प्रकृति की खूबसूरती के बीच जांबाज सैनिकों की वीर गाथा से परिचित कराता पहाड़ी नगर लैंसडौन, मनमोहक हैं नजारे
गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार से 40 किमी दूर स्थित लैंसडौन नगर वर्तमान में देश-विदेश के पर्यटकों की पसंदीदा सैरगाह बन गया है। नीले आसमान के नीचे बाहें फैलाए लैंसडौन के सम्मोहित कर देने वाले नजारे पर्यटकों को यहां आने का निमंत्रण देते प्रतीत होते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Fri, 10 Feb 2023 06:15 PM (IST)
अजय खंतवाल, कोटद्वार। ब्रिटिश शासनकाल में पांच मई 1887 को जब लेफ्टिनेंट कर्नल ईपी मेनवरिंग के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी कालोडांडा (वर्तमान लैंसडौन) पहुंची, तो तब किसी ने भी नहीं सोचा भी न होगा कि भविष्य में यह स्थान एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होगा। इसी स्थान पर गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की स्थापना हुई और 21 दिसंबर 1890 को तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटन के नाम पर इस स्थान का लैंसडौन नामकरण किया गया। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार से 40 किमी दूर स्थित यही लैंसडौन वर्तमान में देश-विदेश के पर्यटकों की पसंदीदा सैरगाह बन गया है। हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचकर प्रकृति के खुबसूरत नजारों का दीदार करते हैं।
पौड़ी जिले में समुद्रतल से 5838 फीट की ऊंचाई पर 35.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तारित छावनी नगर लैंसडौन, जहां एक ओर गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट का मुख्यालय है, वहीं यह नगर देश के बेहतरीन पर्यटन स्थलों में भी शामिल है। लैंसडौन से एक ओर हिमाच्छादित पर्वत शृंखला के मनमोहक नजारे दिखाई देते हैं, वहीं विशाल वृक्षों की छांव असीम आत्मिक शांति की अनुभूति कराती है।शीतकाल में जब मैदानी क्षेत्र कोहरे की चाहर ओढ़ लेते हैं, तब नीले आसमान के नीचे बाहें फैलाए लैंसडौन के सम्मोहित कर देने वाले नजारे पर्यटकों को यहां आने का निमंत्रण देते प्रतीत होते हैं। लैंसडौन पहुंचने वाले पर्यटक प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद तो उठाते ही हैं, गढ़वाल रेजीमेंट के विक्टोरिया क्रास दरबान सिंह नेगी संग्रहालय में जांबाज सैनिकों की अभूतपूर्व वीर गाथाओं से भी परिचित होते हैं। टिप-इन-टाप से हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाओं को निहारना अपने आप में एक अलग ही तरह की अनुभूति है।
गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की ओर से तैयार की गई भुल्ला ताल (झील) में नौकायान का छावनी नगर का खास आकर्षण है। इसके अलावा गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट की ओर से बनाए गए राठी प्वाइंट से भी हिमालय की खूबसूरती का दीदार होता है। लैंसडौन में कालेश्वर महादेव मंदिर, अंग्रेजों का बनाया ओल्ड चर्च, भीम पकौड़ा, संतोषी माता मंदिर आदि भी दर्शनीय हैं। जनवरी में यहां बर्फबारी का आनंद भी लिया जा सकता है।
ताड़केश्वर धाम: देवदार की छांव में आत्मिक शांति
समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ताड़केश्वर धाम देवदार के वृक्षों से घिरा ऐसा स्थान है, जहां पहुंचकर तीर्थ यात्री और पर्यटक जीवन के सारे भौतिक सुखों को भूल जाते हैं। लैंसडौन से करीब 30 किमी दूर डेरियाखाल-रिखणीखाल मोटर मार्ग पर चखुलियाखाल नामक स्थान पड़ता है। यहां से पांच किमी की दूरी पर है प्रसिद्ध ताड़केश्वर धाम। लोक मान्यता है कि इस स्थान पर शिवस्वरूप एक संत प्रकट हुए, जो एक हाथ में त्रिशूल-चिमटा और दूसरे हाथ में डमरू लिए क्षेत्र का भ्रमण करते थे। भ्रमण के दौरान यदि कोई व्यक्ति गलत कार्य अथवा पशुओं पर अत्याचार करता नजर आता तो वे उसे ताड़ना (फटकार) देते। इसी कारण इस स्थान को ताड़केश्वर धाम कहा जाने लगा। रात्रि विश्राम के लिए ताड़केश्वर परिसर में धर्मशाला बनाई गई है, जबकि लैंसडौन से ताड़केश्वर की ओर जाने वाले मार्ग पर कई रिसार्ट व होटल उपलब्ध हैं।भैरवगढ़ी (लंगूरगढ़ी) मंदिर
गढ़वाल के प्रसिद्ध बावन गढ़ों में भैरवगढ़ी भी शामिल है। छावनी नगर लैंसडौन से करीब 18 किमी की दूरी पर स्थित कीर्तिखाल से भैरवगढ़ी मंदिर के लिए ट्रैकिंग रूट है। लांगूल पर्वत पर स्थित होने के कारण इस स्थान को लंगूरगढ़ी भी कहा जाता है। वर्ष 1791 में गढ़वाल पर गोरखाओं का पहला आक्रमण भैरवगढ़ी से ही हुआ था, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी गोरखा इस गढ़ी को नहीं जीत पाए। तब भक्ति थापा नाम के एक गोरखा सैनिक ने भगवान भैरवनाथ के प्रति आशक्ति जताते हुए यहां शिवलिंग पर 40 सेर वजनी ताम्रपत्र चढ़ाया था, जो आज भी यहां मौजूद है। भैरवगढ़ी मंदिर तक पहुंचने के लिए कीर्तिखाल से करीब ढाई किमी की ट्रैकिंग करनी पड़ती है। कीर्तिखाल से द्वारीखाल-चेलूसैंण-सिलोगी-ऋषिकेश मार्ग पर भी कई ऐसे स्थल हैं, जहां से पहाड़ की वादियों के मनमोहक नजारे देखने को मिलते हैं।
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