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    Uttarakhand News: पर्यटन नगरी लैंसडौन को नई पहचान देगी बुरांश वाटिका, सेना काम में जुटी

    लैंसडौन में सेना जम्मू-कश्मीर के ट्यूलिप गार्डन की तर्ज पर बुरांश वाटिका विकसित कर रही है। पहले चरण में 250 पौधे लगाए गए हैं। यह वाटिका पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन को भी बढ़ावा देगी। सेना नई पीढ़ी को भी इस मुहिम से जोड़ रही है ताकि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक हो सकें। गढ़वाल रेजीमेंट का लक्ष्य है कि यह वाटिका लैंसडौन को एक नई पहचान दिलाए।

    By Ajay khantwal Edited By: Shivam Yadav Updated: Tue, 22 Jul 2025 03:59 PM (IST)
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    पर्यटन नगरी लैंसडौन को नई पहचान देगी बुरांश वाटिका

    अनुज खंडेलवाल, लैंसडौन। इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर पर्यटन नगरी लैंसडौन में जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध ट्यूलिप गार्डन की तर्ज पर बुरांश वाटिका विकसित कर रहा है। 

    इसके तहत प्रथम चरण में सेना की ओर से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर रेजीमेंटल मंदिर के निकट 1.5 एकड़ भूमि पर बुरांश के 250 पौधे रोपे जा चुके हैं। 

    अगले चरण में यह संख्या बढ़ाई जाएगी, इसके लिए दो-तीन स्थानों पर भूमि चयनित करने की प्रक्रिया चल रही है। बुरांश वाटिका को आकार देने की जिम्मेदारी रेजीमेंट की विभिन्न कंपनियों को सौंपी गई है।

    सीमा की रक्षा के साथ गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर पर्यावरण के क्षेत्र में भी अनुकरणीय कार्य कर रहा है। वर्ष 2006 में रेजीमेंट को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिल चुका है। 

    इससे पूर्व, नगर में तीन चेकडैम बनाकर जल संवर्द्धन की दिशा में भी सेना ने महत्वपूर्ण कार्य किया। अब सेना ने गढ़वाल रेजीमेंट के ब्रिगेडियर विनोद सिंह नेगी के नेतृत्व में राज्य वृक्ष बुरांश के संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। 

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    सेना की ओर से एएनआर (एसीटेट नेचुरल रिजनरेशन) तकनीक का परीक्षण करवाकर बुरांश के पौधों का रोपण किया गया। साथ ही जलसंग्रह के लिए ट्रेंचेज भी बनाए जा रहे हैं। 

    विदित हो कि बैसाखी तक पूरे यौवन में आने वाले बुरांश की 98 भारतीय प्रजाति हिमालय क्षेत्र में पाई जाती हैं। इनमें से 10.2 प्रतिशत गढ़वाल हिमालय में पाई जाती हैं।

    पर्यावरणीय खतरे से भी निपट रही सेना

    गढ़वाल रेजीमेंट ने बुरांश के संरक्षण की पहल ऐसे समय में की है, जब पश्चिमी हिमालय में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बुरांश के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। तेजी से हो रहे दोहन और प्राकृतिक पुनरोत्पादन न होने से बुरांश के पेड़ों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है। 

    शोधकर्ताओं के अनुसार, विश्व में प्रतिदिन औषधि देने वाला एक पेड़ विलुप्त हो रहा है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट रिचर्स बोर्ड के सदस्य डा. सुनील कुमार कटियार के मुताबिक अब तक भारत की रेड डाटा बुक में शामिल 427 संकटग्रस्त औषधीय और सगंधित पौधो का अस्तित्व खतरे में है। इनमें बुरांश प्रमुख है। 

    हालांकि, कई पौधशालाओं में बुरांश के संरक्षण-संवर्धन के लिए बीज उगाने के प्रयास हो रहे हैं। बुरांश के छोटे बीज होने के कारण उन्हें क्यारियों में विकसित करने में काफी दिक्कतें आती हैं, वहीं पौध के बढ़ने की धीमी गति के कारण इसके संरक्षण में भी विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।

    पर्यटकों का आकर्षण बनेगी बुरांश वाटिका

    सेना की यह वाटिका जहां ईको पर्यटन को बढ़ावा देगी, वहीं पर्यटक राज्य वृक्ष बुरांश के महत्व को भी जान सकेंगे। बुरांश के फूल के औषधीय गुणों से भी आम जनमानस अनभिज्ञ है। वाटिका विकसित होने से इन औषाधीय गुणों से भी पर्यटक परिचित हो सकेंगे।

    मुहिम से जुड़ रही नई पीढ़ी

    गढ़वाल राइफल्स पर्यावरण संरक्षण की इस मुहिम से नई पीढ़ी को भी जोड़ रही है। सेना के गोल्डन प्री-प्राइमरी गोल्डन फिश स्कूल के नन्हें छात्रों को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाया गया है। 

    सेना की ओर से बच्चों को जोड़ने का उद्देश्य उन्हें पर्यावरण की महत्ता का पाठ पढ़ाने के साथ ही उसके प्रति जागरूक करना है। बुरांश के पौधारोपण कार्यक्रम में स्कूली बच्चों ने भी प्रतिभाग किया।

    गढ़वाल रेजीमेंट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में लगातार महत्वपूर्ण कार्य करती आ रही है। बुरांश वाटिका को भी भव्य स्वरूप प्रदान किया जाएगा। इसके संपूर्ण विकास के लिए हमने पूर्व में एएनआर परीक्षण भी करवाया है। उम्मीद है कि इस वाटिका से पर्यटन नगरी लैंसडौन को न सिर्फ नई पहचान मिलेगी, बल्कि बुरांश के गुणों का व्यापक प्रचार-प्रसार भी होगा।

    -कमांडेंट विनोद सिंह नेगी, ब्रिगेडियर, गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर, लैंसडौन