उत्तराखंड में भगवान शिव का भव्य धाम, जहां वर्षभर एक साथ दर्शन देते हैं हिमालय के पांच केदार, ऐसे पहुंचें...
Omkareshwar Temple Ukhimath कपाट बंद होने के बाद छह महीने के लिए यहीं बाबा केदार का पंचमुखी विग्रह स्थापित रहता है। केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हैं लेकिन तीर्थ यात्री इस अवधि में पंचगद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में बाबा केदार के दर्शन कर सकते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Tue, 13 Dec 2022 02:01 PM (IST)
बृजेश भट्ट, रुद्रप्रयाग : Omkareshwar Temple Ukhimath : केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हैं, लेकिन तीर्थ यात्री इस अवधि में पंचगद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में बाबा केदार के दर्शन कर सकते हैं। कपाट बंद होने के बाद छह महीने के लिए यहीं बाबा केदार का पंचमुखी विग्रह स्थापित रहता है।
भगवान शिव का यह ऐसा धाम है, जहां पंचकेदार यानी भगवान केदारनाथ, द्वितीय केदार मध्यमेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ व पंचम केदार कल्पेश्वर एक साथ दर्शन देते हैं।
जो भक्त स्वास्थ्य संबंधी कारणों से केदारनाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ व रुद्रनाथ नहीं जा पाते, वे यात्राकाल में भी यहीं बाबा के दर्शन करते हैं। जबकि, कल्पेश्वर धाम की यात्रा सुगम होने के साथ ही वर्षभर जारी रहती है।
प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है
खास बात यह कि पंचकद्दी स्थल में प्रकृति का भी अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पांचों केदार विराजमान हैं। शीतकाल में बाबा केदार के साथ ही द्वितीय केदार मध्यमेश्वर की भोग मूर्ति भी यहीं विराजती है।
छह सौ परिवार और लगभग तीन हजार की आबादी वाले ऊखीमठ नगर में प्राकृतिक सुंदरता सर्वत्र बिखरी हुई है। यहां की सुरम्य वादियां, ठीक सामने नजर आने वाली चौखंभा पर्वत की हिमाच्छादित चोटियां और बांज-बुरांश के जंगल हर किसी का मन मोह लेते हैं।
नगर के बीचों-बीच ओंकारेश्वर मंदिर स्थापित है, जहां पांचों केदार की नियमित पूजाएं होती हैं और मुख्य पुजारी नित्य पूजाओं के साथ बाबा केदार को भोग लगाते हैं। खास बात यह कि देश-दुनिया में यही एकमात्र मंदिर शेष है, जिसका निर्माण अतिप्राचीन धारत्तुर परकोटा शैली में हुआ है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।द्वापर युग में हुआ माना जाता है ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण
केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर लिंग के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ माना जाता है। मान्यता है कि शिव भक्त बाणासुर की बेटी उषा व भगवान कृष्ण के पोते अनिरुद्ध की शादी इसी स्थान पर हुई थी। इसलिए इस तीर्थ को देवी उषा के नाम पर उषामठ कहा जाने लगा।कालांतर में उषामठ का अपभ्रंश होकर पहले इसका नाम उखामठ और फिर ऊखीमठ नाम पड़ा। देवी उषा के आगमन से पूर्व इस स्थान का नाम ‘आसमा’ था। राजा मान्धाता की तपस्थली होने के कारण इसे मान्धाता भी कहा जाता है। इसलिए केदारनाथ की बहियों का प्रारंभ ‘जय मान्धाता’ से ही होता है।उत्तराखंड का सबसे विशाल मंदिर समूह
उत्तराखंड के मंदिरों में क्षेत्रफल और विशालता के हिसाब से यह सर्वाधिक विशाल मंदिर समूह है। पुरातात्विक सर्वेक्षणों के अनुसार प्राचीनकाल में ओंकारेश्वर मंदिर के अलावा सिर्फ काशी विश्वनाथ (वाराणसी) और सोमनाथ मंदिर में ही धारत्तुर परकोटा शैली उपस्थित थी।हालांकि, बाद में आक्रमणकारियों ने इन मंदिरों को नष्ट कर दिया। उत्तराखंड में भी अधिकांश प्रसिद्ध मंदिर या तो कत्यूरी शैली में निर्मित हैं या फिर नागर शैली में।माहात्म्य
केदारनाथ धाम के मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग कहते हैं कि शीतकाल में जो भक्त बाबा केदार के दर्शन पंचगद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में करते हैं, उन्हें भी केदारनाथ धाम में दर्शनों के समान पुण्य प्राप्त होता है। पूरे शीतकाल के दौरान केदारनाथ की तरह यहां भी बाबा केदार की नित्य पूजाएं संपन्न होती हैं। प्रतिदिन आरती के साथ भगवान को भोग लगाया जाता है।गद्दीस्थल की परंपरा
