‘महंगाई' के दौर में भारतीय संस्कृति पर लगा 'ग्रहण', चाइनीज झालरों के आगे देसी दीयों की रोशनी पड़ रही है मंद
दीपावली के पावन पर्व पर सड़क किनारे दीयों की छोटी सी दुकान लगाए बैठे गरीब के चेहरे की रंगत बताती है कि आज भी चाइनीज झालरों के आगे उनके दीयों की रोशनी मंद है। परंपरा अनुरूप लोग अपने घरों को दीयों की रोशनी से जगमग करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दीयों की जगह पूरी तरह चाइनीज झालरों ने ले ली है।
By Ajay khantwalEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Sat, 11 Nov 2023 12:56 PM (IST)
जागरण संवाददाता, कोटद्वार। चाइनीज सामान के बहिष्कार को लेकर दावे भले ही तमाम किए जाते हों। लेकिन, इन दावों की हकीकत जाननी हो तो दीपावली के मौके पर सड़क किनारे दीए बेचने वाले उन छोटे व्यापारियों की ओर जरूर नजर डाल दें, जिनकी दीपावली पिछले कई वर्षों से चाइनीज बिजली की झालरों की भेंट चढ़ रही है।
दीपावली के पावन पर्व पर सड़क किनारे दीयों की छोटी सी दुकान लगाए बैठे गरीब के चेहरे की रंगत बताती है कि आज भी चाइनीज झालरों के आगे उनके दीयों की रोशनी मंद है।
भारतीय संस्कृति में दीपावली को दीपों का पर्व कहा जाता है। परंपरा अनुरूप लोग अपने घरों को दीयों की रोशनी से जगमग करते हैं। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में दीयों की जगह पूरी तरह चाइनीज झालरों ने ले ली है।
कुछ वर्ष पूर्व तक जहां दीयों की काफी खरीद होती थी, पिछले डेढ़-दो दशक से लोग दीयों को महज शगुन के तौर पर खरीदते हैं। आमजन का मानना है कि दीये जलाने को डेढ़-दो सौ रुपए का सरसों का तेल लेने के बजाए 30-40 रुपए की एक चाइनीज झालर खरीद ली जाए। रोशनी भी होगी व घर भी सुंदर लगेगा।
दावे भले ही संस्कृति बचाने के हों। लेकिन, ‘महंगाई'' के इस दौर में भारतीय संस्कृति पर लगे ‘चाइनीज'' ग्रहण ने उस गरीब की दीपावली खराब कर दी, जो इस उम्मीद में दीये लगाए कि दस-पांच दीए बेच उसके घर में भी एक दीया रोशन हो जाएगा।
कोटद्वार में दीयों की दुकान सजाए गोपाल कहते हैं कि वह पिछले कई वर्षों से दीये बेच रहा है। लेकिन, साल-दर-साल दीयों की मांग कम होती जा रही है। पूर्व में जहां दीपावली के मौके पर वह दो-तीन हजार दीये बेच देता था, वर्तमान में सौ दिए बेचने भी भारी पड़ रहे हैं।
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