टिहरी, जेएनएन। विषम भूगोल वाले पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की चुनौतियों से निपटने में अब तकनीक कारगर साबित होगी। टिहरी जिले में ड्रोन के जरिये 32 किलोमीटर दूर ब्लड सैंपल भेजने में सफलता मिली है। प्रयोग की सफलता से उत्साहित टिहरी की जिलाधिकारी सोनिका कहती हैं कि 'अभी जुलाई में एक और परीक्षण किया जाएगा। यदि यह सफल रहा तो विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाएगी।Ó उन्होंने कहा कि संभवत: यह देश में अपनी तरह का पहला प्रयोग है। संभावना जताई जा रही है कि प्रयोग सफल रहा तो यह योजना पूरे प्रदेश में लागू की जा सकती है। उत्तराखंड के कुल 13 जिलों में से हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर को छोड़ दिया जाए तो शेष पहाड़ी क्षेत्र है। ऐसे में दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना दुष्कर बना हुआ है। विशेषकर मानसून और शीतकाल में। इस दौरान पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, अल्मोड़ा, पौड़ी और चम्पावत जैसे जिलों के कई इलाके जिला मुख्यालयों से कट जाते हैं।
इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए टिहरी की जिलाधिकारी सोनिका ने इस दिशा में पहल की। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के पूर्व छात्र निखिल उपाध्याय से संपर्क साधा। निखिल अपने साथियों के साथ सीडी स्पेस रोबोटिक्स कंपनी का संचालन करते हैं। डीएम ने बताया कि इसी कंपनी ने दस लाख रुपये की लागत से यह ड्रोन तैयार किया है।बीते गुरुवार को निखिल टीम के साथ नई टिहरी पहुंचे। इसके बाद वे प्रयोग के लिए 32 किलोमीटर दूर घनसाली के पास नंदगांव पहुंचे। टीम ने नंदगांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) से दो मरीजों के खून के नमूने लिए और ड्रोन से नई टिहरी स्थित जिला अस्पताल भेजे।
सड़क के जरिये नंदगांव से जिला अस्पताल नई टिहरी तक पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने सिर्फ 18 मिनट लगे। जिलाधिकारी ने बताया कि नंदगांव से नई टिहरी की हवाई दूरी मात्र 12 किलोमीटर है।
ड्रोन से 50 किमी के हवाई दायरे में पहुंचाया जा सकता है 500 ग्राम वजनजिलाधिकारी सोनिका के मुताबिक इस ड्रोन से 50 किलोमीटर के हवाई दायरे में 500 ग्राम वजन पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि टीम ने यह डेमो निश्शुल्क दिया है। इसके लिए प्रशासन को कोई भुगतान नहीं करना पड़ा।
दूरस्थ इलाकों बचाई जा सकेंगी जिंदगीजिला अस्पताल के चिकित्साधीक्षक डॉ. एसएस पांगती बताते हैं कि टिहरी जिले में करीब तीन दर्जन गांव ऐसे हैं जिनकी सड़क से पैदल दूरी पांच से 22 किलोमीटर तक है। इन इलाकों के लिए यह तकनीक कारगर साबित होगी। अब दूरस्थ क्षेत्रों तक जल्द जीवनरक्षक दवाएं पहुंचाने की उम्मीद जगी है।
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