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रोचक: कड़कती ठंड में भी हिमालय पर 4600 मीटर ऊंचे तपोवन में तपस्या कर रहे 3 तपस्वी, बढ़ रही सन्यासियों की संख्या

समुद्र तल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तपोवन में इस बार तीन साधु और 3800 मीटर की ऊंचाई पर एक साधु शीत साधना में निमग्न हैं। यह प्राण साधना निर्जन उच्च हिमालयी इलाके में शून्य तापमान के नीचे पूरे शीतकाल जारी रहेगी।

By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavUpdated: Wed, 07 Dec 2022 04:47 PM (IST)
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तपस्वी साधु खून जमा देने वाली ठंड के बीच ध्यानमग्न रहते हैं।
उत्तरकाशी [शैलेंद्र गोदियाल]: आपने धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में यह जरूर पढ़ा होगा कि तपस्वी लोग तप करने के लिए हिमालय की गोद में चले जाते थे और कई वर्षों तक ध्यानमग्न रहते थे।

वे अपनी तपस्या में इतने लीन होते थे कि हिमालय पर पड़ने वाली कड़कड़कती ठंड भी उनपर असर नहीं कर पाती थी। लेकिन यह कहानियां न सिर्फ धार्मिक पुस्तकों में ही नहीं, बल्कि वर्तमान में भी जीवंत हैं।

आज भी कई साधु-सन्यासी हिमालय पर अपनी तपस्या में लीन हैं। आश्चर्य की बात यह है कि सर्दियों के मौसम में जहां हम बाहर निकलते ही कांपने लगते हैं, वहीं ये तपस्वी साधु खून जमा देने वाली ठंड के बीच ध्यानमग्न रहते हैं।

जी हां, समुद्र तल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तपोवन में इस बार तीन साधु और 3800 मीटर की ऊंचाई पर एक साधु शीत साधना में निमग्न हैं। यह प्राण साधना निर्जन उच्च हिमालयी इलाके में शून्य तापमान के नीचे पूरे शीतकाल जारी रहेगी। 

यहां करीब एक दशक बाद साधनारत सन्यासियों की संख्या तपोवन में दो से बढ़कर तीन हुई है, जबकि पूरी गंगोत्री घाटी की कंदराओं में साधना करने वाले साधु सन्यासियों की संख्या 52 पहुंची है। पिछले दस वर्षों के दौरान यह संख्या 40 के करीब रहती थी।

साधु सन्यासियों के किस्से करते हैं रोमांचित

आस्था आध्यात्म और सनातन संस्कृति की प्रतीक मां गंगा के उद्गम क्षेत्र गंगोत्री घाटी हमेशा ही साधना का केंद्र रही है। साधना और योग अध्यात्म की अविरल गंगा यहीं से बहती है। गंगोत्री हिमालय की गुफा एवं कंदराओं में वर्षों तक कठोर साधना करने वाले साधु सन्यासियों से जुड़े किस्से और साक्ष्य आज भी रोमांचित करते हैं। 

साधना के लिए तपोवन सबसे विख्यात स्थान

विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम से 24 किलोमीटर दूर तपोवन में उच्च हिमालयी क्षेत्र में आता है। गंगोत्री से तपोवन जाने के लिए गंगा के उद्गम स्थल गोमुख से होकर जाना होता है। गोमुख से तपोवन की दूरी पांच किलोमीटर है। तपोवन में 1960 से लेकर 1990 के बीच तक काफी संख्या में साधकों ने साधना की है। 

उनकी तपोवन क्षेत्र में पत्थरों की आड़ में छोटी-छोटी कुटियां थी। जिनके खंडहर आज भी मौजूद हैं। 1990 के बाद साधकों की संख्या सीमित होने लगी। वर्ष 2018-19 और 2020-21 में तपोवन भोजबासा और चिड़बासा में एक भी साधु साधना के लिए नहीं पहुंचा।

तपोवन में तीन साधु कर रहे हैं साधना

इस बार तपोवन में नागरदास, पूर्णीय चैतन्य और तीर्थ स्वरूप साधना कर रहे हैं। तीनों साधुओं के तपोवन में पत्थरों की आढ़ लेकर अलग-अलग कुटिया बनाई हुई हैं। तीर्थ स्वरूप करीब दस वर्ष बाद तपोवन में साधना करने के लिए पहुंचे हैं। 

पूर्णिया चैतन्य वर्ष 2008 से लेकर 2017 तक लगातार तपोवन में साधना की है। नागरदास भी वर्ष 2007 से वर्ष 2018 तक साधना में लीन रहे, जबकि एक गंगोत्री से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भोजबासा के लालबाबा आश्रम में उमाशंकर साधना कर रहे हैं। 

गंगोत्री से दो किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 3350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कनखू के पास राम मंदिर में रामकृष्ण दास साधना कर रहा है। रामकृष्ण दस पिछले 20 वर्षों से इसी मंदिर में साधनारत हैं।

इन्होंने बताया…

इस बार शीतकाल में 52 साधु सन्यासी गंगोत्री घाटी में साधना कर रहे हैं। तपोवन में तीन, भोजवासा में एक, कनखू में एक और गंगोत्री में 47 साधु सन्यासी हैं। पुलिस ने सभी का सत्यापन किया है।

-अर्पण यदुवंशी, पुलिस अधीक्षक उत्तरकाशी

बर्फ पिघलाकर पानी का इंतजाम

यहां साधना के लिए आलीशान आश्रम नहीं बल्कि गुफा और कंद्राएं हैं। शीतकाल में यहां अधिकतम तापमान भी माइनस डिग्री सेल्सियस में रहता है। पानी का इंतजाम भी बर्फ को पिघलाकर करना होता है। शीतकाल में जीवन जीने के लिए इनके पास जरूरी सामान उपलब्ध है।

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