Kedarnath: 2013 जैसा मंजर था वह तो… जंगल को ओर जान बचाकर भागे यात्रियों ने सुनाई आपबीती
बुधवार रात भी केदारनाथ पैदल मार्ग पर लिनचोली से लेकर रामबाड़ा तक और भीमबली में हुई अतिवृष्टि ने वर्ष 2013 में आई आपदा की याद ताजा कर दी। अतिवृष्टि के चलते जंगल की ओर भागकर जान बचाने वाले यात्रियों ने आपबीती सुनाई और कहा कि उनकी जान बाबा की कृपा से बच पाई। बता दें कि केदारघाटी बेहद संवेदनशील है। अतिवृष्टि व भूस्खलन की घटनाएं यहां अमूमन होती रहती हैं।
बृजेश भट्ट, रुद्रप्रयाग। केदारनाथ धाम जाने वाले और दर्शन कर लौटने वाले यात्रियों पर बुधवार की रात भारी गुजरी। अतिवृष्टि के चलते गौरीकुंड समेत पैदल मार्ग के पड़ावों पर ठहरे यात्रियों ने जंगल की ओर भागकर जान बचाई।
वर्षा और कड़ाके की ठंड में वे पूरी रात खुले आसमान के नीचे ठिठुरते रहे। सुबह होने पर एनडीआरएफ समेत पुलिस-प्रशासन की टीमों ने उन्हें सुरक्षित निकाला। यात्रियों का कहना था कि यह भी वर्ष 2013 के जैसा ही मंजर था। बस! बाबा की कृपा से जैसे-तैसे जान बच गई।
2013 में आई आपदा की याद ताजा
आपदा की दृष्टि से केदारघाटी बेहद संवेदनशील है। अतिवृष्टि व भूस्खलन की घटनाएं यहां अमूमन होती रहती हैं। बुधवार रात भी केदारनाथ पैदल मार्ग पर लिनचोली से लेकर रामबाड़ा तक और भीमबली में हुई अतिवृष्टि ने वर्ष 2013 में आई आपदा की याद ताजा कर दी।इस बार भी अधिकांश यात्री जान बचाने के लिए जंगल की ओर भागे और पूरी रात भीगते-ठिठुरते रहे। वर्ष 2013 की तरह रामबाड़ा क्षेत्र में भी अतिवृष्टि ने तबाही मचाई। आस-पास की पहाड़ियों से बहने वाले झरनों के रौद्र रूप धारण करने से मंदाकिनी नदी का जलस्तर इतना अधिक बढ़ गया कि गौरीकुंड में लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा। तप्तकुंड क्षेत्र को तो मंदाकिनी पूरी तरह अपने आगोश में ले लिया।
मैं जंगल की ओर भागा…
दिल्ली के द्वारका निवासी ललित भी गौरीकुंड में ठहरे हुए थे। उन्हें गुरुवार सुबह केदारनाथ दर्शन के लिए जाना था। बकौल ललित, 'रात नौ बजे के आसपास होटल मालिक ने तेजी से मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया और मुझे ऊपर जंगल की ओर भागने के लिए कहा। यह सुन मैं कमरे से बाहर निकला तो मंदाकिनी का विकराल रूप देख कांप उठा। बिना कुछ सोचे अपना पूरा सामान छोड़ मैं तेज वर्षा में ही जंगल की ओर भागा। कई और यात्री भी मेरे साथ थे। पूरी रात जंगल में भीगते हुए गुजारी और सुबह होने पर वापस होटल में पहुंचा। तब मंदाकिनी का जलस्तर काफी घट गया था। इसके बाद एनडीआरएफ की मदद से सोनप्रयाग पहुंचा।
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