गांव के वीरान पड़े घरों को कमाई का जरिया बनाना इन महिलाओं से सीखें, लिख रही हैं नई इबारत
पलायन की मार से ठिठके गुराड मल्ला गांव में इन दिनों जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली है और इसकी वजह बना है महिला स्वयं सहायता समूह।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 04 May 2020 10:05 PM (IST)
पौड़ी, राजीव खत्री। चलिए! आज आपको पौड़ी जिले के गुराड़ मल्ला गांव लिए चलते हैं। पलायन की मार से ठिठके इस गांव में इन दिनों जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली है और इसकी वजह बना है महिला स्वयं सहायता समूह। जिस गुराड़ मल्ला को बरसों पहले रोजगार की खातिर कई परिवार छोड़कर चले गए थे, आज उन्हीं परिवारों के खंडहर हो चुके घरों में महिलाएं मशरूम उगाकर आर्थिकी को संवार रही हैं। लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के उगाए मशरूम की जमकर बिक्री हो रही है।
जलागम की ग्राम्य परियोजना के पौड़ी प्रभाग की ओर से एकेश्वर और पोखड़ा विकासखंड में विभिन्न रोजगारपरक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन विकासखंडों के 61 परिवारों के दस महिला समूहों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया था। पौड़ी की मशरूम गर्ल सोनी बिष्ट ने गांवों में जाकर महिला समूहों को मशरूम उत्पादन के गुर बताए थे। सोनी बताती हैं कि पिछले तीन महीनों में सभी दस महिला समूहों ने 450 किलो से अधिक मशरूम उत्पादन कर एक लाख रुपये की आमदनी की है।
कमाई का जरिया बने खंडहर हो चुके मकान
गौरा देवी समूह देवराड़ी की संतोषी देवी और वरदान समूह गुराड़ मल्ला की संगीता रावत बताती हैं कि प्रशिक्षण लेने के बाद बड़ी समस्या मशरूम उत्पादन के लिए जगह तलाशना था। फिर उन्हें गांव में खाली पड़े मकानों का ख्याल आया। इसके लिए जब संबंधित मकान के मालिक को फोन किया गया तो उन्होंने खुशी-खुशी अनुमति दे दी। फिर क्या था समूह से जुड़ी महिलाओं ने मिलकर घरों की सफाई की। छत से पॉलीथिन बांधी और मशरूम उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ा दिया। मेहनत रंग लाई और आज उनका कारोबार चल निकला है।
लॉकडाउन में बढ़ी डिमांड
लॉकडाउन के दौरान लोगों ने बाहर से आने वाली सब्जियों के बजाय गांवों में उगने वाले मशरूम को प्राथमिकता दी है। इसके चलते मशरूम की खपत भी काफी बढ़ गई है। गांवों के साथ ही पहाड़ के कस्बाई क्षेत्रों में मशरूम की डिमांड बढ़ने से महिलाओं को खूब फायदा हो रहा है।यह भी पढ़ें: पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में लौटेगी रंगत, फिर से होंगे आबाद
मशरूम उत्पादन से जुड़े समूहवरदान समूह (गुराड़ मल्ला), सक्षम समूह (बैलोड़ी), उन्नति समूह (स्योली), नव विकास समूह (गडरी), ग्राम उत्थान समूह (पोखड़ा), गौरा देवी समूह (देवराड़ी), मशरूम उत्पादन समूह (सकनोली), भैरवनाथ समूह (घंडियाल) और जागृति और भगवती समूह (भैड़गांव)।यह भी पढ़ें: Possitive India: गांव में वापस लौटने के बाद युवा अपना रहे रोजगार के नए साधन
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