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Uttarakhand News: यहां शिव मंदिर की स्थापना कर श्रीराम ने किया था स्वर्गारोहण, एक जगह होंगे दोनों भगवान के दर्शन

Uttarakhand News रामेश्वर धाम की मान्यता हरिद्वार की तरह ही है। कालांतर में भगवान श्री राम ने राजपाठ छोड़ने के बाद यहीं प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग की पूजा कर शिव मंदिर की स्थापना की। यहीं से उन्होंने स्वर्ग के लिए आरोहण किया। स्कंद पुराण में मंदिर में शिव पूजन के बाद राम के स्वर्गारोहण व अयोध्यावासियों के रामेश्वर आने का वृतांत भी है।

By Jagran News Edited By: Aysha SheikhUpdated: Sat, 13 Jan 2024 10:48 AM (IST)
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पिथौरागढ़ में सरयू व रामगंगा घाट के तट पर स्थित प्रसिद्ध रामेश्वर तीर्थ। जागरण।

रमेश गड़कोटी, पिथौरागढ़। अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर चीन और नेपाल सीमा से लगे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भी जबरदस्त उत्साह है। इस उत्साह का कारण भी है। माता सीता के मायके जनकपुर (नेपाल) से सटे सीमांत के लोग मानते हैं श्रीराम के चरण उनकी भूमि पर पड़े थे।

उन्होंने हिमालय से निकलने वाली दो पवित्र नदियों रामगंगा और सरयू के संगम स्थल पर अपने अराध्य भगवान शिव का मंदिर स्थापित किया और यहीं से उन्होंने स्वर्गारोहण किया। यही नहीं उन्होंने अपने भाइयों के साथ यहां शस्त्र व शास्त्र की शिक्षा भी गुरु वशिष्ठ से ग्रहण की। खास बात यह है कि 22 जनवरी को रामेश्वर में भी रामभक्त डा. विश्वम्भर विशन दत्त जोशी "शैलज" द्वारा नवनिर्मित श्रीराम मंदिर में विग्रह प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है।

पिथौरागढ जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर चंपावत और अल्मोड़ा जनपद की सीमा पर स्थित रामेश्वर धाम की मान्यता हरिद्वार की तरह ही है। इस धाम के संबंध में स्कंद पुराण के हवाले से इतिहासकार डा. मदन चंद्र भट्ट बताते हैं कि गुरु वशिष्ठ राम समेत चारों राजकुमारों को हिमालय की घाटियों की ओर लाए थे। यहां मानसरोवर झील से निकली सरयू और रामगंगा के संगम पनार में वशिष्ठ ऋषि ने आश्रम बनाया और राजकुमारों को शस्त्र-शास्त्र की शिक्षा दी।

कालांतर में भगवान श्री राम ने राजपाठ छोड़ने के बाद यहीं प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग की पूजा कर शिव मंदिर की स्थापना की। यहीं से उन्होंने स्वर्ग के लिए आरोहण किया। स्कंद पुराण में मंदिर में शिव पूजन के बाद राम के स्वर्गारोहण व अयोध्यावासियों के रामेश्वर आने का वृतांत भी है। चंद शासनकाल में यहां बड़े धार्मिक आयोजन कराए जाते थे। जिसमें देश भर के साधु-संत भी पहुंचते थे। मंदिरके पुजारी आनंद के अनुसार मकर संक्राति के दिन इस बार भव्य मेला संगम पर लगेगा। साथ ही मंदिर को दीपों से जगमग किया जाएगा।

रामेश्वर में अब शिव के साथ श्रीराम के भी होंगे दर्शन

रामेश्वर में अब भगवान शिव के साथ भगवान राम के भी दर्शन होंगे। यहां पर शिव मंदिर के पास में ही राम मंदिर का भी निर्माण हो चुका है। 22 जनवरी को जब अयोध्या में भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी, उसी समय रामेश्वर के राम मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा होगी। भगवान राम के अन्यय भक्त अल्मोड़ा निवासी 84 वर्षीय डा. विश्वम्भर विशन दत्त जोशी "शैलज" के प्रयास से मंदिर निर्माण संभव हो पाया है। राम में लीन डा. जोशी दिल्ली संस्कृत विश्वविद्यालय से संस्कृत पंडित की उपाधि से सम्मानित हैं।

कुमाऊं भाषा में पहली रामायण लिख चुके हैं डा. जोशी

कवि, स्तभंकार, लेखक डा. विश्वम्भर कुमाऊंनी भाषा में रामायण लिख चुके हैं। बाद में दिल्ली संस्कृत विश्वविद्यालय से उन्हें संस्कृत में भी रामायण लिखने को कहा गया। उन्होंने सात कांड वाली कुमाऊनी रामायण का पहला कांड संस्कृत में और शेष भाग कुमाऊंनी में लिखा है। वह बताते हैं कि उनके अराध्य राम हैं। बिना राम के वह कोई भी रचना नहीं करते हैं।

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