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उत्तराखंड में तोड़े गए लोगों के आशियाने, मलबा उठाने के लिए भी एक दिन का ही समय, बेबस आंखों में जिंदगी की जद्दोजहद

उत्तराखंड के रुद्रपुर जिले के भगवानपुर कुलड़िया इलाके में अतिक्रमण के खिलाफ प्रशासन ने कार्रवाई की। प्रभावित लोग मलबा उठाने को पूरे दिन भर लगे रहे। प्रशासन की ओर से उन्हें मलबा हटाने के लिए केवल रविवार के दिन का समय दिया गया है। मलबे में तब्दील हो चुके अपने घरों के देखकर लोगों की आंखों में बेबसी दिखाई दी।

By gyanendra shukla Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 15 Jul 2024 11:21 AM (IST)
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रुद्रपुर के ग्राम भगवानपुर में अतिक्रमण हटाने के बाद धूप से बचने के लिए तिरपाल के नीचे बैठे लोग। जागरण

जागरण संवाददाता, रुद्रपुर। भगवानपुर कुलड़िया में अतिक्रमण हटाए जाने के बाद प्रभावित परिवार अपने घरों का मलबा उठाने में पूरे दिन लगे रहे। प्रशासन ने उनको मात्र रविवार तक का समय दिया है। सोमवार की सुबह से प्रशासन अपने लोडर लगाकर मलबा हटाने का अभियान शुरू करेगा।

मलबे में तब्दील हो चुके अपने घरों को देखकर लोगों की आंखों में बेबसी दिखाई दी। रह-रहकर आंसू कभी पोछते हैं तो कभी अपने मलबे में अपनी यादों को संजो रहे हैं। गुरुवार को हाईकोर्ट के आदेश के बाद जब लोडर भगवानपुर कुलड़िया में गरजा और आंशिक तौर पर घरों को धवस्त किया गया तो बवाल हो गया।

पुलिस के सामने प्रभावितों की तरफ से विधायक शिव अरोरा के कड़े तेवर ने पुलिस प्रशासन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। एक बार लगा था कि शायद इन 46 परिवारों को कुछ दिन की मोहलत मिले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक दिन का बीच में समय दिया गया कि वह सामान अपना हटा लें और शनिवार की सुबह अतिक्रमण की कार्रवाई भारी पुलिस बल के बीच शुरू हुई। दोपहर दो बजे तक अतिक्रमण ध्वस्त हो गया।

रविवार के लिए इन सभी को अपना मलबा हटाने का समय दिया गया था, पूरे दिन प्रभावित होने वाले परिवार के लोग अपना मलबा हटाते रहे।

अतिक्रमण अभियान में घर ध्वस्त होने के बाद मलबे के पास बैठी निर्मला देवी, रमावती सहित रामाशय राय ने कहा कि अब सब कुछ खत्म हो गया है। नेताओं की तरफ से भी को आश्वासन नहीं मिला है। कहीं से किसी तरह की सहायता का भरोसा नहीं मिला है। तीन दिन की कार्रवाई में मलबा उठाने के लिए भी एक दिन का समय दिया गया है। कैसे इतना मलबा उठाकर ले जाएं। एक-एक ईंट जोड़कर घर बनाया था, पता नहीं किस जन्म की सजा मिली।

यह कहने पर कि प्रशासन ने नदी के पास जमीन का पट्टा दिया तो है वहां जाएंगे ना?

इस पर रामाशय राय ने कहा कि वहां पर बाढ़ का खतरा बना रहता है। वहां पर भी जीवन व परिवार सुरक्षित नहीं है। कहीं तो ठिकाना बनाना पड़ेगा, फिलहाल तो वहां जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। साफ कहा कि आगे कोई भी चुनाव आएगा तो वोट नहीं देंगे। देख लिया कि नेता कब साथ देते हैं। इससे बड़ी विपत्ति अब क्या होगी। प्रभावित हुए 46 परिवारों के लोग ई-रिकशा, ट्रैक्टर से बचा-हुआ सामान व मलबा ले जाते रहे हैं। खबर सुनी तो रिश्तेदार भी दौड़े चले आए और साथ देने का वादा किया।

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