गद्दीस्थल की परंपरा ओंकारेश्वर मंदिर में आदि शंकराचार्य के काल से चली आ रही है। आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में इस मंदिर में रावल की परंपरा शुरू की थी, तब से अब तक केदारनाथ धाम में 325 रावल नियुक्त हो चुके हैं। रावल का निवास स्थान ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ ही है।यह भी पढ़ें : शीतकाल में यहां दर्शन देती हैं मां गंगा, परंपरागत शिल्प से तैयार मकान व भागीरथी का सम्मोहन खींचता है ध्यान केदारनाथ यात्रा के दौरान भी रावल मुख्य रूप से ऊखीमठ में रहकर ही बाबा की पूजा-अर्चना करते हैं। हालांकि, परंपरा के अनुसार रावल के नेतृत्व में चार मुख्य पुजारी तैनात रहते हैं, जो नियमित रूप से रावल के प्रतिनिधि के रूप में पूजाएं संपन्न करते हैं।अनुकूल एवं सुहावना मौसम
शीतकाल के दौरान पहाड़ में मौसम खुशगवार रहता है। इस अवधि में यहां बारिश भी यदा-कदा ही होती है, जिससे सड़कों के टूटने का खतरा भी नहीं रहता। यही नहीं, गुनगुनी धूप का आनंद उठाने के लिए भी पर्यटक बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। शीतकाल में ऊखीमठ के आसपास ऊंची पहाड़ियों पर बर्फबारी का नजारा भी देखते ही बनता है। हां! सुबह-शाम ठंड काफी रहती है, इसलिए गर्म कपड़े साथ लाना न भूलें।ऐसे पहुंचें ओंकारेश्वर धाम
ऋषिकेश से जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग की दूरी 140 किमी है। यहां से गौरीकुंड हाइवे पर 40 किमी दूर कुंड नामक स्थान पड़ता है। कुंड से ऊखीमठ महज आठ किमी की दूरी पर है। आप ऋषिकेश से निजी व सार्वजनिक वाहनों के जरिये आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।खाने-ठहरने की पर्याप्त सुविधाएं मौजूद
ऊखीमठ में ठहरने के लिए होम स्टे के साथ ही अच्छे होटल भी मौजूद हैं, जो वर्षभर तीर्थ यात्री व पर्यटकों की सेवा में खुले रहते हैं। तीर्थ यात्री व पर्यटक यहां पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों का जायका भी ले सकते हैं।गर्म तासीर होने के कारण शीतकाल में पहाड़ी व्यंजन काफी पसंद किए जाते हैं। इनमें मंडुवे व चौलाई की रोटी, आलू के गुटखे, राजमा, उड़द व तोर की दाल, हरी चटनी, चौलाई के लड्डू प्रमुख हैं।ऊखीमठ के आसपास स्थित अन्य तीर्थ स्थल
- कालीमठ मंदिर : ओंकारेश्वर धाम से 16 किमी दूर कविल्ठा-चौमसी मोटर मार्ग पर सिद्धपीठ कालीमठ स्थित है। किवदंती है कि मां काली ने शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज दानव का वध करने के लिए कालीमठ से आठ किमी ऊपर पहाड़ी पर स्थित काली शिला में 12 वर्षीय बालिका का रूप धारण किया था। इसके बाद यह बालिका कालीमठ में अंतर्ध्यान हो गई। तबसे कालीमठ में मां काली की पूजा होती है। यहां स्थित मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्स्थापित किया माना जाता है।
- विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी : ऊखीमठ से 16 किमी दूर गुप्तकाशी में भी काशी विश्वनाथ की तरह भगवान विश्वनाथ का मंदिर है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव के दर्शनों को गुप्तकाशी पहुंचे। तब भगवान शिव ने महिष (भैंसा) का रूप धारण कर लिया, लेकिन पांडव इस रूप में भी उन्हें पहचान गए। सो, भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और फिर अंतर्ध्यान हो गए। स्थानीय पत्थरों से पहाड़ी शैली में बना यह मंदिर आदि शंकराचार्य के समय का माना जाता है।
- त्रियुगीनारायण : मान्यता है कि भगवान विष्णु के इस मंदिर में भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। जिस अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव ने माता पार्वती का वरण किया था, वह एक कुंड में आज भी यहां प्रज्वलित है। आज भी देश-विदेश से युवक-युवतियां यहां विवाह बंधन में बंधने के लिए आते हैं। गौरीकुंड हाइवे पर सोनप्रयाग तक 45 किमी की दूरी तय करने के बाद सड़क मार्ग से दस किमी दूर त्रियुगीनारायण गांव में यह मंदिर स्थित है।