

असल में भीमल का रस प्राकृतिक कंडीशनर है, जिससे बाल मजबूत होते हैं। इसलिए ग्रामीण इसे बाल धोने के उपयोग में लाते हैं। इसमें सैपोनिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है।

पौड़ी जिले के ग्राम चमाली में अजय और संजय बिष्ट की शैंपू निर्माण इकाई में भीमल लेकर पहुंचे ग्रामीण।

उत्कृष्ट झाग और सतह के तनाव को कम करने की अद्वितीय क्षमता के चलते गांवों में इसे साबुन के विकल्प के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। यहीं से दोनों भाइयों को भीमल से शैंपू बनाने का विचार आया।

शुरुआत में उन्होंने घर पर ही शैंपू बनाने का प्रयास किया। सफलता नहीं मिली तो संजय ने दिल्ली जाकर शैंपू बनाने का प्रशिक्षण लिया।

सबसे पहले शैंपू नाते-रिश्तेदारों को दिया गया। उनसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली तो जनवरी 2022 में शैंपू बाजार में उतारा।

धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी और आज भीमल का शैंपू चमाली गांव की पहचान बन चुका है। अजय बताते हैं कि बीते वित्तीय वर्ष में उनकी कंपनी बिष्ट इंटरप्राइजेज ने करीब 35 लाख का टर्नओवर प्राप्त किया।

ग्राम चमाली में स्थापित शैंपू निर्माण इकाई में तैयार शैंपू।

ग्रामीणों को मिला रोजगार

अजय और संजय की पहल ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हुई। गांव के अधिकांश युवक-युवती उनकी कंपनी में कार्य करते हैं।

कंपनी शैंपू बनाने के लिए भीमल, रीठा और आंवला भी ग्रामीणों से ही खरीदती है। कच्चा भीमल 20 रुपये, सूखा भीमल 40 रुपये, रीठा 60 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर लिया जाता है।

दो जगह चल रही इकाई

अजय और संजय ने बिष्ट इंटरप्राइजेज नाम से शैंपू बनाने की इकाई दो जगह (चमाली और पाटीसैंण के समीप ग्राम अमोठा में) लगाई है। चमाली में शैंपू डिब्बों में पैक किया जाता है, जबकि अमोठा में इसके पाउच तैयार किए जाते हैं।

ग्राम अमोठा में स्थापित इकाई में इस प्रकार तैयार किए जाते हैं शैंपू के पाउच।

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जलजीरा और पहाड़ी मसाला भी बना रहे

शैंपू बाजार में छाने के बाद दोनों भाइयों ने पहाड़ी जलजीरा और मसाला भी बाजार में उतारा है। दोनों उत्पाद के लिए आसपास के गांवों से ही कच्चा माल लिया जा रहा है। बकौल संजय, हमारा प्रयास अधिक से अधिक क्षेत्रवासियों को रोजगार देना है।

'वंडर ट्री' है भीमल

हिमालयी क्षेत्र में 2000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाने वाला भीमल एक औषधीय पेड़ है। इसे भिकुवा, भ्यूंल व भिकू भी कहते हैं। वानस्पतिक नाम ग्रेविया आप्टिवा है।

नौ से 12 मीटर ऊंचाई वाले इस पेड़ की पत्तियां शीतकाल में भी हरी रहती हैं, जो मवेशियों के लिए बेहतरीन चारा हैं। इनको खाने से मवेशियों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।

भीमल के तनों के रेशे से रस्सी बनाई जाती है, जो काफी मजबूत होती है। बहुउपयोगी होने के कारण इसे 'वंडर ट्री' कहा जाता है।

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