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लैंसडौन वन प्रभाग में स्टाफ है नहीं, अब कैसे बुझेगी जंगलों की आग Kotdwar News

कोटद्वार क्षेत्र में पिछले तीन दिनों से खिल रही धूप ने गर्मियों का आभास कराना शुरू कर दिया है। जिस तरह तीन दिन में धूप ने तेवर दिखाए हैं गर्मियों में जंगलों का धधकना तय है।

By Edited By: Updated: Tue, 04 Feb 2020 02:04 PM (IST)
लैंसडौन वन प्रभाग में स्टाफ है नहीं, अब कैसे बुझेगी जंगलों की आग Kotdwar News
कोटद्वार, जेएनएन। पर्वतीय क्षेत्रों में जमकर हुई बर्फबारी से भले ही हवाओं में ठंडक हो, लेकिन कोटद्वार क्षेत्र में पिछले तीन दिनों से खिल रही धूप ने गर्मियों का आभास कराना शुरू कर दिया है। जिस तरह तीन दिन में धूप ने तेवर दिखाए हैं, गर्मियों में जंगलों का धधकना तय है। सवाल यह उठता है कि वनों में दावानल रोकने की तैयारियों में जुटा वन महकमा चंद कर्मियों के बूते किस तरह जंगलों की आग पर काबू पाएगा। 

लैंसडौन वन प्रभाग की बात करें, तो प्रभाग की पांच रेंजों में स्वीकृत वन रक्षकों के 88 पदों में से 52 पद रिक्त पड़े हैं। दावानल पर काबू पाने में वन रक्षकों की जिम्मेदारी सबसे अधिक होती है। कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग बाघों के लिए इस कदर मुफीद है कि बाघ संरक्षण के लिए कार्य कर रही संस्था कैट्स (कंजर्वेशन एस्योर्ड टाइगर स्टैंडर्स) ने लैंसडौन वन प्रभाग को 2015 में लैंसडौन वन प्रभाग को कैट्स अवार्ड से नवाजा। कोटद्वार, कोटड़ी, दुगड्डा, लालढांग व लैंसडौन रेंजों से मिलकर बने लैंसडौन वन प्रभाग की लैंसडौन रेंज को पर्वतीय माना जाता है, जबकि अन्य चारों रेंज तराई की हैं। 
बाघों की बात करें तो प्रभाग की पांचों रेंजों में बाघ की मौजूदगी है, हालांकि, प्रभाग की कोटड़ी और दुगड्डा रेंज बाघों के मामले में सर्वाधिक धनी है। कैट्स अवार्ड तो मिल गया, लेकिन सुरक्षा संबंधी संसाधनों की बात करें तो प्रभाग के हाथ आज भी खाली हैं। बाघों की सुरक्षा छोड़िए, प्रभाग में जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिए भी पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। यह है संसाधनों की स्थिति 43327.60 हेक्टेयर में फैले लैंसडौन वन प्रभाग में वन और वन्यजीवों की सुरक्षा का जिम्मा मात्र 36 वन आरक्षियों पर है।
लैंसडौन वन प्रभाग के उपप्रभागिय वनाधिकारी जेसी बेलवाल ने बताया कि प्रभाग में वन आरक्षियों के 88 पद हैं, जिनमें से 52 रिक्त पड़े हैं। इसी तरह वन दारोगा भी स्वीकृत 43 पदों के सापेक्ष मात्र 29 ही कार्यरत हैं, जबकि वन दारोगा और आरक्षी ही जंगल की रीढ़ होते हैं। कार्मिकों की घोर कमी के चलते प्रभाग को दो चैक पोस्ट बंद करनी पड़ी हैं। वन प्रभाग में कर्मियों की काफी कमी है। फायर सीजन में फायर वाचर रखे जाते हैं, लेकिन वनरक्षकों की भूमिका सर्वाधिक अहम होती है। कर्मियों की कमी के संबंध में समय-समय पर उच्चाधिकारियों को सूचित किया जाता है। 
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