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इस पर्वत पर स्थापित है यह मंदिर, नहीं जुड़ पाया पर्यटन सर्किट से

उत्तर भारत का एकमात्र कार्तिक स्वामी मंदिर आज भी पर्यटन सर्किट से नहीं जुड़ पाया है। सरकारी स्तर पर इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

By Edited By: Updated: Thu, 31 May 2018 05:12 PM (IST)
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इस पर्वत पर स्थापित है यह मंदिर, नहीं जुड़ पाया पर्यटन सर्किट से
रुद्रप्रयाग, [रविंद्र कप्रवान]: चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के मध्य क्रौंच पर्वत पर स्थित उत्तर भारत का एकमात्र कार्तिक स्वामी मंदिर आज भी पर्यटन सर्किट से नहीं जुड़ पाया है। मंदिर का प्रचार-प्रसार न होने के कारण प्रतिवर्ष यहां पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या गिनती की ही रहती है। हालांकि, कार्तिक स्वामी मंदिर समिति बीते सात दशक से अपने संसाधनों और भक्तों के सहयोग से मंदिर में प्रतिवर्ष 11-दिवसीय महायज्ञ का आयोजन करती है। बावजूद इसके सरकारी स्तर पर इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। 

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह मंदिर रुद्रप्रयाग व चमोली जिले के 365 गांवों की आस्था का केंद्र है। इन गांवों के लोग कार्तिक स्वामी को ग्राम एवं इष्ट देवता के रूप में पूजते हैं। लेकिन, देश-दुनिया की नजरों में यह मंदिर आज भी नहीं है। 

कार्तिकेय मंदिर समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह नेगी बताते हैं कि प्रदेश सरकार की ओर से आज तक मंदिर को संवारने और यहां व्याप्त समस्याओं के निदान को कोई कदम नहीं उठाए गए। यहां तक कि धाम में बिजली-पानी की भी व्यवस्था नहीं है। घोषणाओं में सिमटा पर्यटन सर्किट पूर्व में मंदिर को पर्यटन सर्किट से जोड़ने को लेकर कई घोषणाएं हुई, लेकिन धरातल पर इनमें से कोई नहीं उतरी। 

जबकि, बीते वर्ष महायज्ञ में पहुंची केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कार्तिक स्वामी मंदिर को हिमालय के पांचवें धाम के रूप में विकसित करने के साथ ही यहां अन्य सुविधाएं जुटाने का भरोसा दिला चुकी हैं। 

यह है धार्मिक  महत्ता 

कार्तिक स्वामी मंदिर का महात्म्य कथा है कि एक बार महादेव समेत अन्य देवताओं ने तय किया कि देवताओं में प्रथम पूज्य वही होगा, जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण करेगा। गणेश व कार्तिकेय के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हुई तो कुमार कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। जबकि, गणेश ने अपने माता-पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा की। 

तब सभी देवताओं ने निष्कर्ष निकाला कि माता-पिता का स्थान पृथ्वी से ऊपर है, इसलिए गणेश प्रथम पूज्य होंगे। पृथ्वी की परिक्रमा करने के बाद जब कार्तिकेय वापस कैलास लौटे तो देखा कि गणेश प्रथम पूज्य घोषित हो चुके हैं। इससे क्षुब्ध कार्तिकेय ने गुस्से में अपने शरीर का पूरा मांस काटकर वहीं ढेर कर दिया। मान्यता है कि इसके बाद वह मात्र हड्डियों का ढांचा लेकर क्रौंच पर्वत पर आकर बस गए। तबसे उनकी पूजा यहां निर्वाण रूप मे होती है। 

ऐसे पहुंचे कार्तिक स्वामी मंदिर 

रुद्रप्रयाग-पोखरी मोटर मार्ग पर 36 किमी की दूरी वाहन से तय कर कनकचौंरी नामक स्थान पड़ता है। यहां से तीन किमी पैदल चलकर कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचा जा सकता है। 

छह जून से शुरू होगा महायज्ञ 

आगामी छह जून से मंदिर में महायज्ञ एवं पौराणिक कथाओं का शुभारंभ होगा। 14 जून को मंदिर में भव्य जल कलश यात्रा निकाली जाएगी और 15 जून को पूर्णाहुति के साथ महायज्ञ विराम लेगा। 

होगा मंदिर का सौंदर्यकरण 

रुद्रप्रयाग जिले के पर्यटन अधिकारी पीके गौतम के मुताबिक कार्तिक स्वामी मंदिर में व्याप्त तमाम समस्याओं के निदान को प्रयास किए जा रहे हैं। क्षेत्र में पैदल रास्ते पर सोलर लाइट लगाने के साथ कुछ योजनाओं पर भी कार्य चल रहा है। इसमें मंदिर का सुंदरीकरण भी शामिल है।

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