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बीएडीपी ठंडे बस्ते में: आठ गांवों में बस नाम के वास्ते हुआ काम, खर्चे गए करोड़ों पर नहीं कोई हिसाब-किताब

करीब तीन दशक तक सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामीणों के आर्थिक सामाजिक विकास के साथ सीमावर्ती क्षेत्र में अवसंरचना के विकास के उद्देश्य को लेकर बीएडीपी योजना शुरू की गई थी। आठ गांवों में इस योजना के तहत 21 वर्षों के अंतराल में 63.43 करोड़ की धनराशि खर्च हुई है। इनसे आठ गांवों में 1060 कार्य हुए हैं परंतु इनमें अधिकांश कार्य धरातल पर नहीं हैं।

By Shailendra prasad Edited By: Aysha SheikhUpdated: Mon, 08 Jan 2024 10:17 AM (IST)
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बीएडीपी ठंडे बस्ते में: आठ गांवों में बस नाम के वास्ते हुआ काम, खर्चे गए करोड़ों पर नहीं कोई हिसाब-किताब
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वर्ष 1985-90 में शुरू किए गए सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) अब ठंडे बस्ते में है। करीब तीन दशक तक सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामीणों के आर्थिक, सामाजिक विकास के साथ सीमावर्ती क्षेत्र में अवसंरचना के विकास के उद्देश्य को लेकर यह योजना शुरू की गई थी।

वर्तमान में सही क्रियान्वयन न होने के कारण इस योजना के कार्य धरातल से नदारद है। उत्तरकाशी जनपद के सीमांवर्ती क्षेत्र के आठ गांवों में इस योजना के तहत 21 वर्षों के अंतराल में 63.43 करोड़ की धनराशि खर्च हुई है। इनसे आठ गांवों में 1060 कार्य हुए हैं, परंतु इनमें अधिकांश कार्य धरातल पर नहीं हैं।

वित्तीय वर्ष 2018-19 और 2019-20 में 9.39 करोड़ की धनराशि खर्च की गई। इसमें 4.13 करोड़ की धनराशि से आठ गांवों में क्या कार्य किए गए, इसकी जानकारी जिला ग्राम्य विकास अभिकरण को भी नहीं है। यह तथ्य 'सूचना का अधिकार' अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में सामने आई है।

खर्च धनराशि के अधिकांश कार्य धरातल पर नहीं

दैनिक जागरण ने बीएडीपी के तहत खर्च धनराशि और योजनाओं के बारे में जानकारी मांगी थी। जनपद में बीएडीपी के तहत हर्षिल घाटी के आठ गांवों में विभिन्न योजनाओं के नाम पर धनराशि खर्च की गई। जिला ग्राम्य विकास अभिकरण की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया है कि सीमावर्ती क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत जनपद उत्तरकाशी में 21 वर्ष के अंतराल में 63.43 करोड़ रुपये की धनराशि शासन की ओर से प्राप्त हुई है, जो विभिन्न विभागों ने सीमांत विकास योजना के नाम पर खर्च की है।

इस धनराशि से 1060 कार्य किए गए। औसतन एक गांव में 132 योजनाएं बनी हैं। इनमें करीब आठ रोड़ की धनराशि खर्च की गई। हैरानी की बात यह है कि बीएडीपी के तहत खर्च धनराशि के अधिकांश कार्य धरातल पर नहीं हैं।

वर्ष 2018 से लेकर 2020 के बीच चार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की गई। इस धनराशि से क्या कार्य हुए हैं, निगरानी करने वाले विभाग को भी पता नहीं है। वर्ष 2021-22 से सीमांत क्षेत्र विकास योजना के तहत कोई भी धनराशि नहीं मिली है।

प्रशासन ने इस योजना के लिए प्रस्ताव भेजने भी बंद कर दिये हैं। अब बीएडीपी पूरी तरह से ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। अब सीमांत गांव के विकास के लिए केंद्र सरकार ने वाइब्रेंट विलेज योजना की शुरुआत की है। भले ही वाइब्रेंट विलेज योजना में अभी तक बजट प्राप्त नहीं हुआ है।

गृह मंत्रालय करता है बीएडीपी का क्रियान्वयन

गृह मंत्रालय के सीमा प्रबंधन विभाग की ओर से सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) का क्रियान्वयन किया जाता था। बीएडीपी की शुरुआत अवसंरचना के विकास के जरिये सीमावर्ती क्षेत्रों का संतुलित विकास सुनिश्चित व सुरक्षा का भाव पैदा करने को किया गया था।

यह कार्यक्रम देश के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और बंगाल के 111 सीमावर्ती जिलों के सीमावर्ती गांव चुने गए थे।

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