यहां बंजर खेतों में महक रहा उम्मीदों का गुलाब, ऑस्ट्रेलिया तक जा रहा गुलाब जल
टिहरी जिले में बंजर खेतों में उम्मीदों का गुलाब महक रहा है। गुलाब की खेती से जुड़कर कर्इ लोगों को रोजगार भी मिला है और इसका श्रेय धीरज सिंह राणा को जाता है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Thu, 13 Sep 2018 09:03 PM (IST)
नई टिहरी, [मधुसूदन बहुगुणा]: बंजर खेतों को गुलाब की खुशबू से महकाकर जाखणीधार प्रखंड के ग्राम मिंगवाली दपोली निवासी धीरज सिंह राणा ने साबित कर दिखाया कि सफलता तो हमारे इरादों में छिपी हुई है। आज धीरज गांव में ही एक हेक्टेयर भूमि पर गुलाब की खेती कर खुद गुलाब जल तैयार कर रहे हैं और इससे एक सीजन में लगभग दो लाख रुपये तक कमा लेते हैं। इतना ही नहीं, धीरज लगभग 50 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
वन विभाग से सीनियर फॉरेस्टर के पद से सेवानिवृत्त टिहरी जिले के 66 वर्षीय धीरज सिंह राणा ने जब देखा कि लोग खेती से विमुख होकर गांव को ही अलविदा कह रहे हैं तो वे बेहद आहत हुए। तब उनके मन में विचार आया कि क्यों ने अपनी खाली पड़ी जमीन का सदुपयोग कर लोगों को फिर खेती के प्रति प्रेरित करें। लेकिन, सेवा में रहते ऐसा संभव नहीं था। लिहाजा 2008 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अपने बंजर खेतों को संवारने में जुट गए।एक नई सोच के तहत उन्होंने खेतों में गुलाब उगाना शुरू किया और आज उनकी एक हेक्टेयर भूमि पर गुलाब महक रहा है। उन्होंने अपने घर पर ही गुलाब जल तैयार करने के लिए प्लांट भी लगा रखा है। इसमें नौ साल वे गुलाब जल तैयार कर रहे हैं।
धीरज सिंह बताते हैं कि उनका तैयार किया गुलाब जल देहरादून, ऋषिकेश आदि शहरों में खूब बिकता है। इसमें उद्यान विभाग भी उन्हें बराबर सहयोग मिल रहा है। कहते हैं, 'हमारे युवा शहरों में प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं। अगर पहाड़ों में परंपरागत खेती की जगह नकदी फसलों को बढ़ावा दिया जाए तो पलायन पर निश्चित रूप में अंकुश लगेगा।'20 काश्तकार सीजन में कमा रहे 60 हजार
धीरज राणा से प्रेरणा लेकर सेमा गांव में सात, हिंडोलाखाल के देवका गांव में पांच, अंजनीसैंण के डांडा में पांच व खोलगढ़ में तीन काश्तकारों ने तीन साल पूर्व गुलाब की खेती शुरू की। इस गुलाब को वह स्थानीय बाजार के अलावा देहरादून भेजते हैं और सीजन में 60-60 हजार रुपये से अधिक की कमाई कर लेते हैं।ऑस्ट्रेलिया तक जा रहा गुलाब जल
हिंडोलाखाल के देवका गांव निवासी महावीर रौथाण तीन साल से गुलाब जल भी तैयार कर रहे हैं। शुरू में उन्होंने इसे देहरादून में बेचा, लेकिन अब आस्ट्रेलिया भी भेजते है। इससे उन्हें सीजन में करीब 80 हजार रुपये की कमाई हो जाती है। प्रतापनगर के खोलगढ़ निवासी पृथ्वीपाल पंवार सीजन में करीब एक लाख रूपये कमा लेते हैं। वह गुलाब जल उच्च पादप शिखर सोसाइटी श्रीनगर व वानिकी विवि रानीचौरी को बेचते है। कोलन गांव निवासी रमेश मिस्त्री बताते हैं कि राणा जी ने ही हमें समझाया कि गुलाब की खेती कैसे की जाती है और इसके क्या फायदे हैं। उनसे प्रेरणा लेकर मेरे जैसे कई ग्रामीण गुलाब की खेती करने लगे हैं। वहीं, केलन निवासी सरोजनी देवी कहती हैं कि राणा जी ने गुलाब उगाकर खेती को एक नई पहचान दी है। उनसे मैं भी गुलाब की खेती करने के तौर-तरीके सीख रही हूं। कई लोग आज उनसे प्रेरणा ले रहे हैं।
यह भी पढ़ें: इस जन्नत में भी बिखरी है फूलों की रंगत, खिलते हैं इतनी प्रजाति के फूल यह भी पढ़ें: अमेरिका और फ्रांस के बाद उत्तराखंड में भी हो रही भांग की खेती
यह भी पढ़ें: इस वृक्ष पर बैठ बांसुरी बजाकर गोपियों को रिझाते थे कान्हा, अब हो रहा संरक्षण
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।