गर्तांगली में रोमांच के सफर को हो जाइए तैयार, बस जान लें कितना चुकाना होगा शुल्क
Gartang Gali र्तांगली के दीदार को गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन ने शुल्क निर्धारित कर दिया है। पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार ने बताया कि पार्क क्षेत्र में प्रवेश को जो शुल्क निर्धारित है वही गर्तांगली के लिए भी रखा गया है।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Fri, 20 Aug 2021 01:21 PM (IST)
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। Gartang Gali रोमांच के सफर के लिए तैयार हो जाइए। चीन सीमा पर स्थित गर्तांगली (गर्तांग गली) पर्यटकों के लिए खोल दी गई है। साथ ही इसके दीदार को गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन ने शुल्क निर्धारित कर दिया है। पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार ने बताया कि पार्क क्षेत्र में प्रवेश को जो शुल्क निर्धारित है, वही गर्तांगली के लिए भी रखा गया है। यानी भारतीय पर्यटकों को 150 रुपये और विदेशी पर्यटकों को 600 रुपये के हिसाब से शुल्क देना होगा।
पंवार ने बताया कि गर्तांगली (Gartang Gali) जाने के लिए उत्तरकाशी कोटबंगला स्थित पार्क के कार्यालय और भैरव घाटी बैरियर पर आफलाइन अनुमति मिलेगी। इसके अलावा आनलाइन अनुमति देने के लिए भी पार्क प्रशासन की ओर से तैयारी की जा रही है। उत्तरकाशी जिले की जाड़ गंगा घाटी में एक खड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए लकड़ी के इस सीढ़ीनुमा रास्ते (गर्तांगली) को बुधवार से पर्यटकों के लिए खोला जा चुका है।
(गर्तांगली की सैर के दौरान फोटो खिचवाते स्थानीय पयर्टक। साभार अजय पुरी)पर्यटक बोले, आश्चर्यजनक है गर्तांगली
गर्तांगली की सैर कर लौटे स्थानीय पर्यटक बेहद खुश है। पुनरुद्धार के बाद पहली बार गर्तांगली पहुंचे पर्यटकों ने सीढ़ियों पर गुजरने से पहले विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी के महंत अजय पुरी के सानिध्य में गंगाजल चढ़ाकर उनकी पूजा-अर्चना की। पर्यटकों का कहना था कि गर्तांगली एक आश्चर्यजनक रास्ता है। महंत अजय पुरी ने कहा कि वर्ष 2011-12 के दौरान वे होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे। तब उन्होंने गर्तांगली को पर्यटकों के लिए खुलवाने का संकल्प लिया था।
उन्होंने कहा, गर्तांगली से गुजरते हुए वे महसूस कर रहे थे कि 1962 से पूर्व इस मार्ग से कुछ इसी तरह से व्यापारी और नेलांग-जादूंग के लोग आते-जाते रहे होंगे। यही एहसास हर पर्यटक करे तो वह 1962 से पहले के दौर में चला जाता है। कहा कि गर्तांगली न सिर्फ भारत-तिब्बत के बीच व्यापार का रास्ता था, बल्कि नेलांग और जादूंग गांव के ग्रामीणों की आवाजाही भी यहीं से होती थी। यह रास्ता बेहद कारीगरी से तैयार किया गया था।
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