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दो बार के एवरेस्ट विजेता सूबेदार दिनेश रावत का निधन

दो बार के एवरेस्ट विजेता रहे सेना के सेवानिवृत्त सूबेदार दिनेश सिंह रावत का निधन हो गया। वह कुछ समय से बीमार थे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 17 Dec 2017 08:44 PM (IST)
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दो बार के एवरेस्ट विजेता सूबेदार दिनेश रावत का निधन
चंबा (टिहरी), [जेएनएन]: दो बार के एवरेस्ट विजेता रहे सेना के सेवानिवृत्त सूबेदार दिनेश सिंह रावत का आकस्मिक निधन हो गया। 50 वर्षीय रावत पिछले कुछ समय से बीमार थे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। शनिवार को हरिद्वार के कनखल स्थित घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। रावत अपने पीछे मां पद्मावती देवी, पत्नी भुवनेश्वरी देवी, पुत्र शिवराज व अभिराज, पुत्री हिमानी और शिवानी सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके निधन पर जनप्रतिनिधियों और क्षेत्र के लोगों ने गहरी संवेदना व्यक्त की है।

टिहरी जिले के प्रखंड चंबा स्थित तुंगोली गांव निवासी एवरेस्ट विजेता दिनेश रावत का शुक्रवार रात दिल्ली के एक निजी अस्तपाल में निधन हुआ। करीब एक माह पूर्व गांव के पास रास्ते में फिसलने से उनकी गर्दन पर चोट लगी थी। इसके बाद कुछ दिन उन्होंने देहरादून में इलाज कराया और फिर दिल्ली अस्पताल में भर्ती हो गए, जहां शुक्रवार रात उनका निधन हो गया। दिनेश रावत वर्ष 1997 में गढ़वाल राइफल की स्काउट बटालियन में सिपाही भर्ती हुए। 

रावत की जीवटता एवं स्फूर्ति को देखते हुए एवरेस्ट अभियान के लिए उनका चयन हुआ। जून 2003 में वो भारत-नेपाल सेना के संयुक्त एवरेस्ट अभियान का हिस्सा बने और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह किया। मई 2009 में निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) के बैनर तले एक बार फिर उन्होंने एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। इसके अलावा वर्ष 2005 में उन्होंने त्रिशूल पर्वत और वर्ष 2008 में संतोपंथ की चोटियों को भी फतह किया। 

इस उपलब्धि के लिए अक्टूबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी ङ्क्षसह पाटिल ने उन्हें सूबेदार के रूप में पदोन्नति देकर सम्मानित किया। वर्ष 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया गया। इसके अलावा वर्ष 2009 और वर्ष 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया गया। 

विडंबना देखिए कि अपनी कर्मठता एवं जीवटता के दम पर जिला एवं देश का नाम रोशन करने वाले इस एवरेस्ट विजेता की जीवन के अंतिम दिनों में किसी ने सुध लेना भी जरूरी नहीं समझा। बीमारी के दौरान एक माह कोई जनप्रतिनिधि तक उनका हालचाल पूछने नहीं पहुंचा।

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