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Kotdwar: 'ट्रैक आफ द इयर' ट्रैकिंग रूट से वापस लौटा ट्रैकर्स का बीस-सदस्यीय दल, अनुभव किए साझा; बुधवार को हुए थे रवाना

जिलाधिकारी डॉ.आशीष चौहान के प्रयासों की बदौलत शासन ने कण्वाश्रम-मलनिया (चंडा) ट्रैकिंग रूट को ट्रैक आफ द इयर घोषित किया। कण्वाश्रम महर्षि कण्व की कर्मस्थली और सम्राट भरत की जन्मस्थली है जबकि मलनिया (चंडा) उस मालन नदी का उद्गम स्थल है जिसका उल्लेख पुराणों में भी दर्ज है। बुधवार को जिला पर्यटन अधिकारी प्रकाश खत्री ने इस ट्रैक पर बीस सदस्यीय दल को रवाना किया।

By Ajay khantwalEdited By: riya.pandeyUpdated: Fri, 10 Nov 2023 01:52 PM (IST)
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'ट्रैक आफ द इयर' ट्रैकिंग रूट से वापस लौटा ट्रैकर्स का बीस-सदस्यीय दल
जागरण संवाददाता, कोटद्वार। शासन की ओर से घोषित किए गए ट्रैक आफ द इयर कण्वाश्रम-मलनिया (चंडा) ट्रैकिंग रूट पर आठ नवंबर को गया ट्रैकर्स का बीस-सदस्यीय दल नौ नवंबर शाम सुरक्षित वापस लौट आया। करीब साढ़े बाइस किलोमीटर की ट्रैकिंग कर वापस लौटे इस दल ने ट्रैकिंग को लेकर अपने अनुभव साझा किए।

बता दें कि जिलाधिकारी डॉ.आशीष चौहान के प्रयासों की बदौलत शासन ने कण्वाश्रम-मलनिया (चंडा) ट्रैकिंग रूट को ट्रैक आफ द इयर घोषित किया। कण्वाश्रम महर्षि कण्व की कर्मस्थली और सम्राट भरत की जन्मस्थली है, जबकि मलनिया (चंडा) उस मालन नदी का उद्गम स्थल है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी दर्ज है।

बुधवार को जिला पर्यटन अधिकारी प्रकाश खत्री ने इस ट्रैक पर बीस सदस्यीय दल को रवाना किया। बेबेरी एडवेंचर लैंसडौन के टीम लीडर कर्नल आशीष इष्टवाल के नेतृत्व में ट्रैक पर गए इस दल में वरिष्ठ पत्रकार व बद्री-केदार सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान के अध्यक्ष मनोज इष्टवाल भी शामिल थे।

पहले पैदल सड़क थी ढाकरी रूट व डिस्ट्रिक्ट बोर्ड

मनोज ने बताया कि यह ट्रैक पहले ढाकरी रूट व डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की पैदल सड़क (ट्रैक रूट) थी, जो 50 से 60 गांवों को आपस में जोड़ती थी। बताया कि ट्रैकिंग दल पहले दिन कण्वाश्रम (चौकीघाटा) से लालपुल, सहत्रधारा, आमडाली, मक्वाठाट, ईडा गदेरा, खैरगड्डी, मरणखेत होते हुए मथाणा पहुंचा, जहां ग्रामीणों ने पर्यटन दल के लिए नाश्ते की व्यवस्था की हुई थी। इसके बाद दल चौंडल गड्डी, मैती काटल होते हुए चुन्ना-मयेडा होते हुए किमसेरा गांव पहुंचा, जहां ग्रामीणों ने दल का स्वागत किया।

अगले दिन दल गौतमी वन, जुड्डा-रौडियाल, जुड्डा, सौड, मांडई, बिजनूर होता हुआ मालन नदी के उद्गम स्थल मलनिया पहुंचा। दल 22.50 किमी. का सफर तय कर चंडा पर्वत शिखर तक पहुंचा।

ट्रैकिंग दल में शामिल लोग

ट्रैकिंग दल में मनोज इष्टवाल के साथ कर्नल टीसी शर्मा, कर्नल आशीष इष्टवाल, विंग कमांडर सुधीर कुट्टी, विंग कमांडर नमित रावत, वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल, एडवोकेट अमित सजवाण, वरिष्ठ पत्रकार गणेश काला, समाजसेवी प्रणिता कंडवाल, दिग्विजय सिंह नेगी, मोहित कंडवाल, प्रशांत कुकरेती, विवेक सिंह नेगी, श्रेय सुंद्रियाल, अजय अधिकारी, राजन सिंह नेगी, ऋतुराज सिंह रावत, वन रक्षक शिवानी भंडारी, सुरेंद्र सिंह, विनय सिंह, वाचर विजेंद्र सिंह व आमी शामिल रहे।

धरोहर समेटे है ट्रैक

मनोज ने बताया कि इस ट्रैक पर मथाणा (कुलपति महर्षि ऋषि का संभावित वैदिक कण्वाश्रम), राजदरबार (जहां स्वर्ग अप्सरा मेनका ने राजा विश्वमित्र की तपस्या भंग की), पत्थरै की बसी/विश्वमित्र गुफा (कहा जाता है यहीं ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की संरचना की), सप्तऋषि मंडल (मालिनी घाटी में व्याप्त विभिन्न तथ्यों, किंवदन्तियों व लोक में प्रचलित ऋषि कण्व-गौतमी, ऋषि विश्वामित्र-मेनका, ऋषि दुर्वासा-शकुंतला, ऋषि मरीचि-शकुंतला, राजा दुष्यंत-शकुंतला, ऋषि च्वयन, ऋषि चरक, ऋषि कश्यप व ऋषि भृगु से सम्बंधित विभिन्न जानकारियां प्राप्त की), मयेड़ा (स्वर्ग अप्सरा मेनका का निवास स्थल), किमसेरा (ऋषि कण्व का निवास स्थल व दुष्यंत-शकुंतला का गंदर्भ विवाह स्थल), फलनखेत (शकुंतला का फल बगीचा), जुड्डा-रौडियाल (जड़ी-बूटी औषधि जंगल) मालनिया (मालिनी नदी का उद्गम), भरतपुर (दुष्यंत-शकुंतला पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्मस्थल), सिंहपाणी (वह जंगल जहाँ भरत ने शेर के दांत गिने थे), शाकुंतधार (जहां मांसाहारी शुकशावकों ने मेनका गर्भ से जन्मी शकुंतला की प्राण रक्षा की), कस्याली (महर्षि कश्यप का निवास स्थल) स्थित हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद अहम स्थल हैं।

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