Move to Jagran APP

भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम के अतीत पर 'वन' का साया

कण्वाश्रम के अतीत पर पसरा धुंधलका आज तक नहीं छंट पाया। हालांकि, अब केंद्र कण्वाश्रम के अतीत को खंगालने की योजना बना रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 26 May 2018 09:43 PM (IST)
Hero Image
भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम के अतीत पर 'वन' का साया

कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की ओर से महर्षि कण्व की तपोस्थली एवं चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम के इतिहास को खंगालने के लिए किए जाने वाले खुदाई के कार्य पर वन कानूनों ने रोड़ा अटका दिया है। नियमों का हवाला देते हुए लैंसडौन वन प्रभाग ने खुदाई की अनुमति का मसला केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में भेज दिया है। अब केंद्र से अनुमति मिलने के बाद ही एएसआइ कण्वाश्रम में खुदाई का कार्य कर पाएगा। 

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अब तक प्रदेश की सरकारें पौड़ी जिले में कोटद्वार शहर से 13 किमी दूर स्थित कण्वाश्रम को राष्ट्रीय पटल पर लाने को भले ही बड़े-बड़े दावे करती रही हों, लेकिन कण्वाश्रम के अतीत पर पसरा धुंधलका आज तक नहीं छंट पाया। हालांकि, अब केंद्र कण्वाश्रम के अतीत को खंगालने की योजना बना रहा है। 

केंद्र सरकार के निर्देश पर एएसआइ की टीम ने खुदाई की अनुमति के साथ ही कण्वाश्रम का साइट प्लान तैयार कर केंद्र को भेज दिया है। बीते माह केंद्र से खुदाई की अनुमति जारी भी कर दी गई, लेकिन प्रस्तावित खुदाई स्थल के आरक्षित वन क्षेत्र में होने के कारण वन महकमे की अनुमति के बगैर खुदाई कार्य संभव नहीं था। 

एएसआइ देहरादून मंडल की अधीक्षण पुरातत्वविद लिली धस्माना ने 26 अप्रैल को मुख्य वन संरक्षक को पत्र भेजकर कण्वाश्रम में मालिनी मृग विहार के समीप परीक्षण पुरातात्विक उत्खनन की अनुमति मांगी थी। पत्र में स्पष्ट उल्लेख था कि उत्खनन के दौरान वन एवं वन्य जीवों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। उत्खनन के उद्देश्य का जिक्र करते हुए यह भी कहा गया था कि उत्खनन कार्य इस क्षेत्र के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक पहलुओं को प्रकाश में लाने के लिए किया जा रहा है। 

यहां फंस रहा पेंच 

कण्वाश्रम में जिस स्थान पर उत्खनन कार्य किया जाना है, वह राजाजी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में स्थित है। लैंसडौन वन प्रभाग के वर्किंग प्लान में स्पष्ट है कि वन क्षेत्र में प्रभागीय स्तर से ऐसे किसी भी कार्य के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती, जो गैरवानिकी हो। वन महकमे का यह भी कहना है कि उत्खनन के लिए एएसआइ भू-वनस्पति आवरण को हटाएगी। 

यहां यह बताना जरूरी है कि यदि कण्वाश्रम में मिलने वाली मूर्तियां सौ साल से अधिक पुरानी पाई जाती हैं तो एएसआइ पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम-1958 की संशोधित धारा-2010 के तहत इस स्थल पर सौ मीटर हिस्से को कोर जोन व उससे बाहर के दो सौ मीटर हिस्से को बफर जोन घोषित करते हुए अधिग्रहीत करेगा। ऐसे में तय है कि खुदाई से पूर्व एएसआइ को प्रस्तावित स्थल का अधिग्रहण करना होगा। जो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बगैर संभव नहीं है। 

लैंसडौन वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी संतराम ने बताया कि आरक्षित वन क्षेत्र में खुदाई की अनुमति प्रभागीय स्तर से जारी नहीं की जा सकती। मामले में उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया गया है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर ही आगे की कार्यवाही की जाएगी।

यह भी पढेें: स्वर्णिम इतिहास की गवाही देगी सम्राट भरत की जन्मस्थली 

यह भी पढ़ें: यहां बस पांच घंटे में घर बनाइए, दो घंटे में शौचालय; कीमत है बस इतनी

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में खुशहाली कर रही पर्वतीय जिलों से तौबा

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।