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पिथौरागढ़ : मुरझाए चाय बागान को हरा-भरा कर बने आत्मनिर्भर, गांव में रोजगार मिला तो रुक गया पलायन

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में विनोद कार्की ने अपनी मेहनत और लगन से लोगों को रोजगार दिया है। वह यहां चाय का बागान चलाते हैं। इस बागान में काम मिलने से गांव से पलायन रुक गया है। बताते हैं कि कार्की के परदादा ने यहां चाय के पौधे रोपे थे जो ब्रिटिश काल में काफी पसंद की जाती थी। कार्की ने अब एकबार फिर से नया स्टार्टअप शुरू किया है।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Fri, 11 Aug 2023 06:33 PM (IST)
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पिथौरागढ़ : मुरझाए चाय बागान को हरा-भरा कर बने आत्मनिर्भर, गांव में रोजगार मिला तो रुक गया पलायन

ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़। तीन पीढ़ी पूर्व दादा ने कुछ चाय के पौधे रोपे थे। घर में पारंपरिक तरीके से उन्हीं पत्तियों को तोड़ कर चाय बनती थी।

स्वाद, सुगंध और जैविक गुणों से भरपूर चाय इन्हीं चाय की पत्तियों ने पिथौरागढ़ जिले में बेरीनाग के नायल गांव निवासी विनोद कार्की को स्टार्टअप की राह दिखाई।

एमएससी (वनस्पति विज्ञान), एमए (अंग्रेजी) और बीएड कर चुके विनोद ने फिर सरकारी नौकरी की ओर देखने का मन ही बदल दिया।

स्वरोजगारी बनने की सोच को साकार करते हुए उन्होंने आसपास के दस गांवों में चाय के बागान तैयार कर हरियाली से खुशहाली का रास्ता गांव वालों को भी दिखाया।

यही नहीं ब्रिटिश काल में बंद पड़ी टी फैक्ट्री का विकल्प गांव में ही एक नई चाय फैक्ट्री वर्ष 2021 में स्थापित करके दिया है।

अब उनकी बेरीनाग-टी की चुस्की देश में ही नहीं दुबई, कनाडा व लंदन वालों को भी खूब पसंद आ रही है।

विनोद कार्की बताते हैं कि स्टार्टअप शुरू करने से पहले स्टडी की तो समझ आया कि पर्वतीय क्षेत्र में किसी भी उद्यम को चलाने व बढ़ाने के लिए कच्चे माल की कमी रहती है।

मैदानी क्षेत्र से माल लाने और पहुंचाने में टांसपोर्टेशन लागत भी उत्पाद का दाम बढ़ा देती है। ऐसे में उत्पाद को बाजार में उतारना व बनाए रखना आर्थिक रूप से भी थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

मगर बेरीनाग की भूमि को तो प्रकृति ने चाय बागान के लिहाज से मानो उपहार दिया है। फिर क्या था, अपने दादा के समय के चाय बागान को संरक्षित कर आसपास के दस गांवों के लोगों को बागान तैयार करने के लिए प्रेरित किया।

बागान तैयार हो गए तो कोरोना काल में नायल गांव में ही चाय की फैक्ट्री लगा दी। यहां से जैविक चाय देश व विदेश तक पहुंचने लगी।

बेरीनाग-टी के नाम से उत्पादित चाय का स्वाद ऐसा रहा कि एक साल बाद ही भारत सरकार से चाय निर्यात करने का लाइसेंस भी हासिल कर लिया।

फिर तो बेरीनाग-टी की धमक अमेरिका, दुबई, लंदन और कनाडा तक पहुंच गई। इसका एक और लाभ भी हुआ। दरअसल, उत्तराखंड के गांव जंगली जानवरों द्वारा फसल नष्ट किए जाने से भी खाली हो रहे हैं।

मगर रोजगार की वजह से पलायन कर रहे ग्रामीणों को आभास कराया कि चाय के पौधे जंगली जानवरों से सुरक्षित हैं। इनकी खेती से घर में ही आजीविका उपलब्ध हो सकती है।

बेरीनाग व चौकोड़ी की चाय रही है खास

अपने शासनकाल में अंग्रेजों ने बेरीनाग और चौकोड़ी में दो हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय के बागान तैयार कराए। बेरीनाग की चाय अंग्रेजों की पहली पसंद थी।

यहीं चाय फैक्ट्री भी लगाई गई। इस फैक्ट्री से तैयार चाय सीधे इंग्लैंड जाती थी। भारत में तब गिने-चुने प्रतिष्ठित लोग ही यहां की चाय का स्वाद ले पाते थे।

