Mother's Day: उत्तराखंड की इस डॉक्टर मम्मी के सब मुरीद, रिटायरमेंट के बाद भी दूसरे राज्यों से पहुंच रहे मरीज
Mothers Day 2023 77 वर्ष की आयु में भी बाजपुर के अधिकांश दूसरी-तीसरी पीढ़ी के बच्चों का जन्म डा. परमजीत कौर के हाथों हुआ है। स्वास्थ्य विभाग में आज भी उनका नाम सम्मान से लिया जाता है।
By jaypal singhEdited By: Nirmala BohraUpdated: Sun, 14 May 2023 10:14 AM (IST)
जयपाल सिंह यादव, बाजपुर: Mother's Day Special: उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग में एक नाम डा. परमजीत कौर का आज भी सम्मान से लिया जाता है। 77 वर्ष की आयु में भी बाजपुर के अधिकांश दूसरी-तीसरी पीढ़ी के बच्चों का जन्म डा.पी कौर के हाथों हुआ है। उनके व्यवहार से लोग अपनी मां के साथ उन्हें भी मम्मी के नाम से ही पुकारते हैं। स्टाफ का तो आलम यह है कि कोई उन्हें डा.साहब कहता ही नहीं, सभी लोग मम्मी के नाम से ही उन्हें पुकारते हैं। आज भी उत्तर-प्रदेश व उत्तराखंड के कई जनपदों से महिलाएं उपचार के लिए आती हैं।
आजादी से ठीक एक वर्ष बाद जन्मी डा.कौर ने शिक्षा पूरी करने के बाद 1971 में बतौर प्रसूति एवं महिला रोग विशेषज्ञ के रूप में सरकारी नौकरी रुद्रपुर से शुरू की और वर्ष, 1972 में बाजपुर स्वास्थ्य केंद्र में कार्यभार ग्रहण किया। उस समय बाजपुर अस्पताल में सुविधाओं का अभाव था। स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सरकारी अस्पताल को ही लोग पी.कौर का अस्पताल कहते थे। समय के साथ संघर्ष किया गया और गांव में दाई के माध्यम से होने वाले बच्चों में बढ़ती मृत्यु दर को कम करने के लिए गांव-गांव प्रचार किया गया।
'डॉक्टर मम्मी' के चलते जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में आई कमी
लोगों को अस्पताल में प्रसव कराने और स्वयं बड़ी संख्या में प्रसव करने के चलते हर कोई अस्पताल की ओर रुख करने लगा था, जिसके चलते जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में कमी आई। इतना ही नहीं जनजाति समाज हो या अन्य समाज की महिलाएं वह बड़ी संख्या में निश्शुल्क उपचार के लिए अस्पताल आती थीं। इतना ही नहीं लोगों को उस समय चल रहे झाड़-फूंक से भी सावधान किया गया।लगभग एक वर्ष में ही उन्होंने क्षेत्र की तस्वीर बदल दी थी, लेकिन उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए वर्ष, 1973 में रामनगर में नया अस्पताल शुरू हुआ तो उन्हें महिला चिकित्सक के रूप में वहां भेजा गया, लेकिन बाजपुर में उनकी बड़ी मांग को देखते हुए शासन ने वर्ष, 1974 में पुन: बाजपुर भेज दिया। इसी के साथ मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अस्पताल का उच्चीकरण वर्ष, 1978 में करते हुए उन्हें यहां का एमएस बना दिया गया।
1999 में हो गईं सेनानिवृत्त
1991 में उनका प्रतापगढ़ इलाहाबाद ट्रांसफर हुआ तो जनता ने पं.नारायण दत्त तिवारी से लेकर पूरे क्षेत्र में मुहिम चला दी और शासन को पहले की तरह एक वर्ष में ही उन्हें वापस बाजपुर भेजना पड़ा। उस समय भी नारा लगा मम्मी बिन सब सून..., अस्पताल में मम्मी नहीं, यह गल चंगी नहीं... अर्थात सबको मां जैसा प्यार देने वाली मम्मी अस्पताल में नहीं हैं तो यहां आना ही अच्छा नहीं लगता है। वर्ष, 1994 में उन्हें प्रमोशन मिला वह सीएमओ रामपुर बनी और वर्ष, 1999 में सेवानिवृत्त हो गईं।आज भी करती हैं जनता की सेवा
वर्तमान में वह अपने परमधर्म नर्सिंग होम के माध्यम से जनता की सेवा कर रही हैं। 77 वर्ष की आयु में लोग उनका आदर एक मां की तरह करते हैं। स्टाफ हो या उनके पुराने मिलने वाले चाहें वह कहीं भी कितने बड़े पद पर हो बाजपुर में आने पर मम्मी जी से मिलने अवश्य आते हैं। आज भी उनके हाथों जन्मे बच्चे कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि में कार्यरत हैं, लेकिन मम्मी जी आज भी क्षेत्र के लिए एक वरदान हैं।
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