Khatima का 15 वर्षीय नीलांजन जीरो बजट पर पहुंचा Adi Kailash, जज्बा देख मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी हो गए फैन
Adi Kailash Yatra 2024 पहाड़ में जीवन की कठिनाइयों को समझने के लिए वह घर से जिद करके बिना संसाधनों के यात्रा पर निकला था। पिता सात जून को मेडिकल कैंप लगाने आदि कैलास जा रहे थे तो बेटा भी साथ चलने की जिद करने लगा। उसने पिता से अकेले ही यात्रा पर निकलने की मंशा जताई। जिस पर नीलांजन बोला कि मैं बिना कोई पैसे लिए निकलूंगा।
राजेंद्र सिंह मिताड़ी, जागरण खटीमा । Adi Kailash Yatra 2024: नगरा तराई के 15 वर्षीय नीलांजन पोखरिया ने जीरो बजट पर आदि कैलास का सफर पूरा कर लिया। पहाड़ में जीवन की कठिनाइयों को समझने के लिए वह घर से जिद करके बिना संसाधनों के यात्रा पर निकला था। जहां सीएम धामी से उसकी भेंट हुई, जिन्होंने नीलांजन के साहस और जज्बे की काफी सराहना की।
नीलांजन नगरा तराई के समाजसेवी व विहिप नेता रंदीप पोखरिया का बेटा है। पिता सात जून को मेडिकल कैंप लगाने आदि कैलास जा रहे थे तो बेटा भी साथ चलने की जिद करने लगा। पिता ने उम्र का तकाजा देते हुए बड़े-बुजुर्गों की बजाय अपने हम उम्रों का ग्रुप बनाने की सलाह दी। नीलांजन ने हम उम्र दोस्तों से इस यात्रा पर चलने के लिए उनका मन टटोला तो सबने माता-पिता के इन्कार करने का हवाला दे दिया।
दोस्तों ने तो इन्कार कर दिया
आखिर इतनी बाली उम्र के बच्चों को इतनी दुरुह यात्रा पर भेजने का न तो कलेजा हो सकता है और न ही साहस। दोस्तों ने तो इन्कार कर दिया, लेकिन नीलांजन का मन तो आदि कैलास जाकर उसकी दिव्यता और भव्यता को छककर अपने अंदर भर लेने को बेचैन था। इसके साथ ही उसके मन में कुछ और गहरा भी चल रहा था। उसने पिता से अकेले ही यात्रा पर निकलने की मंशा जताई।रंदीप पोखरिया ने नीलांजन के यात्रा के गहन उद्देश्य को समझकर अनुमति दे दी। जिस पर नीलांजन बोला कि मैं बिना कोई पैसे लिए निकलूंगा। आपके किसी परिचित या रिश्तेदार के यहां न रुकूंगा और न भोजन करूंगा। तीसरी बात जो उसने कही, वह अद्भुत ही थी।
कहने लगा, मैं पहाड़ के शहरों को देखने नहीं, वहां के गांवों को समझना चाहता हूं। वहां के जीवन की कठिनाइयों को देखना चाहता हूं। पिता और शेष स्वजन की अनुमति से नीलांजन 14 जून को अपने फक्कड़ी अंदाज में घर से निकल पड़ा। कहीं पैदल तो कहीं किसी की बाइक, ट्रैक्टर, ट्रक और कार पर सवार होकर वह अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता रहा।
यात्रा के दौरान पहाड़ के कठिन जीवन को लेकर उमड़े सवाल
पहाड़ को, पहाड़ के गांवों की इन पीड़ाओं को समझते और विचारते हुए कि जो पहाड़ इतनी बड़ी नदी दे रहे हैं, वे प्यासे कैसे? लोग इतनी दूर से हास्पिटल कहां जाते होंगे? बच्चों के स्कूल इतनी दूर हैं तो ये कैसे अच्छी शिक्षा ले पाते होंगे? गांवों में महिलाएं कैसे उठा पाती हैं इतने भारी-भरकम बोझ?
नंगे होते पहाड़ों को देखकर इस चिंता में भरा हुआ कि ये पेड़ यूं ही कटते रहे तो कैसे मिल पाएगी सिर पर छाया, सांसों को साफ-सुथरी हवा? इस पूरी अवधि में मन में उमड़ते-घुमड़ते इन्हीं सवालों को लेकर और कभी टेंट, कभी मंदिर तो कभी किसी के घर में रात्रि विश्राम करता नीलांजन आखिर आदि कैलास पहुंच ही गया।
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