फल-फूलों की खेती को बनाया उन्नति का आधार, बढ़ने लगा कारोबार
बिरवान सिंह रावत की मेहनत से विकसित किया गया आधुनिक उद्यान उनकी जिंदगी को महका रहा है। वह फलों की पैदावार बढ़ाने को पौधों का क्लोन तैयार करवा रहे हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 23 Dec 2019 11:51 AM (IST)
टिहरी, जेएनएन। यह कहानी है टिहरी जिले (उत्तराखंड) के जौनपुर ब्लॉक स्थित बसाण गांव के बिरवान सिंह रावत (52) की। वह रक्षा मंत्रालय के उपक्रम में उपप्रबंधक तैनात थे। इसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि पहाड़ के लोग खेती छोड़ नौकरी के लिए महानगरों में भटक रहे हैं। सो, ठान लिया कि क्यों न खुद गांव लौटकर युवाओं की इस पीड़ा को कुछ कम करें।
इसके बाद नौकरी से त्यागपत्र दिया और लौट आए गांव। आज 17 साल की मेहनत से विकसित किया गया आधुनिक उद्यान उनकी जिंदगी को महका रहा है। बिरवान उत्तराखंड में अकेले काश्तकार हैं, जो फलों की पैदावार बढ़ाने को पौधों का क्लोन तैयार करवा रहे हैं। उन्होंने बागवानी के लिए अपने खेतों के अलावा कुछ खेत ग्रामीणों से भी खरीदे हैं। 2002 से पहले बसाण में लोग धान की खेती करते थे, लेकिन बिरवान ने गांव लौटकर अपने खेतों में फलों की पौध लगानी शुरू की और धीरे-धीरे एक खूबसूरत उद्यान तैयार हो गया।
वह अपने खेतों में सेब, कीवी व नाशपाती का उत्पादन करते हैं। जिनकी मांग देहरादून से लेकर दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद की मंडी तक है। खरीदार स्वयं उनके उद्यान में पहुंच जाते हैं। चालू सीजन में बिरवान करीब दो लाख रुपये के सेब व कीवी बेच चुके हैं। साथ ही फूलों की खेती भी कर रहे हैं।
विदेशी वैज्ञानिकों के लिए भी आकर्षण
कुछ दिन पूर्व अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. सिडार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने क्लोन से तैयार पेड़ों के इस आधुनिक उद्यान का दौरा किया। उन्होंने यहां उत्पादित फलों के बारे में जानकारी भी जुटाई। पुणे विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक डॉ. श्वेता भी इस उद्यान का भ्रमण कर चुकी हैं।बच्चे भी बंटाते हैं पिता का हाथबिरवान बताते हैं कि उनकी बेटी शिवाली देहरादून में बीएएमएस और बेटा हिमांशु दिल्ली में पर्यावरण विज्ञान में एमएससी कर रहा है। दोनों छुट्टियों में घर लौटने पर उनकी मदद करते हैं। सीजन में वह लगभग 15 लोगों को रोजगार देते हैं, जबकि पांच लोग नियमित रोजगार पा रहे हैं।
ऐसे तैयार होता है क्लोनजिला उद्यान अधिकारी डॉ. डीके तिवारी बताते हैं कि इसके लिए किसी पेड़ के तने या ऊपरी हिस्से की कोशिका को प्रयोगशाला में मिट्टी के 16 पोषक तत्वों की टेस्ट टयूब में डाला जाता है। पोषक तत्वों और उचित तापमान की मदद से वह कोशिका कुछ महीने बाद अंकुरित होकर पौधा बन जाती है। इस प्रक्रिया में छह महीने का समय लगता है। इसके बाद उसे जमीन में रोपा जाता है।
यह भी पढ़ें: नफीस की मेहनत से बंजर भूमि उगल रही लाल सोना, लोगों को भी दे रहे रोजगारक्लोन पौधे को लगाने के बाद उसकी जड़ों से अन्य पौधे विकसित होते हैं, जिन्हें बगीचे में रोपा जाता है। इन पौधों की खासियत यह है कि वह तीन साल में ही फल देने लगते हैं। इसी कारण काश्तकारों में क्लोन पौधे का क्रेज बढ़ रहा है। क्लोन पेड़ 15 साल तक अपनी जड़ों से छोटे-छोटे पौधों को जन्म देता है। यह पेड़ फल नहीं देता। वर्तमान में काश्तकार हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में रजत बायोटेक प्रयोगशाला से क्लोन पौधे टिहरी ला रहे हैं।
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