Uttarakhand News: द्वापर युग से जुड़ी है यह अनोखी परंपरा, आज भी केदारघाटी में होता है पांडव नृत्य
पांडवों का उत्तराखंड के गढ़वाल से गहरा संबंध रहा है। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद कुल हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों को शिव की शरण में केदारनाथ गए। वे जहां जहां से गुजरे वहां आज भी पांडव नृत्य होता है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 09 Nov 2022 01:11 PM (IST)
संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: Uttarakhand News इन दिनों उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के केदारघाटी क्षेत्र में पांडव नृत्य (Pandav Nritya) की धूम है। इस नृत्य का आयोजन आस्था के साथ किया जाता है। इसका प्रमुख कारण पांडवों के गढ़वाल के इतिहास से जुड़ा होना है। आइए हम आपको इसके बारे में बताते हैं।
सदियों से चल आ रही है यह परंपरा
मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों के पश्चाताप के लिए स्वर्ग की यात्रा पर निकले। पांडव मंदाकिनी नदी के किनारे से होते हुए केदारनाथ पहुंचे, जिन स्थानों से वे गुजरे और जहां विश्राम किया वहां आज भी पांडव लीला होती है। यह परंपरा सदियों से जारी है।
स्कंद पुराण में मिलता है उल्लेख
स्कंद पुराण के केदारखंड में गढ़वाल में पांडवों का इतिहास का उल्लेख मिलता है। इस पौराणिक संस्कृति को संजोए रखने को ग्रामीण आज भी पांडव लीला का आयोजन करते है और आने वाली पीढ़ी को इससे रूबरू करते हैं।
नवंबर से फरवरी तक होता पांउव नृत्य
गढ़वाल के कई जगहों पर हर साल नवंबर से फरवरी माह तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है। खरीफ की फसल कटने के बाद ही एकादशी से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है।पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की होती है पूजा
रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से जुड़ी ग्राम पंचायत दरमोला भरदार में प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व से पांडव नृत्य की तिथि तय है। इस दौरान पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों (धनुष-बाण) और देव निशानों की पूजा की परंपरा है।पांडव निकले थे स्वर्गारोहणी की यात्रा पर
स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण ने पांडव अपने अस्त्र-शस्त्रों को त्यागने के आदेश दिए थे। इसके बाद वे मोक्ष के लिए स्वर्गारोहणी की यात्रा पर निकले थे। इस दौरान वह जिन-जिन जगहों से होते हुए केदारनाथ गए, उन जगहों पर विशेष रूप से पांडव नृत्य का आयोजन होता है।पंचांग के अनुसार तय होते हैं दिन
पंचाग की गणना के बाद पांडव लीला का शुभ दिन तय होता है। रुद्रप्रयाग जनपद के कई जगहों पर ग्रामीण अस्त्र-शस्त्रों के साथ पांडव नृत्य करते हैं। वहीं कई स्थानों पर मंडाण के साथ यह नृत्य होता है। कहा जाता है कि ये परंपराएं पांडवकाल से चली आ रही हैं। यह भी पढ़ें:- कहां हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह? प्रमुख वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में फेमस है यह स्थानइन स्थानों पर होता है पांडव नृत्य
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