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उत्तराखंड भ्रमण पर आरएसएस के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत, कहा- 'भारत वैभवशाली था और वैभवशाली रहेगा'

Mohan Bhagwat Uttarakhand Visit आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने उत्तराखंड में कहा कि भारत वैभवशाली था और वैभवशाली ही रहेगा। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा ही व्यक्ति और समाज को मजबूत बनाती है। शिक्षा और परिश्रम से ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। विद्या और धन दान के लिए होता है और शक्ति दुर्बलों की मदद के लिए होती है।

By Jagran News Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sun, 17 Nov 2024 07:08 PM (IST)
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Mohan Bhagwat Uttarakhand Visit: आरएसएस के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत. Jagran
जासं, पिथौरागढ़ । Mohan Bhagwat Uttarakhand Visit: आरएसएस के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने कहा कि भारत वैभवशाली था और वैभवशाली ही रहेगा। जीवन में शिक्षा का अति महत्व है शिक्षा ही व्यक्ति और समाज को मजबूत बनाती है। शिक्षा और परिश्रम से ही सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है।

शिक्षा से स्वावलंबन आता है। मनुष्य परिश्रम से ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है। संघ प्रमुख ने यह बात रविवार को मुवानी में शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार विद्यालय भवन के उद्घाटन के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कही।

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विश्व का कोई भी देश दस प्रतिशत से अधिक नौकरी नहीं दे सकता

उन्होंने कहा कि विश्व का कोई भी देश दस प्रतिशत से अधिक नौकरी नहीं दे सकता है। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिससे कुछ करने के लिए प्रेरित होकर मनुष्य ऐसा कर्म करे जिससे स्वावलंबी बने और समाज उसके इस कार्य को स्वीकार्यता दे। मनुष्य को जीवन जीने के लिए सुख, समृद्धि चाहिए।

भागवत ने कहा कि व्यक्ति अपने हाथों से ही अपना भविष्य तय करता है। इसके लिए प्रयास आवश्यक हैं। संपूर्ण शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे स्वावलंबन पैदा हो। उन्होंने भारतीय परंपरा का जिक्र करते हुए कहा कि विद्या और धन दान के लिए होता है और शक्ति दुर्बलों की मदद के लिए होती है। शिक्षा, धन और शक्ति का सदुपयोग होना चाहिए। यही संस्कार हैं और सामाजिकता समरसता बढ़ाते हैं।

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समाज में अच्छा कार्य करने वाले से सभी लेते हैं सीख

शक्ति का प्रयोग आक्रमण के लिए करना दुरुपयोग है। सरकार आजीविका के लिए प्रशिक्षण दे सकती है, मगर समाज भी सीख देता है। समाज में अच्छा कार्य करने वाले से सभी सीख लेते हैं। उन्होंने विद्या भारती की शिक्षा पर बोलते हुए कहा कि शिक्षा वही है जो ज्ञान और संस्कार देती है। शास्त्रों में भी यही उल्लेख है।

अपने संबोधन की शुरुआत उन्होंने हिमालय की भूमि को तपोभूमि, ऋषि-मुनियों की भूमि बताते हुए की। तपस्या के महत्व पर कहानी सुनाते हुए कहा कि तपस्वी के तप का फल तपस्वी से अधिक अन्य लोगों को मिलता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी ने की। पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने स्वागत उद्बोधन किया।

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