आपदा के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, महिलाओं की संजीवनी बनी मंदाकिनी
केदारनाथ आपदा के बाद भी महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी। मंदाकिनी बुनकर समिति से जुड़ी और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में उठाया गया उनका कदम आज सार्थक हो गया।
रुद्रप्रयाग, [रविंद्र कप्रवान]: यह केदारघाटी की महिलाओं का जज्बा ही है कि उन्होंने केदारनाथ आपदा में अपने परिजनों को खोने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और मंदाकिनी बुनकर समिति से जुड़कर नए सिरे से जीवन संवारने का निर्णय लिया।
नतीजा, वर्तमान में 300 से अधिक महिलाएं समिति से जुड़कर जहां आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं, वहीं अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। समिति से जुड़कर वह पंखी, शाल, स्टाल समेत कई प्रकार के कपड़े तैयार कर रही हैं, जिनकी देशभर में मांग है।
जून 2013 की केदारनाथ आपदा में केदारघाटी के कई परिवारों ने अपने कमाऊ पूत खो दिए थे। तब इन परिवारों की महिलाओं ने नियति को कोसने के बजाय खुद अपनी किस्मत लिखने की ठानी।
इसी की परिणति थी जनवरी 2014 में अस्तित्व में आई मंदाकिनी महिला बुनकर समिति। जिसने केदारघाटी के देवली, भणिग्राम, लमगौंडी, कुणजेठी, बड़ासू, त्रियुगीनारायाण व तोषी में अपने केंद्रों का संचालन शुरू किया।
सबसे पहले समिति से जुड़े कुशल प्रशिक्षकों की ओर से महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, कताई, छंटाई, बिनाई, पेंङ्क्षटग, फिनिङ्क्षशग, पैङ्क्षकग व टैङ्क्षगग का प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान समिति की ओर से प्रत्येक महिला को मानदेय के रूप में 1800 रुपये का भुगतान भी किया गया।
अब प्रशिक्षण प्राप्त महिलाएं शाल, स्टाल, मफलर, पंखी, साड़ी व अन्य कपड़े बनाने में निपुणता हासिल कर चुकी हैं। वह अपने घरों के साथ ही केंद्रों में भी यह कार्य करती हैं।
समिति की ओर से हैंडलूम का कार्य भी किया जाता है। समिति महिलाओं को प्रत्येक उत्पाद के हिसाब से भुगतान करती है। सुखद यह कि उनके तैयार किए उत्पादों की मांग देश के विभिन्न राज्यों के साथ विदेशों में भी है। जिससे समिति को अच्छी-खासी आय प्राप्त हो जाती है।
समिति के निदेशक डॉ. हरिकृष्ण बगवाड़ी बताते हैं कि समिति का चार वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। अब समिति की ओर से तैयार उत्पादों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि महिलाएं अपने उत्पाद आसानी से बेच सकें।
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