उत्तराखंड में नदी से जोड़कर बचाया जाएगा इस झील को, पढ़िए पूरी खबर
समुद्र से सात हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद और रंगबिरंगी मछलियों के लिए मशहूर बधाणीताल झील को अब लस्तर नदी से जोड़ा जाएगा।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 12 Feb 2019 07:57 PM (IST)
रुद्रप्रयाग, बृजेश भट्ट। समुद्रतल से सात हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तराखंड के पर्यटन ग्राम बधाणी में मौजूद प्राकृतिक झील (बधाणीताल) को सूखने से बचाने के लिए ग्रामीण इसे लस्तर नदी से जोड़ने की योजना बना रहे हैं। बीते दो दशक में इस झील का जलस्तर दो मीटर तक घट चुका है। झील के जलस्रोत सूखने को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। इसके अलावा वर्ष 1999 में आए विनाशकारी भूकंप से झील के पानी का रिसाव होने के कारण भी यह संकट खड़ा हुआ है।
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से 65 किमी दूर जखोली विकासखंड के सीमांत गांव बधाणी में है यह खूबसूरत झील। गांव के कारण झील का नाम बधाणीताल पड़ा। 180 मीटर लंबी और 110 मीटर चौड़ी इस झील की परिधि 350 मीटर है। हिमालय की तलहटी में बसे बधाणी गांव की आभा देखते ही बनती है। चारों ओर बर्फ से लकदक चोटियों और बांज के घने जंगल से घिरे इस गांव को सरकार ने पर्यटन ग्राम घोषित किया है। लेकिन अब झील पर संकट खड़ा हो गया है। गांव का मुख्य आकर्षण यह झील धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है। बीते दो दशक में झील का जलस्तर लगभग दो मीटर घट चुका है। पहले इस झील की गहराई चार मीटर से अधिक हुआ करती थी। जलस्तर घटने का असर झील के प्राकृतिक सौंदर्य पर भी पड़ा है।
1999 में आए भूकंप के बाद झील से पानी का रिसाव शुरू हो गया। साथ ही प्राकृतिक स्रोतों का पानी भी घट गया, जिससे झील का जलस्तर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इससे गांव ही नहीं, क्षेत्र का पर्यटन आधारित रोजगार भी प्रभावित हो रहा है। लिहाजा ग्रामीणजन अपनी झील के संरक्षण में जुट गए हैं। बताते चलें कि झील के दीदार को हर साल दस हजार से अधिक पर्यटक बधाणी पहुंचते हैं।
जलस्तर घटने के साथ बढ़ रही चिंता
जिला पंचायत सदस्य महावीर सिंह पंवार बताते हैं कि सभी लोग अपनी इस झील को लेकर चिंतित हैं। इसी को ध्यान में रखकर ग्रामीण अब झील को लस्तर नदी से जोड़ने की कवायद कर रहे हैं। इसके लिए नदी से झील तक छह किमी लंबी नहर बनाने की योजना है।
विशेषज्ञों ने कहा
केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (हैप्रेक) के वैज्ञानिक डॉ. विजयकांत पुरोहित बताते हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुरूप बारिश एवं बर्फबारी न होने के कारण जमीन में जितना पानी पहुंचना चाहिए था, उतना नहीं पहुंच पा रहा। जंगलों का क्षेत्रफल भी लगातार घट रहा है। साथ ही उच्च हिमालय के बुग्यालों में होने वाली घास में भी मानव हस्तक्षेप के कारण कमी आई है। यही वजह है कि हिमालयी क्षेत्रों प्राकृतिक जलस्रोत लगातार कम होते जा रहे हैं और मौजूद स्रोतों में भी पानी घट रहा है। बधाणीताल का जलस्तर घटने की पीछे भी यही प्रमुख वजह है। रंगीन मछलियों के लिए प्रसिद्ध है बधाणीताल
बधाणीताल की मुख्य विशेषता इसमें पाई जाने वाली रंगीन मछलियां हैं। छोटे-बड़े आकर की अलग-अलग रंगों वाली ये मछलियां झील में सम्मोहन सा बिखेरती हैं। इनके दीदार को हर साल यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है। हर साल 10 हजार से अधिक पर्यटक पहुंचते हैं। मान्यता है कि त्रियुगीनारायण से जल इस ताल में पहुंचता है। यहां हर साल ग्रीष्मकाल में मेला भी आयोजित होता है। बोले अधिकारी
पीके गौतम (जिला पर्यटन अधिकारी, रुद्रप्रयाग) का कहना है कि बधाणीताल के संरक्षण को पर्यटन विभाग जल्द प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजेगा। झील का जलस्तर कैसे बढ़े, इस पर भी विचार मंथन चल रहा है। साथ ही झील के आस-पास सुंदरीकरण के लिए भी प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। यह भी पढ़ें: बर्फ की चादर ओढ़कर भी खामोश है दयारा, परवान नहीं चढ़ पाई हिमक्रीड़ा की योजना
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