Mothers Day 2024 79 वर्ष की आयु में भी बाजपुर की अधिकांश दूसरी तीसरी चौथी पीढ़ी के बच्चों का जन्म डा. पी कौर के हाथों हुआ है। आज भी उत्तर-प्रदेश व उत्तराखंड के अनेक जनपदों से महिलाएं उपचार के लिए डा. कौर के पास आती हैं। 1971 में बतौर प्रसूति एवं महिला रोग विशेषज्ञ के रूप में सरकारी नौकरी रुद्रपुर से शुरू की थी।
जागरण
संवाद सहयोगी जागरण, बाजपुर : Mother's Day 2024: स्वास्थ्य विभाग में डा. परमजीत कौर का नाम सम्मान से लिया जाता है। 79 वर्ष की आयु में भी बाजपुर की अधिकांश दूसरी, तीसरी, चौथी पीढ़ी के बच्चों का जन्म डा. पी कौर के हाथों हुआ है। उनके व्यवहार से लोग अपनी मां के साथ उन्हें भी मम्मी के नाम से ही पुकारते हैं। यहां तक कि स्टाफ भी उन्हें डा. साहब नहीं वरन मम्मी के नाम से ही पुकारता है।
आज भी उत्तर-प्रदेश व उत्तराखंड के अनेक जनपदों से महिलाएं उपचार के लिए डा. कौर के पास आती हैं। डा. हरिओम पांडेय की तरह डा. पी कौर का नाम भी पूरे क्षेत्र में सम्मान का प्रतीक है। स्वास्थ्य विभाग से एसीएमओ के पद से रिटायर होने के बाद आज वह अपना क्लीनिक चला रही हैं। सेवा उसी तरह जारी है।
आजादी से ठीक एक वर्ष बाद जन्मीं डा. पी कौर ने शिक्षा पूरी करने के बाद 1971 में बतौर प्रसूति एवं महिला रोग विशेषज्ञ के रूप में सरकारी नौकरी रुद्रपुर से शुरू की और 1972 में बाजपुर स्वास्थ्य केंद्र में कार्यभार ग्रहण किया। उस समय बाजपुर के अस्पताल में सुविधाओं का बड़ा अभाव था।
स्वास्थ्य सेवा के नाम पर सरकारी अस्पताल को ही लोग पी कौर का अस्पताल कहते थे। समय के साथ संघर्ष किया गया और गांव में दाई के माध्यम से होने वाले बच्चों में बढ़ती मृत्यु दर को कम करने के लिए गांव-गांव प्रचार किया गया। लोगों को अस्पताल में प्रसव कराने और स्वयं बड़ी संख्या में प्रसव करने के चलते हर कोई अस्पताल की ओर रुख करने लगा था। जिससे जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में कमी आई।
इतना ही नहीं, जनजाति समेत अन्य समाज की महिलाएं बड़ी संख्या में निश्शुल्क उपचार के लिए अस्पताल आती थीं। लोगों को उस समय चल रहे झाड़-फूंक से भी सावधान किया गया। लगभग एक वर्ष में ही उन्होंने क्षेत्र की तस्वीर बदल दी थी। उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए वर्ष 1973 में रामनगर में नया अस्पताल शुरू हुआ तो उन्हें महिला चिकित्सक के रूप में वहां भेजा गया।
बाजपुर में उनकी बढ़ती मांग को देखते हुए शासन ने वर्ष 1974 में पुन: बाजपुर भेज दिया गया। इसी के साथ मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अस्पताल का उच्चीकरण वर्ष 1978 में करते हुए उन्हें यहां का एमएस बना दिया गया।
वर्ष 1991 में उनका प्रतापगढ़ इलाहबाद ट्रांसफर हुआ तो जनता ने पं. नारायण दत्त तिवारी से लेकर पूरे क्षेत्र में मुहिम चला दी और शासन को पहले की तरह एक वर्ष में ही उन्हें वापस बाजपुर भेजना पड़ा। उस समय भी नारा लगा मम्मी बिन सब सून..., अस्पताल में मम्मी नहीं, यह गल चंगी नहीं... अर्थात सबको मां जैसा प्यार देने वाली मम्मी अस्पताल में नहीं हैं तो यहां आना ही अच्छा नहीं लगता है।
वर्ष 1994 में उन्हें प्रमोशन मिला, वह सीएमओ रामपुर बनीं और वर्ष 1999 में सेवानिवृत्त हो गईं। वर्तमान में वह अपने परमधर्म नर्सिंग होम के माध्यम से जनता की सेवा कर रही हैं। 79 वर्ष की आयु में लोग उनका आदर एक मां की तरह करते हैं।
स्टाफ हो या उनके पुराने मिलने वाले, चाहे कहीं भी कितने बड़े पद पर हों, बाजपुर में आने पर मम्मी से मिलने अवश्य आते हैं। आज भी उनके हाथों जन्मे बच्चे कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इटली, जापान आदि में कार्यरत हैं। लोग कहते हैं कि मम्मी जी आज भी क्षेत्र के लिए एक वरदान हैं।
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