ऊं पर्वत-आदि कैलास के बाद अब कैलास पर्वत के भी भारत की भूमि से ही कीजिए दर्शन, चले आइए पिथौरागढ़
देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh Tourist Place) में स्थित कैलाश ऊं पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन एक अविस्मरणीय अनुभव है। यहां पर्यटक प्राकृतिक सौंदर्य ले सकते हैं। इस लेख में हम आपको पिथौरागढ़ की यात्रा के बारे में विस्तार से बताएंगे जिसमें कैलाश मानसरोवर के दर्शन ट्रेकिंग और एडवेंचर टूरिज्म के अवसर और यात्रा के लिए आवश्यक जानकारी शामिल है ।
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़। चीन और नेपाल की सीमा से लगे देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हिमाच्छादित चोटियों, झरनों, सदावाहिनी विशाल नदियों और ग्लेशियरों आदि से समृद्ध पर्यटन की झलक हर जगह नजर आती है। जहां एक तरफ प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य मंत्रमुग्ध करता है वहीं ट्रेकिंग और एडवेंचर टूरिज्म का रोमांच गजब का होता है।
इस सबसे विशेष यहां देवों के देव महादेव के तीन स्वरूपों यानी आदि कैलास, ऊं पर्वत और कैलास पर्वत के दर्शन आस्था रूपी शिखर से ध्यान रूपी सागर में गोते लगा देते हैं। अब तो हिंदुओं के सबसे पवित्र और सबसे बड़े तीर्थ कैलास मानसरोवर के दर्शन के भी भारत की भूमि से होने लगे हैं।
इसके लिए चीन के आधिपत्य वाले तिब्बत में जाने की जरूरत नहीं रह गई है। पैदल, सड़क मार्ग और अब हवाई सेवा की सुविधा ने हर किसी को शिव के धाम के करीब ला दिया है। यह सब देखना और महसूस करना है तो चले आइए पिथौरागढ़।
पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलास। जागरण
पिथौरागढ़ से 96 किमी की दूरी पर धारचूला पहुंचने के बाद पवित्र कैलास भूमि आरंभ हो जाती है। जहां कण-कण में भगवान शिव का वास माना जाता है। तिब्बत स्थित कैलास मानसरोवर के पर्वतों के गर्भ से होकर कालापानी में उद्गमित काली नदी किनारे से यात्रा प्रारंभ होती है। यही काली नदी भारत और नेपाल की सीमा तय करती है।
पिथौरागढ़ जिले में स्थित ऊं पर्वत। जागरण
यहां दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित छियालेख पहुंचते ही हिमाच्छादित नेपाल के धौलागिरि पर्वतमाला तथा छियालेख के बुग्याल पुराणों मे उल्लिखित स्वर्ग लोक के दर्शन कराते हैं। शरदकाल में तो बुग्यालों में विभिन्न प्रजाति के खिले पुष्प स्वागत को तैयार रहते हैं। व्यास ऋषि की तपस्थली यानी व्यास घाटी के केंद्र गुंजी पहुंचते ही काली व कुटी नदी तथा नेपाल से आने वाली तिंकर नदी यहां अपने बाल स्वरूप में नजर आती हैं।
पिथौरागढ़ जिले के ओल्ड लिपू से नजर आ रहा चीन में स्थित कैलास पर्वत। सौ. केएमवीएन
तीनों के मिलन के बाद काली नदी का विशाल रूप मानो शिव की जटाओं से निकली गंगा का अहसास कराता है। यहां का व्यास ऋषि मंदिर द्वापर युग का भान कराता है। पहाड़ के दूसरी तरफ स्थित व्यास गुफा की मान्यता है कि यहीं महर्षि व्यास ने अपनी रचनाओं का सृजन किया।
ऊं में समाए शिव,आदि में विराजे कैलास
