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हाथी की सीख से बदला खेती का तरीका, आज छू रहे बुलंदियां

कलम सिंह ने हाथियों से परेशान होकर खेती का तरीका ही बदल डाला। उन्होंने खेतों में धान और गेहूं की फसल के बजाय विदेशी प्रजाति के फलों के पौधे लगाने शुरू किए।

By Edited By: Updated: Mon, 11 Mar 2019 08:10 PM (IST)
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हाथी की सीख से बदला खेती का तरीका, आज छू रहे बुलंदियां
कोटद्वार, रोहित लखेड़ा। सोच सकारात्मक हो तो प्रतिकूल हालात भी जीवन की दिशा बदल डालते हैं। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं कोटद्वार के सनेह क्षेत्र स्थित ग्राम रामपुर निवासी कमल सिंह। कमल खेतों में हाडतोड़ मेहनत कर फसल तैयार करते थे और जब फसल पकने को तैयार होती थी, हाथियों का झुंड उसे नष्ट कर डालता था। कमल ने अपना दुखड़ा सरकारी दफ्तरों की चौखट पर भी रोया और खुद भी तमाम जतन किए, पर हाथियों के संकट से निजात नहीं मिली। ऐसे में कलम सिंह को एक ही विकल्प नजर आया कि क्यों न वह खेती का तरीका ही बदल डालें। बस! उन्होंने खेतों में धान-गेहूं की फसल बोने के बजाय विदेशी प्रजाति के ऐसे फलों के पौधे लगाने शुरू किए, जिनकी ओर हाथी झांकना भी पसंद नहीं करते। नतीजा, आज कमल के खेतों में उम्मीदों की फसल लहलहा रही है। 

इतिहास विषय में नेट क्वालीफाई कमल चाहते तो किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान में बतौर प्राध्यापक अपना भविष्य संवार सकते थे। लेकिन, खेती-किसानी के मोह ने उन्हें खेतों से दूर नहीं होने दिया। वह प्रतिवर्ष रात-दिन मेहनत कर खेतों में फसल उगाते, लेकिन परिणाम के रूप में हमेशा खेतों में हाथी के पैरों तले दबी फसल ही मिलती। 

हाथियों को खेतों से दूर रखने के लिए उन्होंने वहां स्वयं के खर्चे पर इलेक्ट्रिक फेंसिंग लाइन भी लगाई, जो हाथियों के आगे कारगर साबित नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने खेतों की सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली भी लगाई। जिसे फसल को फायदा पहुंचने से पहले ही हाथी ने ध्वस्त कर डाला। हाथी के आतंक से निजात दिलवाने के लिए कमल ने कोटद्वार तहसील परिसर में भूख हड़ताल तक की, लेकिन उनके सारे जतन बेअसर रहे। 

ऐसे में आखिर कब तक वह हालात से जूझते रहते। सो, उन्होंने पारंपरिक खेती करना ही छोड़ दिया और नए जोश के साथ शुरू की विदेशी नस्ल के फलों की खेती। इससे कमल को हाथियों के संकट से तो निजात मिली ही, वह अन्य काश्तकारों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।

इंटरनेट को बनाया अपना मार्गदर्शक 

कमल सिंह ने अपनी आठ बीघा भूमि में अलग-अलग देशों से मंगवाए गई फलों की पौध का रोपण किया है। इसके लिए उन्होंने इंटरनेट को अपना मार्गदर्शक बनाकर उसकी मदद ली। आज वह खेतों में थाईलैंड का बैंगनी आम, अमरूद, बेर व चीकू और आस्ट्रेलिया का लाल नींबू उगा रहे हैं।

मध्य प्रदेश से मंगाई कड़कनाथ मुर्गियां बागवानी के अलावा कमल ने मुर्गी पालन का कार्य भी शुरू किया है। इसके लिए उन्होंने मध्य प्रदेश से 24 कड़कनाथ प्रजाति की मुर्गियां मंगाई हैं। कमल ने बताया कि एक मुर्गी रोजाना दो अंडे देती है और एक-एक अंडा 40-40 रुपये तक में बिक जाता है। कड़कनाथ के अंडों की बढ़ती बिक्री को देख कमल अब मुर्गियों की तादाद बढ़ाने की तैयारी में हैं।

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