संकट में नाथ सिद्धाें के प्राचीन शिलालेखों का अस्तित्व, कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत को पत्र में बताया हाल
गढ़वाल इतिहास व पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण देवलगढ़ स्थित नाथ संप्रदाय सिद्धों के प्राचीन शिलालेखों के अस्तित्व पर संकट गहराने लगे हैं। इन शिलालेखों का संरक्षण कार्य अगर शीघ्र नहीं हुआ तो इनके गुमनामी के अंधेरे में खो जाने की प्रबल संभावना बन गयी है। देवलगढ़ क्षेत्र सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास समिति के अध्यक्ष ने कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया।
जागरण संवाददाता, श्रीनगर: गढ़वाल इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण देवलगढ़ स्थित नाथ संप्रदाय के सिद्धों के प्राचीन शिलालेखों के अस्तित्व पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। इन शिलालेखों का संरक्षण कार्य अगर शीघ्र नहीं हुआ तो इनके गुमनामी के अंधेरे में खो जाने की प्रबल संभावना बन गयी है।
कैबिनेट मंत्री डा. धन सिंह रावत को लिखा पत्र
प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री और क्षेत्रीय विधायक डा. धन सिंह रावत को पत्र लिखकर देवलगढ़ क्षेत्र सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास समिति के अध्यक्ष पंडित कुंजिका प्रसाद उनियाल ने उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए कहा है कि क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई पौड़ी से इस कार्य को शीघ्र करवाया जाए। पुरातत्व संरक्षण मद में सम्बन्धित विभाग के पास धनराशि भी उपलब्ध होती है।
जिलाधिकारी व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी को भी कराया अवगत
जिलाधिकारी पौड़ी गढ़वाल और क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी को भी उन्होंने इस सम्बन्ध में पत्र लिखकर ऐतिहासिक और पुरातत्व दृष्टि से महत्वपूर्ण इन शिलालेखों के संरक्षण की जरूरत पर उनका ध्यान आकृष्ट कराया है। देवलगढ़ क्षेत्र विकास समिति के अध्यक्ष पंडित कुंजिका प्रसाद उनियाल ने कहा कि देवलगढ़ प्राचीनकाल में नाथ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ भी रहा है। जिनके देवलगढ़ क्षेत्र के प्रमुख सत्यनाथ योगी का गढ़वाल के राजवंश पर बड़ा प्रभाव भी था।
नाथ संप्रदाय के प्रमुख को दिया जाता है सत्यनाथ की गद्दी का दायित्व
पंडित कुंजिका प्रसाद उनियाल ने कहा कि कहा जाता है कि सत्यनाथ योगी की सलाह पर ही वर्ष 1512 में राजा अजयपाल द्वारा चांदपुर गढ़ी से गढ़वाल राज्य की राजधानी हटाकर देवलगढ़ को राजधानी बनाने के साथ ही देवलगढ़ में सत्यनाथ पीठ की स्थापना कर सत्यनाथ को गद्दी के प्रमुख का दायित्व भी दिया गया था। तत्कालीन समय में चेला प्रथा के अनुसार समय-समय पर नाथ संप्रदाय के प्रमुख को सत्यनाथ की गद्दी का दायित्व दिया जाता रहा।
अनदेखी व संरक्षण के अभाव में गहराया प्राचीन शिलालेखों के अस्तित्व पर संकट
सत्यनाथ पीठ के अनेक सिद्धि योगियों के स्वर्गवासी होने पर प्राचीनकाल में देवलगढ़ के पास ही धारपसेला तोक में उन्हें समाधिस्थ भी किया गया था, जिनकी समाधियों पर शिलालेख से उनके बारे में पता भी मिलता है। पंडित कुंजिका प्रसाद उनियाल ने कहा कि अनदेखी और संरक्षण के अभाव में अब इन प्राचीन शिलालेखों के अस्तित्व पर संकट भी गहरा रहा है। इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से यह शिलालेख बहुत महत्वपूर्ण भी हैं। शोधार्थियों को भी इनसे काफी जानकारियां प्राप्त होती हैं।