कालापानी से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर नावीढांग पहुंचते ही पहली नजर भगवान शिव के ऊं स्वरूप यानी ऊं पर्वत पर ही पड़ती है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु जहां शिव के स्वरूप को तो ट्रेकर प्रकृति को नमन करते हैं। नावीढांग से आगे से होती है ओल्ड लिपू की लगभग 200 मीटर दूरी की पैदल यात्रा। ओल्ड लिपू पहुंचते ही होते हैं हिदुओं के सबसे बड़े तीर्थ कैलास पर्वत व मानसरोवर के दर्शन।
पिथौरागढ़ जिले के ओल्ड लिपू से कैलास पर्वत के दर्शन करते श्रद्धालु। सौ. केएमवीएन
यहां से कैलास पर्वत व मानसरोवर स्पष्ट नजर आता है। केंद्र सरकार ने एक अक्टूबर से पहली बार यहां से कैलास दर्शन की शुरुआत कर चीन पर निर्भरता लगभग खत्म कर दी है। ओल्ड लिपु से वापस गुंजी पहुंचने के बाद कुटी नदी किनारे 41 किमी की यात्रा के बाद आदि कैलास पहुंचा जाता है। 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुटी गांव को लेकर मान्यता है कि द्वापर युग में स्वर्गारोहण के दौरान पांडवों ने इसे माता कुंती के नाम पर बसाया था।
यहां से 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ज्योलिंगकोंग पहुंचते ही भगवान शिव के तीसरे स्वरूप आदि कैलास व पार्वती सरोवर के दर्शन होते हैं। मान्यता है विवाह के बाद जब मां पार्वती के साथ भगवान शिव ससुराल से लौट रहे थे उन्हें यह स्थल सबसे उपयुक्त लगा और यहीं रुक गए। पांच सौ मीटर चढ़ाई के बाद यहीं पर गौरी कुंड भी स्थित है।
ऐसे पहुंचें यात्रा के आधार शिविर धारचूला
आदि कैलास, ऊं पर्वत व कैलास पर्वत की इस यात्रा का आधार शिविर धारचूला नगर है। यहां पहुंचने के लिए दो मार्ग है। एक राजमार्ग टनकपुर, चंपावत, पिथौरागढ़ से जौलजीबी होते हुए और दूसरा हल्द्वानी, अल्मोड़ा होते हुए पिथौरागढ़ जिले की सीमा पर तवाघाट हाईवे से मिल जाता है। धारचूला की हल्द्वानी से दूरी 335 किमी और टनकपुर से 250 किमी है।
धारचूला से ओल्ड लिपू की दूरी 101 किमी है। यात्रियों के लिए पिथौरागढ़ तक देहरादून से विमान से और पंतनगर से हेलीकाप्टर सुविधा भी उपलब्ध है। इतना ही नहीं एक अक्टूबर से उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद की कैलास दर्शन योजना के तहत भी यात्री तीनों धामों के एक साथ दर्शन कर सकते हैं। इसके तहत पिथौरागढ़ से यात्रियों को हेलीकाप्टर से गुंजी तक ले जाया जा रहा है और आगे की यात्रा सड़क मार्ग से कराई जा रही है। अब तक देश भर से आ रहे श्रद्धालुओं के पांच दल कैलास दर्शन कर चुके हैं।
होटल, होम स्टे और पर्यटक आवास गृह की सुविधा
यात्रा मार्ग में अधिकांश लोग पिथौरागढ़ और धारचूला में ही प्रवास करते हैं। दोनों स्थानों पर कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के पर्यटक आवास गृह भी हैं। इसके अलावा होटल और अब काफी होमस्टे भी बन चुके हैं। यात्रा के दौरान धारचूला से आगे दो रात्रि प्रवास करना होता हे। गुंजी, नपलच्यु, नाबी, कुटी में होमस्टे उपलब्ध रहते हैं। यात्रा पहले चरण में मई से मानसून आरंभ होने और दूसरे चरण में मानसून समाप्ति के बाद 15 सितंबर से उच्च हिमालय में हिमपात होने तक चलती रहती है। यह अवधि सामान्यतया नंवबर मध्य तक रहती है।
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