दौर बदला और आजाद भारत में बेरीनाग और चौकोड़ी के चाय बागान धीरे-धीरे गायब होने लगे। इन बागानों में मकान, होटल, लॉज बनने लगे। वर्तमान में यहां बागान में गिने-चुने चाय के पौधे रह गए हैं और बेरीनाग चाय इतिहास बन चुकी है।

बेरीनाग से 15 किमी दूर नायल गांव से फिर लौटाया गौरव

नायल गांव के विनोद कार्की ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव डा. आरएस टोलिया द्वारा सुझाई गई नीति पर अमल किया। डा. टोलिया भी पिथौरागढ़ जिले के रहने वाले थे, इसलिए भौगोलिक स्थिति से परिचित भी थे।

उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र में जंगली जानवरों से सिमट रही खेती के स्थान पर चाय बागान विकसित करने पर जोर दिया। इस नीति के तहत बेरीनाग से लगे क्षेत्रों में चाय बागान तैयार करने में ग्रामीण भी आगे आए।

विनोद ने अपने दादा के समय के उजड़ रहे बागान को तो पुनर्जीवित किया ही आसपास के लोहाथल, चौराथल, चौकोड़ी के निचले क्षेत्र, खोलागांव, बरात जुब्बर, नागिला, पाम्ती, दशौली, संगोड़ कोटगाड़ी, धरमघर के ग्रामीणों को भी बागान के लिए प्रेरित किया।

इस पर पचास से अधिक परिवारों ने अपनी भूमि पर उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड से सहयोग लेकर बागान तैयार किए हैं।

इसके बाद प्रचुर मात्रा में कच्चा माल यानी चाय पत्ती गांवों में उपलब्ध होने पर विनोद ने कोरोना काल में पांच नाली भूमि पर ऋण लेकर पैंतीस लाख की लागत से फैक्ट्री खड़ी कर दी।

ग्रामीणों से 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से पत्तियां खरीदीं। बताते हैं कि यह दर देश के अन्य बागानों से सबसे अधिक है।

बाजार में पहुंचते ही बेरीनाग-टी ने बना ली पहचान

बागानों से पत्तियां मार्च से तोड़ी जाती हैं और अक्टूबर तक फैक्ट्री चलती है। वर्ष 2021 में जब यहां तैयार चाय स्थानीय बाजार में आई तो स्वाद और गुणवत्ता सबको पसंद आई।

इसी दौरान दिल्ली से एक कारोबारी विनोद कार्की के पास पहुंचे। उन्होंने तीन सौ किलो चाय खरीदकर उसे दुबई, लंदन और कनाडा पहुंचाया।

इस चाय की कीमत दो हजार रुपये प्रति किलो रही। इसके बाद थर्ड पार्टी के माध्यम से करीब दो हजार किलो बेरीनाग-टी निर्यात हो चुकी है।

इसी आधार पर विनोद कार्की को नवंबर 2022 में आयात और निर्यात का लाइसेंस भी मिल गया। अब वह खुद सीधे निर्यात करेंगे।

विनोद की फैक्ट्री में 11 लोग वेतनभोगी हैं और पचास से अधिक परिवार परोक्ष रूप से आजीविका चला रहे हैं।

हर साल दस हजार किलो चाय का उत्पादन

बेरीनाग-टी के स्वामी विनोद कार्की बताते हैं कि प्रतिवर्ष लगभग दस हजार किलो चाय का उत्पादन हो रहा है। कंपनी का टर्नओवर भी करीब दस लाख रुपये पहंच चुका है।

अभी तक थर्ड पार्टी के माध्यम से दो हजार किलो चाय विदेश पहुंच चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में चाय के सर्वश्रेष्ठ मानक में बेरीनाग-टी खरी उतरी है।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) ने भारत सरकार की दो उच्च परीक्षणशाला नबल और एपीडो में भी चाय का परीक्षण कराया। इसमें बेरीनाग-टी को जैविक चाय घोषित किया गया है। इसमें कोई केमिकल और पेस्टीसाइड नहीं है।

अब चाय बागान के बीच होम स्टे की तैयारी

विनोद ने बताया कि दो लाख चाय के पौधे अब तक रोपित हो चुके हैं। उनका लक्ष्य अभी डेढ़ लाख और पौधे रोपित करने का है।

तीन पीढ़ियों तक जीवित रहने वाले इस पौधे को जानवर भी नहीं खाते। जिले के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर चाय बागान के लिए ग्रामीणों को तैयार कर चुके हैं। चाय बागान पर्यटन विकास में भी सहायक हैं।

इसलिए उनकी आगामी योजना बागानों के बीच होमस्टे की है। बागान से मिली पहचान के बूते ही आज देश भर से पर्यटक व कारोबारी गांव तक पहुंच रहे हैं।

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