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Pithoragarh: आदि कैलास मार्ग पर न तो ग्लेशियर और न ही बर्फ, अब भी खुला है मार्ग; परमिट लेकर कर सकते हैं यात्रा

जलवायु परिवतन कहें या फिर संवेदनशील्र उच्च हिमालय में अधिक मानवीय दबाव और मशीनों का प्रयोग जिसने उच्च हिमालयी सभी मिथक तोड़ दिए हैं। जिस आदि कैलास में मध्य अक्टूबर के बाद पह्रुंच पाना असंभव प्रतीत होता था। वहां नवंबर माह तक आदि कैलास यात्रा चली। मध्य दिसंबर के बाद सबसे ठंंडा माह पौष शुरू होने के बाद मार्ग खुला है।

By omprakash awasthiEdited By: riya.pandeyUpdated: Mon, 18 Dec 2023 03:09 PM (IST)
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आदि कैलास मार्ग पर न तो ग्लेशियर और न ही बर्फ

संवाद सूत्र, धारचूला। जलवायु परिवतन कहें या फिर संवेदनशील उच्च हिमालय में अधिक मानवीय दबाव और मशीनों का प्रयोग। जिसने उच्च हिमालयी सभी मिथक तोड़ दिए हैं। जिस आदि कैलास में मध्य अक्टूबर के बाद पहुंच पाना असंभव प्रतीत होता था। वहां नवंबर माह तक आदि कैलास यात्रा चली।

मध्य दिसंबर के बाद सबसे ठंंडा माह पौष शुरू होने के बाद मार्ग खुला है। आश्चर्य तो इस बात का है कि दिसंबर माह में कुटी से पांच किमी पूर्व दुखदो नामक स्थान से आगे बर्फ के चलते एक कदम बढ़ाना मुश्किल हो जाता था। वहां अब कुटी से लेकर ज्योंलिंगकोंग आदि कैलास तक मार्ग में न तो ग्लेशियर और नही बर्फ नजर आ रही है।

हिमालयी नदियों का उद्गम स्थल है यह क्षेत्र

यह क्षेत्र हिमालयी नदियों का उद्गम स्थल है। प्रदेश की सबसे अधिक पानी रिचार्ज करने वाली काली नदी व्यास से आती है। इस क्षेत्र में बर्फ के न्यूनतम स्तर पर पहुंंचना आने वाले भविष्य के लिए सबसे बड़ी जल समस्या की चुनौती बनने जा रही है।

चीन सीमा से लगी उच्च हिमालयी व्यास घाटी में आज से कुछ वर्षो पूर्व तक छियालेख तक बर्फ के चलते पहुंच पाना भी संभव नहीं था। छियालेख से लेकर लिपुलेख, नावीढांंग, कालापानी, गुंजी, नाबी, नपलच्यु, गब्र्याग, रोंगकोंग और सर्वाधिक ऊंचाई पर आदि कैलास मार्ग पर स्थित कुटी गांव बर्फ की चादर में ढके होते थे। एक गांव का दूसरे गांव से सम्पर्क नहीं रहता था।

गुंजी से आदि कैलास मार्ग में कुटी गांव से पांच किमी पीछे दुखदो नामक स्थान से लेकर ज्योलिंगकोंग आदि कैलास तक विशाल ग्लेशियर रहते थे। दुखदो से आगे बढ़ पाना संभव नहीं रहता था। इस वर्ष मध्य दिसंबर के बाद ज्योलिंगकोंग आदि कैलास तक मार्ग खुला है। गुंजी से लेकर ज्योलिंगकोंग तक न तो मार्ग में बर्फ नजर आ रही है और नहीं ग्लेशियर।

बर्फबारी के चलते अक्टूबर के पहले सप्ताह में ही ग्रामीण कर लेते है माइग्रेशन

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन इनर लाइन परमिट जारी करे तो इस समय भी आदि कैलास यात्रा संभव है। व्यास घाटी के वयोवृद्ध 95 वर्षीय मंगल सिंह गुंज्याल इसे आश्चर्य मानते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी इस तरह की स्थिति नहीं देखी। वह बताते हैं कि कुटी गांव के ग्रामीण बर्फबारी के चलते सबसे पहले अक्टूबर प्रथम सप्ताह में ही माइग्रेशन कर लेते थे।

कुटी के बर्फ से नहीं ढका रहना जलवायु परिवर्तन का सूचक

व्यास घाटी के गुंजी ,गब्र्यांग और बूंदी के ग्रामीण सबसे अंत में अक्टूबर समाप्ति पर माइग्रेशन कर लेते थे । इस वर्ष दुखदो से आगे भी बर्फ नहीं होने को वह गंभीर मानते हैं। कुटी गांव निवासी पाल सिंह कुटियाल कहते हैं कि पहली बार दिसंबर माह तक कुटी के बर्फ से नहीं ढका रहना जलवायु परिवर्तन का सूचक है।

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वह बताते हैं कि इस बार बर्फबारी नहीं के बराबर है। बर्फ के नाम पर केवल जैकल (बर्फ का पाउडर) गिर रहा है जो दूसरे दिन धूप खिलते ही पिघल जाता है। केवल चोटियों में भर ही बर्फ है।

खतरे का संकेत

पर्यावरणविद डॉ. धीरेंद्र जोशी के अनुसार, उच्च हिमालय में अभी तक ग्लेशियर नहीं बनना और उच्च हिमालयी मार्गो का खुला रहना पर्यावरण की दृष्टि से खतरे का संकेत हैं। छह माह तक बर्फ से ढके रहने वाले क्षेत्र के मध्य दिसंबर तक भी बर्फ नहीं होना गंभीर है। इसके कारणों का पता लगाना आवश्यक है। ग्लोबल वार्मिग का असर तो है परंतु एकाएक ऐसी स्थिति सवाल खड़े कर रही है।

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