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विलुप्त हो रही काष्ठ कला को संजो रहे पूर्व नौ सैनिक, स्वरोजगार का है बेहतर जरिया

काष्ठ कला को संजोने में जुटा एक पूर्व नौ सैनिक नई पीढ़ी के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आया है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 09 May 2020 11:57 AM (IST)
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विलुप्त हो रही काष्ठ कला को संजो रहे पूर्व नौ सैनिक, स्वरोजगार का है बेहतर जरिया
पौड़ी, जेएनएन। पहाड़ों से विलुप्त हो रही काष्ठ कला को संजोने में जुटा एक पूर्व नौ सैनिक नई पीढ़ी के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आया है। इस पूर्व सैनिक की बनाई कलाकृतियां न सिर्फ युवाओं को आकर्षित कर रही हैं, बल्कि उन्हें कुछ नया करने को भी प्रेरित कर रही हैं। पूर्व सैनिक का कहना है कि उनका मुख्य ध्येय युवाओं को पीढ़ियों से चली आ रही इस विधा से परिचित कराना है, जिससे इसे वह भविष्य का आधार बना सकें।

जिला मुख्यालय पौड़ी स्थित कोटद्वार रोड निवासी अरविंद मुदगिल वर्ष 1994 में नौ सेना से सेवानिवृत्त हुए। लेकिन, उन्हें शहरों में बसना गवारा न हुआ और वापस पौड़ी लौट आए। बकौल अरविंद, 'मैंने देखा कि पहाड़ी क्षेत्रों की पहचान रही काष्ठ कला धीरे-धीरे दम तोड़ रही है। जबकि, एक दौर में शायद ही कोई घर रहा होगा, जहां काष्ठ निर्मित वस्तुएं न हों।' 

अरविंद बताते हैं कि काष्ठ कला उन्हें बचपन से ही आकर्षित करती रही है, लेकिन सेवा में रहते अपने इस शौक को पूरा नहीं कर पाए। सेवानिवृत्ति के बाद उनके पास पर्याप्त वक्त था, सो उन्होंने अपने घर में ही शोरूम बनाकर सूखी लकड़ी और जड़ों पर कलाकृतियां उकेरने का कार्य शुरू किया। बताया कि वह अबतक एक हजार से अधिक कलाकृतियां बना चुके हैं। इनमें पहाड़ की संस्कृति को प्रतिबिंबित करती वस्तुएं, पेन स्टैंड, जीव-जंतु और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित आकृतियां शामिल हैं।

स्वरोजगार का बेहतर जरिया

अरविंद कहते हैं कि कोशिश करो तो पहाड़ी क्षेत्रों में स्वरोजगार के साधनों की कमी नहीं है। उनकी बनाई कलाकृतियां भी रोजगार का आधार बन रही हैं। वह समय-समय पर विद्यालयों में जाकर बच्चों को यह विधा सीखने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे भविष्य को लेकर निश्चिंत हो सकें।

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दिल्ली में भी लगा चुके प्रदर्शनी

अरविंद बताते हैं कि वर्ष 2008 में नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित प्रदर्शनी में उनकी बनाई आकृतियां भी शामिल की गई थीं। इन्हें काफी सराहना मिली। बताया कि काष्ठ से कलाकृतियां बनाने में खर्चा तो कम आता ही है, दाम भी अच्छे मिल जाते हैं। 

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