पंतनगर की उत्तरा बनी राज्य की पहली कुक्कुट नस्ल, जानिए इसकी खासियत
एनबीएजीआर द्वारा उत्तरा फाउल को देश की 19वीं एवं उत्तराखंड की पहली पंजीकृत कुक्कुट नस्ल के रूप में पहचान दी गई है। वैज्ञानिक इस नस्ल पर पिछले 10 वर्षों से शोधरत थे।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 05 Oct 2018 08:21 AM (IST)
पंतनगर, उधमसिंह नगर [सुरेंद्र कुमार वर्मा]: जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय द्वारा शोधरत कुक्कुट नस्ल 'उत्तरा फाउल' अब 'उत्तरा' नस्ल के रूप में जानी जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत संचालित नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्स (एनबीएजीआर) की बैठक में यह फैसला लिया गया। पशु विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. जीके सिंह के अनुसार कि एनबीएजीआर द्वारा 'उत्तरा' को देश की 19वीं एवं उत्तराखंड की पहली पंजीकृत कुक्कुट नस्ल के रूप में पहचान दी गई है। पशुधन उत्पादन प्रबंध विभाग के वैज्ञानिक डॉ. शिव कुमार, डॉ. आरके शर्मा, डॉ. डी. कुमार व डॉ. अनिल यादव इस नस्ल पर पिछले 10 वर्षों से शोधरत थे। इन वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से विशेष प्रकार के स्थानीय कुक्कुटों का चयन कर इसे बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लिए विकसित किया है।
शोध टीम के टीम लीडर डॉ. शिव कुमार ने बताया कि उत्तरा फाउल गहरे काले रंग का पक्षी है, जिसके पैरों पर भी पंख होते हैं, तथा सिर पर चोटीनुमा पंखों का गुच्छा (क्राउन) होता है। कुछ स्थानीय क्षेत्रों में इसे डोटियाल/बुलबुल/ताज मुर्गी के नाम से भी जाना जाता है। डोटियाल शब्द नेपाल के डोटी नामक स्थान की भाषा से मिला है। उत्तरा फाउल कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों तथा पहाड़ी व ठंडे क्षेत्रों में रहने के अनुकूल है।
इसमें अंडों से चूजे निकालने तथा छोटे चूजों की देख-भाल करने के आनुवांशिक लक्षण विद्यमान हैं। शैक्षणिक कुक्कुट फार्म के सह निदेशक डॉ. अनिल यादव ने बताया कि वर्तमान में फार्म पर दो हजार से अधिक 'उत्तरा' नस्ल के पक्षी पालित हैं, जिनकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
फार्म द्वारा इस नस्ल को बढ़ावा देने के लिए लगभग दस हजार से अधिक चूजों व निषेचित अंडों की आपूर्ति प्रदेश के पिथौरागढ़, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली आदि जनपदों में पशु पालन विभाग, एनजीओ एवं किसानों को की गई हैं।
फार्म के सहायक निदेशक (स्वास्थ्य) डॉ. राजीव रंजन कुमार ने बताया कि इस प्रजाति के कुक्कुटों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अन्य नस्लों की तुलना में अधिक होती है, तथा यह नस्ल संक्रामक रोगों के लिए भी ज्यादा संवेदनशीन नहीं होती है।
पर्वतीय क्षेत्र की प्रजाति होने के कारण इसके स्वास्थ्य प्रबंधन पर बहुत कम खर्च आता है, जिससे इसे बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग के अन्तर्गत बड़ी आसानी से पाला जा सकता है। यह आसानी से उड़ कर पेड़ों और मकान की छतों पर बैठ जाता है, जिस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में यह शिकारी जानवरों से अपने को बचाने में सक्षम होता है।
वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर विवि के कुलपति राजीव रौतेला, अधिष्ठाता डॉ. जीके सिंह, विभाग प्रमुख डॉ. डीवी सिंह सहित अधिष्ठाताओं, निदेशकों एवं अन्य अधिकारियों ने टीम को बधाई दी है।उत्पादन लक्षण
एक वयस्क मादा व नर का शारीरिक भार क्रमशः लगभग 1128.70 एवं 1295.70 ग्राम होता है, तथा उत्तरा फाउल के द्वारा अंडों का उत्पादन 23 सप्ताह में शुरू हो जाता है। इसका वार्षिक उत्पादन पिछले 8 वर्षों में 137 से बढ़कर 170 अण्डों तक हो गया है। अंडे का औसतन वजन 52 ग्राम तथा रंग हल्का भूरा होने के कारण इसकी स्थानीय बाजार में काफी मांग रहती है। उत्तरा फाउल पक्षी का मांस अन्य व्यवसायिक पक्षियों की अपेक्षा में अधिक मूल्यवान है, क्योंकि उनके मांस और रक्त दोनों में कोलेस्ट्रॉल कम होता है जो हृदय रोगियों के लिए उपयोगी है। उत्तरा फाउल में ड्रेसिंग प्रतिशत लगभग 77 प्रतिशत होता है। इसका रंग काला का होने के कारण इन पक्षियों की त्योहारों में काफी मांग रहती है तथा अन्य रंग के पक्षियों की तुलना में इनकी कीमत भी अधिक रहती है।यह भी पढ़ें: रसीले स्वाद के बावजूद हर्षिल घाटी का सेब पहचान को मोहताज
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