यहां भी बसते हैं भगवान बदरी विशाल, पवित्र जल करता है रोगमुक्त
प्रखंड नैनीडांडा के अपोलासेरा स्थित बदरीनाथ मंदिर में भी भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए जाते हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर आद्य गुरु शंकराचार्य ने रात्रि विश्राम किया था।
धुमाकोट, पौड़ी [हरीश रावत]: मकर संक्रांति के मौके पर गढ़वाल में जगह-जगह मेले व गिंदी कौथिग का आयोजन होता है, लेकिन पौड़ी जिले के नैनीडांडा विकासखंड में अपोला बदरीनाथ एक ऐसा मंदिर है, जहां मकर संक्रांति के मौके पर रात में मेला आयोजित होता है। हालांकि, समय के साथ इस रात्रिकालीन मेले में ग्रामीणों की तादाद कम होती चली जा रही है।
प्रखंड नैनीडांडा के अपोलासेरा स्थित बदरीनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर आद्य गुरु शंकराचार्य ने रात्रि विश्राम किया था और उन्होंने ही यहां भगवान नारायण की प्रतिमा स्थापित की। बाद में ग्रामीणों ने इस स्थान पर छोटे मंदिर का निर्माण कर दिया।
कुछ वर्ष पूर्व तक मंदिर में मकर संक्रांति की रात भव्य मेले का आयोजन होता था। जिसमें गढ़वाल-कुमाऊं के दूरदराज के गांवों के लोग पहुंचते थे और मंदिर के समीप स्थित 'वैतरणी' कुंड में स्नान कर भगवान नारायण के दर्शन करते थे।
मेले में स्थानीय लोग खानापान की दुकानें लगाकर श्रद्धालुओं को भोजन मुहैया कराते। लेकिन, वक्त के साथ मंदिर तक सड़क पहुंच गई और लोग अपने वाहनों से मंदिर पहुंचकर उसी दिन वापसी भी करने लगे। हालांकि, वर्तमान में भी मंदिर में रात्रिकालीन मेला आयोजित होता है, लेकिन इसमें श्रद्धालुओं की तादाद काफी कम होती है।
वैतरणी का विशेष महात्म्य
मंदिर के समीप स्थित वैतरणी कुंड का विशेष महात्म्य माना गया है। लोक मान्यता के अनुसार गंगा जल की तरह इस स्रोत का जल भी कभी सड़ता नहीं है। इस जल का उपयोग ग्रामीण आज भी गंगाजल के रूप में करते हैं और पर्व विशेष पर अपने घरों को भी ले जाते हैं। मान्यता है कि इस जल से स्नान करना चर्म रोगों में विशेष लाभकारी है।
पर्यटकों की नजरों से अछूता है मंदिर
मकरैंण मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष सतीश ध्यानी बताते हैं कि नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर यह मंदिर आज भी पर्यटकों की नजरों से दूर है। पर्यटन विभाग ने वर्ष 2009-10 में करीब दस लाख की लागत से मंदिर का सौंदर्यीकरण तो किया, लेकिन आज यह पर्यटन मानचित्र पर नहीं आ पाया है।
गढ़वाल-कुमाऊं की आस्था का प्रतीक
अपोलासेरा स्थित बदरीनाथ मंदिर की कोटद्वार और रामनगर से दूरी लगभग सौ-सौ किमी है। मकर संक्रांति के मौके पर गढ़वाल के साथ ही कुमाऊं के अल्मोड़ा व नैनीताल जिले से यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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